अरविंद केजरीवाल के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के पीछे क्या है प्रमुख कारण?
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने रविवार को सभी को चौंकाते हुए पद से इस्तीफा देने का ऐलान कर दिया। उन्होंने कहा कि वह अगले 2 दिन में मुख्यमंत्री पद से अपना इस्तीफा दे देंगे। इस दौरान उन्होंने यह भी साफ किया कि मनीष सिसोदिया भी मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे और विधायक दल की बैठक में नए मुख्यमंत्री का चयन किया जाएगा। इसके बाद राजनीतिक गलियारों में एक ही चर्चा शुरू हो गई कि आखिर केजरीवाल ने यह कदम क्यो उठाया?
नैतिकता का संदेश देने का प्रयास
केजरीवाल ने इस्तीफे की घोषणा कर नैतिकता का संदेश देने का प्रयास किया है। दरअसल, उन पर मुख्यमंत्री आवास की साज-सज्जा में 45 करोड़ रुपये खर्च करने और शराब घोटाले में संलिप्तिता सहित कई आरोप लगे हैं। इससे उनकी और आम आदमी पार्टी (AAP) दोनों की छवि खराब हुई है। उन्होंने यह दिखाने का प्रयास किया कि अगर वह गुनहगार होते तो जेल से इस्तीफा दे सकते थे, लेकिन उन्होंने नैतिक तौर पर जमानत मिलने के बाद इस्तीफा दिया है।
सहानुभूति हासिल करना भी है बड़ा कारण
केजरीवाल पर लगे आरोपों से लोगों में उनके प्रति नाराजगी पैदा हो गई थी। ऐसे में उन्होंने इस्तीफा देकर दिल्ली की जनता की सहानुभूति हासिल करने का प्रयास किया है। वह दिखाना चाहते हैं कि केंद्र सरकार उन्हें और उनकी सरकार पर तरह-तरह के आरोप लगाकर उन्हें काम करने से रोक रही है। उनके साथ मनीष सिसोदिया, संजय सिंह जैसे शीर्ष नेताओं को भी जेल भेज दिया गया, लेकिन पर्याप्त सबूतों के अभाव में सभी को जमानत मिल गई।
इस्तीफा देकर दी भाजपा को पटखनी
भाजपा विधायकों ने गत दिनों उपराज्यपाल वीके सक्सेना को पत्र लिखकर दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग की थी। उनका कहना था कि केजरीवाल बतौर मुख्यमंत्री अहम जिम्मेदारियां नहीं निभा सकते हैं क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने कई शर्तों के आधार पर जमानत दी है। केजरीवाल को अंदेशा था कि शायद दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लग सकता है। ऐसे में उन्होंने इस्तीफे की घोषणा कर भाजपा के इस दांव को फेल करने का काम किया है।
सुप्रीम कोर्ट ने किन शर्तों पर दी है जमानत?
सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल मुख्यमंत्री कार्यालय न जाने और मुख्यमंत्री के रूप में किसी भी सरकारी फाइल पर हस्ताक्षर न करने की शर्त पर जमानत दी है। ऐसे में वह मामले का फैसला होने तक किसी भी सरकारी कामकाज में हिस्सा नहीं ले सकते हैं।
विधानसभा सत्र बुलाने के लिए उठाया कदम
दिल्ली विधानसभा का आखिरी सत्र 8 अप्रैल को बुलाया गया था और 6 महीने के भीतर यानी 8 अक्टूबर तक दूसरा सत्र बुलाना आवश्यक है। ऐसा न होने पर विधानसभा भंग हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट की शर्तों के कारण सत्र बुलाना मुश्किल हो गया। संविधान के अनुच्छेद 174 के तहत सत्र बुलाने की शक्ति राज्यपाल/उपराज्यपाल के पास है और कैबिनेट की बैठक की अध्यक्षता मुख्यमंत्री ही कर सकते हैं, लेकिन केजरीवाल ऐसा नहीं कर सकते थे।
चुनाव तारीखों को प्रभावित होने से रोकना
अगर AAP सरकार 8 अक्टूबर तक विधानसभा सत्र नहीं बुलाती है तो राष्ट्रपति शासन लागू हो सकता है। ऐसे में दिल्ली में विधानसभा चुनाव की तारीखें भी प्रभावित हो सकती हैं। वर्तमान में दिल्ली विधानसभा के चुनाव फरवरी 2025 के लिए प्रस्तावित हैं। जम्मू-कश्मीर में विधानसभा भंग होने के 6 साल बाद चुनाव हुए हैं। विधानसभा चुनावों की संभावित देरी AAP के लिए एक बड़ा झटका हो सकती थी, खासकर जब उनकी स्थिति दिल्ली में मजबूत है।
विधानसभा चुनाव की तैयारी करना भी एक कारण
दिल्ली में कुछ महीनों के बाद ही विधानसभा चुनाव होने है। ऐसे में केजरीवाल यह जानते हैं कि उन्हें फिर से लोगों के बीच जाना होगा। वह दिल्लीवासियों को बेहतर तरीके से समझते भी हैं। यही वजह है कि वह खुद अब जनता के बीच जाना चाहते हैं और एक बार फिर से जनता के रुख को अपनी ओर करना चाहते हैं। इस्तीफा देकर वह पूरी तरह से चुनाव अभियान में अपनी ताकत झोंकने की तैयारी करना चाहते हैं।