राहुल का खुलासा, सालों पहले ले लिया गया था प्रियंका का राजनीति में एंट्री का फैसला
प्रियंका गांधी के राजनीतिक सफर के आगाज के साथ ही यह सवाल हर मन में उठ रहा है कि राजनीति में उनकी एंट्री का फैसला कब और किन हालात में लिया गया। कुछ राजनीतिक विशेषज्ञ इसे समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवार्दी पार्टी गठबंधन में जगह न मिलने पर कांग्रेस का जबाव मान रहे हैं। लेकिन राहुल गांधी ने ओडिशा में एक कार्यक्रम में खुलासा किया है कि यह फैसला कुछ साल पहले ही ले लिया गया था।
'10 दिन पहले नहीं लिया फैसला'
भुवनेश्वर में एक कार्यक्रम के दौरान राहुल ने कहा, "यह फैसला 10 दिन पहले नहीं बल्कि कुछ साल पहले ही ले लिया गया था। मैंने अपनी बहन से बात की थी। प्रियंका तब बच्चों पर ध्यान देना चाहती थीं।" राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना था कि सपा-बसपा गठबंधन से बाहर होने के बाद यूपी में अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए राहुल ने प्रियंका को राजनीति में उतारा है। उनके अनुसार कांग्रेस के लिए ऐसा कदम उठाना जरूरी हो गया था।
'मैंने और मेरी बहन ने काफी कुछ सहा'
परिवार के बारे में राहुल ने कहा, "मैंने और मेरी बहन ने काफी कुछ सहा है। हर कोई सोचता है कि हम एक प्रसिद्ध परिवार से हैं तो हमारे लिए सब आसान रहा, लेकिन ऐसा नहीं है।" राहुल ने आगे कहा, "हमारी दादी और पिता की हत्या कर दी गई, हमें राजनीति में हार का सामना करना पड़ा। इससे हम और नजदीक आए हैं।" राहुल संकेत देते रहे कि प्रियंका का पदभार 2019 चुनाव के बाद भी जारी रहेगा।
यूपी में कांग्रेस का मुख्यमंत्री बनाना प्रियंका का लक्ष्य
राहुल का कहना है कि उन्होंने अपनी बहन को 2 महीने के लिए नहीं बल्कि लंबी रेस के लिए यूपी भेजा है। दो दिन पहले राहुल ने कहा था कि प्रियंका राज्य में कांग्रेस का मुख्यमंत्री बनाने का रास्ता तैयार करेंगी। उन्होंने कहा, "आज मैंने प्रियंका को महासचिव बना दिया है यूपी का, मतलब अब यहां पर कांग्रेस अपना मुख्यमंत्री बैठाने का काम करेगी। दिल्ली में कांग्रेस के गठबंधन की सरकार और यूपी में पूरे दम से कांग्रेस पार्टी लड़ेगी।"
प्रियंका को पूर्वी यूपी का कठिन प्रभार
प्रियंका को कांग्रेस महासचिव बनाते हुए पूर्वी उत्तर प्रदेश का कठिन चुनावी प्रभार दिया गया है। पूर्वी यूपी को भारतीय जनता पार्टी का गढ़ माना जाता है। इलाके की वाराणसी सीट से प्रधानमंत्री मोदी सांसद हैं, जबकि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गढ़ गोरखपुर है। गांधी परिवार के एक सदस्य को इतना कठिन पदभार देकर राहुल यह संदेश देने में सफल रहे हैं कि वह जीत के लिए खतरा उठाने को तैयार हैं।