ISRO का SSLV-D2 मिशन सफलतापूर्वक पूरा, कक्षा में स्थापित किए गए 3 सैटेलाइट
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने आज आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SSLV-D2) लॉन्च किया और इसने अपना अभियान सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है। ISRO ने इस रॉकेट से EOS-07, अमेरिकी कंपनी एंटारिस के जैनस-1 और चेन्नई स्थित स्टार्टअप स्पेसकिड्स आजादीSAT-2 सैटेलाइट को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया है। इस मिशन को बेहद अहम माना जा रहा है और इसने छोटे सैटेलाइट्स और कॉमर्शियल लॉन्च की नींव रखी है।
लॉन्च के 13 मिनट बाद छोड़ा गया पहला सैटेलाइट
इससे पहले ISRO ने बताया था कि लॉन्च के 13 मिनट बाद यह रॉकेट 450 किलोमीटर की ऊंचाई पर EOS-07 सैटेलाइट को इसकी कक्षा में स्थापित करेगा और इसके तुरंत बाद दो अन्य सैटेलाइट कक्षा में छोड़े जाएंगे। इस रॉकेट के आने से अब ISRO के पास तीन प्रकार के रॉकेट हो गए हैं। इनमें पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV), जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) और इनके वेरिएंट शामिल है और अब इसमें SSLV भी शामिल हो गया है।
500 किलोग्राम तक के सैटेलाइट लॉन्च कर सकता है यह रॉकेट
ISRO ने बताया कि SSLV का इस्तेमाल लॉ अर्थ ऑरबिट (LEO) में 500 किलोग्राम तक के सैटेलाइट लॉन्च के लिए होता है। इस रॉकेट की मदद से सैटेलाइट लॉन्च करना सस्ता होता है और इसमें कम संसाधनों की जरूरत पड़ती है।
सफल रहा साल का पहला मिशन
SSLV-D2 इस साल का ISRO का पहला लॉन्च मिशन था। इसमें ISRO द्वारा विकसित 156 किलोग्राम वजनी EOS-07 सैटेलाइट के साथ 10.2 किलोग्राम के जैनस-1 और 8.7 किलोग्राम के आजादीSAT-2 को भेजा गया। आजादीSAT-2 सैटेलाइट देशभर की 750 स्कूली छात्राओं और चेन्नई स्थित स्पेसकिड्स के संयुक्त प्रयासों से तैयार किया गया है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, SSLV को वैज्ञानिकों की छोटी टीम कुछ ही दिनों में असेंबल कर सकती है, जबकि PSLV के लिए बड़ी टीम लगती है।
रॉकेट का पहला लॉन्च हुआ था विफल
SSLV-D2 रॉकेट को लॉन्च करने की यह दूसरी कोशिश थी और इस बार ISRO की मेहनत रंग लाई। पहली बार इसे पिछले साल अगस्त में इस रॉकेट को लॉन्च करने की कोशिश की गई थी, लेकिन यह सफल नहीं हो पाई। उस वक्त यह रॉकेट अपने सैटेलाइट को सही कक्षा में स्थापित नहीं कर पाया था। बता दें इस रॉकेट को खासतौर पर छोटे और मांग पर सैटेलाइट लॉन्च करने के लिए तैयार किया गया है।
SSLV से पहले भेजने होते थे बड़े रॉकेट
ISRO के पास SLV, ASLV, PSLV और GSLV आदि सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल हैं। हालांकि, ये सभी बड़े रॉकेट्स थे और ये बड़े पेलोड को अंतरिक्ष में ले जाने में सक्षम है। इसलिए ISRO को छोटे सैटेलाइट लॉन्च करने के लिए इंतजार करना पड़ता था और वह एक साथ कई सैटेलाइट लॉन्च करता था। इसे देखते हुए SSLV को विकसित किया गया है। इसमें खर्च कम होता है और संसाधनों की जरूरत भी बड़े रॉकेट्स की तुलना में कम होती है।