कर्नाटक: मुख्यमंत्री रेस में क्यों सिद्धारमैया के हाथ लगी बाजी और डीके शिवकुमार हारकर भी जीते?
क्या है खबर?
कर्नाटक में काफी जद्दोजहद के बाद कांग्रेस की सरकार के गठन की तस्वीर साफ हो गई है। सिद्धारमैया मुख्यमंत्री होंगे, जबकि डीके शिवकुमार उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे।
दोनों नेताओं के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर कड़ा मुकाबला था, लेकिन सिद्धारमैया ने बाजी मार ली। कांग्रेस हाईकमान के इस निर्णय के पीछे कई सारी वजह रहीं।
आइए आपको बताते हैं कि क्यों सिद्धारमैया मुख्यमंत्री चुने गए और क्यों शिवकुमार के लिए भी ये घाटे का सौदा नहीं है।
वजह
सिद्धारमैया के आगे शिवकुमार की दावेदारी यहां कमजोर पड़ी
कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भाजपा को पटखनी दी है। वह आगे भी इसी मुद्दे पर आक्रामक रहना चाहती है।
शिवकुमार आय से अधिक संपत्ति मामले में केंद्रीय जांच एजेंसियों के निशाने पर हैं। कर्नाटक हाई कोर्ट के आदेश पर जांच अभी रुकी हुई है, लेकिन मामला कोर्ट में लंबित होने के कारण खतरा बना हुआ है।
कांग्रेस हाईकमान के आगे शिवकुमार की दावेदारी यहीं कमजोर पड़ी और सिद्धारमैया के सिर मुख्यमंत्री का ताज सज गया।
अनुभव
सिद्धारमैया की वरिष्ठता और अनुभव भी आया काम
सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री बनाए जाने के पीछे सबसे बड़ा कारण रहा कि वह पार्टी में सबसे वरिष्ठ और अनुभवी नेता हैं और उन्हें पार्टी के अधिकांश विधायकों का समर्थन प्राप्त है। कर्नाटक की राजनीति में उनके कद और अनुभव ने मुख्यमंत्री पद के लिए उनकी दावेदारी को मजबूत मजबूत किया।
अगर शिवकुमार पार्टी हाईकमान के सामने मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदारी करते तो सिद्धारमैया ही पहली पसंद थे।
उन्होंने राज्य में 5 साल सफलतापूर्वक सरकार भी चलाई है।
समुदाय
अन्य समुदायों को नाराज नहीं करना चाहती थी कांग्रेस
शिवकुमार वोक्कालिगा जाति से आते हैं और उन्हें मुख्यमंत्री बनाकर कांग्रेस अन्य समुदायों को नाराज करने का जोखिम नहीं उठा सकती थी।
कांग्रेस को कर्नाटक चुनाव में 42 प्रतिशत वोट शेयर मिला है और इस जीत में सभी समुदायों की बराबर भागीदारी है।
ऐसे में कांग्रेस ने शिवकुमार को उपमुख्यमंत्री बनाकर सही दांव खेला है क्योंकि वह अन्य समुदायों को नजरअंदाज नहीं कर सकती है।
सिद्धारमैया की छवि सभी समुदायों में सर्वमान्य नेता की है।
शिवकुमार
क्यों शिवकुमार के लिए नहीं घाटे का सौदा?
कर्नाटक चुनाव में शिवकुमार ने बहुत मेहनत की। सिद्धारमैया के सामने उनकी दावेदार भले ही परिस्थितियों के अनुकूल न रही हो, लेकिन ये उनके लिए भी घाटे का सौदा नहीं है।
कांग्रेस ने उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाया है और वह अभी भी कर्नाटक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बने हुए हैं।
राज्य में 2 भारी भरकम पदों का मिलना उनके पक्ष में है। इनके बूते वह कैबिनेट और पार्टी पर अपनी मजूबत पकड़ बना सकते हैं।
शिवकुमार
शिवकुमार का कैबिनेट में रहेगा दबदबा
कांग्रेस हाईकमान के निर्णय के बाद शिवकुमार को कैबिनेट में उनके और उनके करीबी लोगों के लिए महत्वपूर्ण विभाग मिलने की उम्मीद है, जो यह सुनिश्चित करेगा कि कैबिनेट में शक्ति का संतुलन खराब न हो।
कांग्रेस हाईकमान ने शिवकुमार को उपमुख्यमंत्री बनाकर राज्य में शक्ति संतुलन को स्थिर रखने का प्रयास किया है।
इसका कारण ये है कि सिद्धारमैया ने अपने पिछले कार्यकाल (2013-18) में शिवकुमार को पहले साल में कैबिनेट में शामिल करने से इनकार कर दिया था।
मायने
मुख्यमंत्री पद के बदले शिवकुमार ने किया अच्छा सौदा
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि शिवकुमार ने मुख्यमंत्री पद के बदले अच्छा सौदा किया है। उनका कहना है कि शिवकुमार ये पहले से जानते थे कि सिद्धारमैया मुख्यमंत्री की रेस में उनसे आगे हैं।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस को कर्नाटक में मिली ऐतिहासिक जीत के बाद शिवकुमार ये सुनिश्चित करना चाहते थे कि सरकार पर सिद्धारमैया का पूरा नियंत्रण न रहे और वह अपने मकसद में कामयाब भी हुए हैं।