Page Loader
#NewsBytesExplainer: क्या होता है मतदाता सूची का गहन निरीक्षण और पहले कब-कब हुआ है ये काम?
बिहार में चुनाव आयोग मतदाता सूची का गहन पुनरीक्षण कर रहा है

#NewsBytesExplainer: क्या होता है मतदाता सूची का गहन निरीक्षण और पहले कब-कब हुआ है ये काम?

लेखन आबिद खान
Jul 11, 2025
07:02 pm

क्या है खबर?

बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग मतदाता सूची का गहन पुनरीक्षण कर रहा है, जिस पर खूब विवाद हो रहा है। ये मुद्दा राजनीतिक गलियारों से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। विपक्षी पार्टियों का कहना है कि ये चुनावों से पहले मतदाताओं को मताधिकार से दूर करने की साजिश है, जबकि चुनाव आयोग इसे नियमित प्रक्रिया बता रहा है। आइए जानते हैं गहन पुनरीक्षण क्या होता है और क्यों किया जा रहा है।

गहन पुनरीक्षण

क्या होता है गहन पुनरीक्षण?

दरअसल, आयोग मतदाता सूची में 3 तरह से सुधार करता है। एक समरी रिवीजन, दूसरा गहन पुनरीक्षण और तीसरा विशेष संशोधन। समरी रिवीजन हर साल होता है। इसमें मतदाता सूची में नाम जोड़ने, हटाने या त्रुटि सुधार किया जाता है। वहीं, गहन पुनरीक्षण एक तरह से नई मतदाता सूची बनाने का काम है। इसके लिए घर-घर जाकर लोगों की गणना की जाती है फिर निर्धारित दस्तावेजों के निरीक्षण के बाद उनका नाम मतदाता सूची में शामिल किया जाता है।

समय

कब होता है गहन पुनरीक्षण?

आमतौर पर गहन पुनरीक्षण तब किया जाता है, जब चुनाव आयोग को लगता है कि वर्तमान मतदाता सूची ज्यादा पुरानी हो गई हैं, उनमें काफी ​​गलतियां हैं या उन्हें दोबारा पूरी तरह से बनाने की जरूरत है। चुनावों से पहले या निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के बाद ये काम किया जाता है। वहीं, विशेष संशोधन काफी मतदाताओं के नाम छूट जाना, बड़ी संख्या में गलतियां होना जैसे असाधारण मामलों में किया जाता है।

बिहार

बिहार में क्यों हो रहा है गहन पुनरीक्षण?

चुनाव आयोग का कहना है कि बिहार में दशकों से ये काम नहीं हुआ है और इस दौरान मतदाता सूची में महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं। आयोग ने कहा कि इस दौरान शहरीकरण हुआ, लोगों ने शिक्षा और रोजगार के लिए प्रवास किया और मतदाताओं ने पुराने पते से नाम हटाए बिना नए पते पर नाम जुड़वा लिया है। इस वजह से ये प्रक्रिया जरूरी हो गई है। आयोग ने ये भी कहा कि ये प्रक्रिया पूरे देश में होगी।

पहले के मामले 

पहले कब-कब हुआ है मतदाता सूची का गहन पुनरीक्षण?

देश के अलग-अलग राज्यों में 1952-56, 1957, 1961, 1965-66, 1983-84, 1987-89, 1992, 1993, 1995, 2002, 2003 और 2004 में ये काम हुआ है। आजादी के बाद ये काम व्यापक स्तर पर हुआ था, जब मतदाता सूची में काफी गलती होती थी। इसके बाद नए राज्यों के बनने या निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन पर भी मतदाता सूची अपडेट की गई। हर लोकसभा चुनाव के बीच-बीच में भी ये काम जारी रहा।

तरीका

बिहार में किस तरह से हो रहा है गहन पुनरीक्षण?

चुनाव आयोग ने बिहार में 3 श्रेणियां बनाई हैं। पहली- जिनका जन्म 1 जुलाई, 1987 से पहले हुआ है, उन्हें केवल खुद का दस्तावेज पेश करना होगा। दूसरी- जिनका जन्म 1 जुलाई, 1987 से 2 दिसंबर, 2004 के बीच हुआ है, उन्हें अपना और किसी एक अभिभावक का दस्तावेज पेश करना होगा। तीसरी- 2 दिसंबर, 2004 के बाद जन्म लेने वाले मतदाताओं को अपना और अपने दोनों अभिभावकों का दस्तावेज पेश करना होगा।

दस्तावेज

मतदाताओं से कौन-कौनसे दस्तावेज मांगे गए हैं? 

चुनाव आयोग ने 11 दस्तावेज मतदाताओं से मांगे हैं। जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट, हाईस्कूल रिजल्ट, स्थायी निवास प्रमाण पत्र, वन अधिकार प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र, NRC में नाम, परिवार रजिस्टर, जमीन या आवास आवंटन पत्र, केंद्र या राज्य सरकार के कर्मचारी या पेंशनर का कोई परिचय पत्र, सरकार या बैंक या डाक घर या LIC या सरकारी कंपनी का परिचय पत्र या प्रमाण पत्र। हालांकि, आधार कार्ड, राशन कार्ड, जॉब कार्ड, पैन कार्ड और ड्राइविंग लाइसेंस मान्य नहीं हैं।

विवाद

प्रक्रिया पर क्यों हो रहा है विवाद?

सबसे बड़ा विवाद आधार कार्ड जैसे दस्तावेजों को मान्य नहीं करने पर है। सुप्रीम कोर्ट ने भी आयोग से आग्रह किया है कि वो मतदाता परिचय पत्र, राशन कार्ड और आधार कार्ड को मान्यता दे। एक बड़ा विवाद बार-बार नियम बदलने को लेकर भी है। 24 जून को पहली सूचना देने के बाद आयोग कई बार नियम बदल चुका है। विपक्षी पार्टियों ने प्रक्रिया के समय यानी चुनावों से पहले किए जाने पर भी सवाल उठाए हैं।