क्या है संयुक्त संसदीय समिति, जिसके पास भेजा गया है 'एक देश एक चुनाव' विधेयक?
केंद्र सरकार ने मंगलवार को लोकसभा में 'एक देश एक चुनाव' विधेयक पेश कर दिया है। कानून मंत्री अर्जन राम मेघवाल ने इसे विस्तृत चर्चा के लिए संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के पास भेजने की अपील की। इसके बाद इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग कराई गई, जिसमें 269 वोट पक्ष में और 198 विपक्ष में पड़े। अब इस विधेयक को JPC के पास भेजा जाएगा, जहां इस पर विस्तृत चर्चा होगी। आइए जानते हैं JPC क्या है और यह कैसे काम करती है।
संसद में JPC क्या है?
संयुक्त संसदीय समिति (JPC) संसद द्वारा किसी विधेयक या मुद्दे पर गहन जांच के लिए गठित एक विशेष समिति है, जिसमें लोकसभा और राज्यसभा दोनों के सदस्य शामिल होते हैं। इसका प्राथमिक कार्य विशिष्ट मुद्दों की जांच करना, विधेयकों की जांच करना या उन मामलों पर पूछताछ करना है जिनके लिए विस्तृत जांच और विश्लेषण की आवश्यकता होती है। इनमें देश में होने वाले प्रमुख घोटालों के मामलों को भी शामिल किया जा सकता है।
कैसे किया जाता है JPC का गठन?
JPC के गठन के लिए संसद के एक सदन द्वारा प्रस्ताव पारित किया जाता है और दूसरे सदन से सहमति ली जाती है। इसके बाद दल अपने सदस्यों का नाम JPC के लिए आगे बढ़ाते हैं। इसके सदस्यों की संख्या निश्चित नहीं होती है, लेकिन यह ध्यान रखा जाता है कि इसमें ज्यादातर दलों के सदस्यों की भागीदारी हो। आमतौर पर बहुमत वाले या फिर सबसे बड़े दल के सदस्य सर्वाधिक होते हैं। लोकसभा स्पीकर समिति का अध्यक्ष चुनते हैं।
JPC के पास क्या होती हैं शक्तियां?
JPC को जिस उद्देश्य से गठित किया गया है, उससे संबंधित साक्ष्य और तथ्य जुटाने के लिए उसके पास किसी भी व्यक्ति, संस्था या पक्ष को बुलाने और पूछताछ करने का अधिकार होता है। साथ ही मामले से जुड़े किसी भी माध्यम से सबूत जुटाने का हक होता है। जनहित के मामलों को छोड़कर समिति की कार्यवाही और निष्कर्ष को गोपनीय रखा जाता है। सरकार चाहे तो राज्य या देश की सुरक्षा से जुड़े दस्तावेजों को वापस ले सकती है।
किस तरह से जांच और समीक्षा करती है JPC?
किसी विधेयक को JPC के पास भेजने के बाद वह सबसे पहले उसकी समीक्षा करती है और उस पर चर्चा के लिए आवश्यक बैठकें करती है। इसके बाद वह विधेयक द्वारा उठाए गए मुद्दों पर शोध करती है। इसके अलावा, विशेषज्ञों, हितधारकों और संबंधित पक्षों को अपने विचार और सिफारिशें देने के लिए आमंत्रित करती है। गहन जांच के बाद JPC अपने निष्कर्षों और सिफारिशों को संसद के दोनों सदनों को रिपोर्ट के रूप में प्रस्तुत करती है।
विधेयक में संशोधन की सिफारिश भी कर सकती है JPC
JPC संसद के दोनों सदनों को विधेयक पर भेजी गई रिपोर्ट में संबंधित विधेयक में संशोधन करने की सिफारिश भी कर सकती है, लेकिन सरकार उन्हें मानने के लिए बाध्य नहीं होती है। रिपोर्ट आने के बाद संसद उसके निष्कर्षों पर बहस करती है और प्रस्तावित संशोधन पर विचार करती है। उसके बाद विधेयक नियमित विधायी प्रक्रिया के माध्यम से आगे बढ़ता है, जिसमें चर्चा, मतदान और अगर आवश्यक हो तो आगे के संशोधन शामिल हैं।
रिपोर्ट पेश करने के बाद खत्म हो जाता है JPC का अस्तित्व
JPC के पास जांच के लिए अधिकतम 3 महीने की समय सीमा होती है। जांच रिपोर्ट पेश करने के बाद समिति का अस्तित्व स्वत: ही समाप्त हो जाता है। सरकार को JPC की सिफारिशों के आधार पर की गई कार्रवाई की रिपोर्ट देनी होती है।
किन-किन मामलों में किया जा चुका है JPC का गठन?
देश में अब तक कई मामलों में जांच या चर्चा के लिए JPC का गठन किया जा चुका है। इनमें बोफोर्स तोप घोटाला (1987), हर्षद मेहता स्टॉक मार्केट घोटाला (1992), केतन पारेख शेयर बाजार घोटाला (2001), राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC, 2016), व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक (2019) और वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक (2024) जैसे प्रमुख मामले शामिल है। JPC का गठन किसी विधेयक पर आम सहमति के लिए भी किया जा सकता है।
क्या हैं 'एक देश एक चुनाव' संबंधी विधेयक?
लोकसभा में पेश किए गए 'एक देश एक चुनाव' संबंधी विधेयकों में एक संविधान (129वां संशोधन) विधेयक और दूसरा केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन) विधेयक, 2024 शामिल है। इनका उद्देश्य स्थानीय निकाय चुनावों को छोड़कर लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एकसाथ करना है। यह विधेयक एकसाथ चुनाव कराने के लिए अनुच्छेद 83, 172 और 327 में संशोधन करता है तथा एक नया अनुच्छेद 82(A) जोड़ता है। इसके केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी मिल चुकी है।