कौन हैं देश के नए चुने गए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़?
क्या है खबर?
देश के 14वें उपराष्ट्रपति के लिए शनिवार को संसद भवन में मतदान हुआ और उसके बाद मतगणना की गई।
इसमें भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के उम्मीदवार जगदीप धनखड़ ने विपक्ष की संयुक्त उम्मीदवार मारग्रेट अल्वा को 346 वोटों से हराकर जीत हासिल कर ली। इसके साथ ही देश को अगला उपराष्ट्रपति मिल गया है।
आइये जानते हैं कौन है जगदीप धनखड़ और उनका राजनीतिक करियर कैसा रहा है।
धाक
धनखड़ को मिले कुल 528 वोट
उपराष्ट्रपति चुनाव की मतगणना में NDA उम्मीदवार धनखड़ को विभिन्न दलों के समर्थन के कारण 780 में से आवश्यक 372 वोटों की तुलना में कुल 528 (68 प्रतिशत) वोट मिले थे, लेकिन इनमें से 15 वोट अमान्य घोषित कर दिए गए।
इसी तरह विपक्षी उम्मीदवार मारग्रेट अल्वा को 200 वोट मिलने की उम्मीद थी, लेकिन उन्हें 182 वोटों से ही संतोष करना पड़ा।
ऐसे में धनखड़ को 346 वोटों के बड़े अंतर से जीत हासिल हुई है।
परिचय
राजस्थान के किसान परिवार में जन्मे धनखड़ ने वकालत से की शुरूआत
जाट समुदाय से आने वाले जगदीप धनखड़ का जन्म 1951 में राजस्थान के झुंझुनू जिले स्थित किठाना गांव में एक किसान परिवार में हुआ था।
उन्होंने अपनी शुरूआत पढ़ाई गांव के ही एक स्कूल से की और फिर स्कॉलरशिप पर चित्तौड़गढ़ के सैनिक स्कूल में पढ़ने चले गए।
इसके बाद उन्होंने राजस्थान यूनिवर्सिटी से फिजिक्स और कानून की डिग्री हासिल की। वह सुप्रीम कोर्ट और राजस्थान हाई कोर्ट में वकालत भी कर चुके हैं।
राजनीतिक सफर
जनता दल के साथ की राजनीतिक पारी की शुरूआत
कुछ करीबी राजनेताओं के समझाने के बाद धनखड़ ने 1980 के दशक में जनता दल से अपना राजनीतिक करियर शुरू किया और 1989 में उसकी टिकट पर झुंझुनू सीट से सांसद चुने गए।
पूर्व प्रधानमंत्री और हरियाणा के दिग्गज नेता देवीलाल उनके गुरू रहे। हालांकि, 1990 में देवीलाल ने वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस लेने पर धनखड़ भी सरकार से बाहर हो गए।
इसके बाद 1990 में वह चंद्रशेखर सरकार में संसदीय मामलों के राज्य मंत्री रहे।
बदलाव
जनता दल के बाद थामा था कांग्रेस का हाथ
जनता दल के बाद धनखड़ ने काग्रेस का हाथ थाम लिया और 1993 में उसके टिकट पर अलवर के किसानगढ़ से विधायक चुने गए।
हालांकि, राजस्थान कांग्रेस में अशोक गहलोत के उदय के बाद वह किनारे होते चले गए और काफी समय तक अपने विकल्पों पर विचार करने के बाद आखिरकार साल 2008 में उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया।
वह राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता वसुंधरा राजे सिंधिया के बेहद करीबी माने जाते हैं।
झटका
14 साल के इकलौते बेटे की मौत से टूट गए थे धनखड़
धनखड़ दिल और दिमाग से बेहद मजबूत हैं। उनके दो बच्चे थे। बेटा दीपक और बेटी कामना। दीपक अजमेर के मेयो स्कूल में पढ़ता था।
14 साल की उम्र में फरवरी 1994 में दीपक को ब्रेन हेमरेज हो गया था। धनखड़ आनन-फानन में उपचार के लिए उसे दिल्ली लेकर गए, लेकिन वह बच नहीं पाया।
बेटे की मौत ने धनखड़ को पूरी तरह तोड़ दिया था। इसके बावजूद वह दर्द से बाहर निकले और पूरे परिवार को संभाला।
राज्यपाल
राज्यपाल के तौर पर ममता बनर्जी सरकार से हुआ टकराव
धनखड़ को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान जुलाई, 2019 में पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बनाए जाने के बाद मिली।
राज्यपाल के तौर पर उनका तृणमूल कांग्रेस (TMC) की राज्य सरकार से कई बार टकराव हो चुका है। उन्होंने 2021 विधानसभा चुनाव के बाद हुई हिंसा के लिए राज्य सरकार को दोषी ठहराया था।
जवाब में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उन पर निशाना साधा था। TMC सरकार ने उन्हें यूनिवर्सिटीज के चांसलर के पद से हटाने वाला विधेयक भी पारित किया है।
सफलता
उपराष्ट्रपति के रूप में करेंगे देश की सेवा
अपने लंबे राजनीतिक करियर और संघर्षों के बाद आखिरकार शनिवार को धनखड़ को इसका सुखद परिणाम मिल गया है।
NDA ने उन पर जो भरोसा जताकर उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया था, उसमें उन्हें सफलता मिली हैं। इस जीत ने उन्हें देश के बड़े पद की ओर बढ़ाया है।
ऐसे में वह अब उपराष्ट्रपति के रूप में देश की सेवा करेंगे। हालांकि, चुनाव से पहले ही धनखंड की जीत पूरी तरह सुनिश्चित मानी जा रही थी।