
#NewsBytesExplainer: क्या है वायुसेना का IACCS कमांड केंद्र, ये हवाई हमलों से कैसे करता है रक्षा?
क्या है खबर?
पाकिस्तान ने भारत पर ड्रोन और मिसाइलों से हमला किया था, जिसे भारत ने पूरी तरह नाकाम कर दिया। भारतीय वायु रक्षा प्रणालियों ने इन सभी ड्रोन और मिसाइलों को मार गिराया।
इसके बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सेना ने वायुसेना के एकीकृत वायु कमान और नियंत्रण प्रणाली (IACCS) केंद्र की एक तस्वीर दिखाई, जो देश की सभी वायु रक्षा प्रणालियों का समन्वय करता है।
आइए जानते हैं ये क्या होता है और कैसे काम करता है।
IACCS
क्या है IACCS?
IACCS वायुसेना का एक स्वचालित कमांड और नियंत्रण केंद्र है, जिसे हवाई संचालन का प्रबंधन और निगरानी करने के लिए तैयार किया गया है।
यह सभी हवाई और जमीनी सेंसर, हथियार प्रणालियों, रडार, कमांड और नियंत्रण केंद्रों से वायुसेना की सभी कमानों और कंट्रोल केंद्रों को जोड़ता है।
इस आधार पर भारत की तीनों सेनाएं और वायु रक्षा प्रणालियां खतरे की पहचान करती है और उसे नष्ट करने के लिए कदम उठाती है।
काम
कैसे काम करता है IACCS?
यह उपग्रहों, विमानों और जमीनी स्टेशनों के बीच विजुअल रूप में इमेजरी, डेटा और ध्वनि के संचार का रीयल टाइम डेटा उपलब्ध कराता है। इसके बाद हवा में मौजूद हर चीज का आंकलन कर खतरों से कैसे निपटा जाए ये तय किया जाता है।
भारत ने हवाई खतरों से निपटने के लिए एक बेहद जटिल और कुशल वायु रक्षा प्रणाली विकसित की है। ये कई स्तरों पर काम करते हुए हवाई हमलों को नाकाम करती है।
बाहरी परत
भारत कैसे करता है अपने हवाई क्षेत्र की रक्षा?
भारत ने अपनी वायु रक्षा प्रणाली को 4 परतों में बांट रखा है।
सबसे बाहरी परत में दुश्मनों के हथियारों और उपकरणों से निपटने के लिए लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइलों का इस्तेमाल होता है। इसमें आमतौर पर S-400 एयर डिफेंस सिस्टम और लड़ाकू विमान आते हैं।
तीसरी और दूसरी परत में मध्यम या कम दूरी तक वार करने वाली सतह से हवा में हमला करने वाली मिसाइलें और पॉइंट एयर डिफेंस सिस्टम आता है।
पहली परत
पहली परत में क्या-क्या होता है?
पहली परत में काउंटर-ड्रोन सिस्टम और मैन-पोर्टेबल एयर डिफेंस सिस्टम (MANPADS) होते हैं।
आमतौर पर यह परत तब सक्रिय होती है, जब दुश्मन का हथियार बाहर की सारी परतों से बचकर आ जाता है या कुछ हथियारों के अंदरूनी स्थानों को निशाना बनाने की संभावना होती है।
इसमें कम ऊंचाई तक मार करने वाली तोपें, बंदूकें, ZSU--23 शिल्का, और ड्रोंस वगैरत तैनात होती हैं। सबसे खतरनाक L-70 बंदूकें भी इसी परत में होती हैं।
अहमियत
कितना अहम है IACCS?
इससे हवाई रक्षा प्रणाली को खतरों की तुरंत जानकारी मिलती है।
यह अलग-अलग कमांड और कंट्रोल नोड्स में बेहतर समन्वय करता है।
यह प्रणाली ऑटोमेटेड एयर डिफेंस सिस्टम को भी ऑपरेट करती है, ताकि खतरों की तुरंत पहचान कर उन्हें नष्ट किया जा सके।
इससे सेना को समन्वित डेटा, वास्तविक समय के साथ ताजा जानकारी और कई स्तरों पर सैन्य कमांडर के लिए जरूरी व्यापक तस्वीर मिलती है, जो जल्दी निर्णय लेने और हमला करने की मदद करती है।
इतिहास
क्या है IACCS प्रणाली का इतिहास?
1999 के कारगिल युद्ध में इस तरह के रक्षा ग्रिड की जरूरत महसूस हुई थी।
इसके बाद 2003 में IACCS निदेशालय की स्थापना हुई। इसके तहत देशभर में एयर कमांड और कंट्रोल केंद्रों का डिजिटलीकरण किया गया।
2010 में ही वायुसेना ने पुराने ट्रोपोस्कैटर की जगह नया AFNET सिस्टम लॉन्च किया। इसके बाद IACCS का पूरा फ्रेमवर्क अलग-अलग चरणों में लागू किया गया।
सार्वजनिक क्षेत्र की एयरोस्पेस और रक्षा इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) ने इसे विकसित किया है।