इस साल दिल्ली और बिहार में होंगे विधानसभा चुनाव, जानें क्या है इनका राजनीतिक महत्व
2019 चुनावी नजरिए से बेहद व्यस्त साल रहा जिसमें लोकसभा चुनाव के साथ-साथ छह राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए। लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बड़ी जीत के साथ भाजपा ने सत्ता में वापसी की, लेकिन राज्य विधानसभाओं का परिणाम उसके लिए मिला-जुला रहा और दो राज्यों, महाराष्ट्र और झारखंड, में उसकी सरकार चली गई। इस साल भी दिल्ली और बिहार में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, जो राजनीतिक नजरिए से बेहद महत्वपूर्ण होंगे।
दिल्ली में AAP और भाजपा के बीच मुकाबला
देश की राजधानी दिल्ली में इस साल फरवरी में विधानसभा चुनाव होने हैं। इन चुनावों में मुख्य मुकाबला सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (AAP) और भाजपा के बीच माना जा रहा है। जहां AAP का लक्ष्य 2015 में अपनी प्रचंड जीत के करिश्मे को दोहराते हुए सत्ता में फिर से वापसी करना है, वहीं भाजपा AAP के इस अंतिम किले को भेदकर दो दशक बाद दिल्ली की सत्ता में लौटने की कोशिशों में लगी हुई है।
पिछली बार 70 में से 67 सीटें जीती थी AAP
पिछले विधानसभा चुनाव में दिल्ली की 70 सीटों में से 67 पर AAP ने जीत हासिल की थी, जबकि बाकी तीन सीटें भाजपा के खाते में गईं थीं। कांग्रेस अपना खाता खोलने में भी नाकाम रही थी। कांग्रेस के प्रदर्शन में इस बार भी खास सुधार होगा, इसकी उम्मीद कम ही दिख रही है। लेकिन अगर कांग्रेस अपना प्रदर्शन सुधारने में कामयाब रहती है तो इसका सीधा असर AAP पर पड़ सकता है क्योंकि दोनों का वोटबैंक एक ही है।
बिहार में अक्टूबर में होंगे चुनाव
दिल्ली के अलावा बिहार में भी इस साल अक्टूबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। देश के राजनीतिक परिदृश्य के हिसाब से ये चुनाव बेहद महत्वपूर्ण होने जा रहे हैं। अभी तक के समीकरणों को देखते हुए कहा जा सकता है कि यहां आगामी चुनाव में मुख्य मुकाबला जनता दल (यूनाइटेड) और भाजपा के गठबंधन और कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के महागठबंधन के बीच होगा। अभी यहां JD(U) और भाजपा के गठबंधन की सरकार है।
टूट भी सकता है भाजपा और JD(U) का गठबंधन
लेकिन ये तय तौर पर नहीं कहा जा कि JD(U) और भाजपा साथ ही चुनाव लड़ेंगीं। सीटों के बंटवारे को लेकर अभी से JD(U) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर और भाजपा के बीच तनातनी देखी जा रही है। इसके अलावा नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस (NRC) और नागरिकता कानून ने दोनों पार्टियों के गठबंधन को और जटिल बना दिया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिहार में NRC न कराने का ऐेलान भी कर चुके हैं।
भाजपा के लिए बेहद महत्वपूर्ण है बिहार जीतना
भाजपा के नजरिए से बिहार के ये चुनाव बेहद महत्वपूर्ण होने जा रहे हैं और पार्टी नहीं चाहेगी कि महाराष्ट्र और झारखंड के बाद बिहार जैसा महत्वपूर्ण राज्य भी उसके हाथ से निकल जाए। अगर पार्टी महाराष्ट्र और झारखंड के नतीजों से सीख लेती है तो वो JD(U) से गठबंधन नहीं तोड़ना चाहिए और उसके साथ नरम रुख से पेश आएगी। महाराष्ट्र और झारखंड में सहयोगियों के साथ सख्त रुख ही भाजपा के खिलाफ गया।
कांग्रेस और RJD के लिए आसान नहीं है रास्ता
इस बीच मुख्य विपक्षी दल RJD और कांग्रेस नागरिकता कानून और NRC से पैदा हुए संकट का फायदा उठाते हुए सत्ता में वापसी करना चाहेंगे। हालांकि उन्हें RJD प्रमुख लालू प्रसाद यादव के अनुभवी नेतृत्व की कमी खल सकती है।
क्या रहा था 2015 विधानसभा चुनाव का नतीजा?
अगर पिछले विधानसभा चुनाव की बात करें तो बिहार की 243 विधानसभा सीटों में से 178 सीटों पर JD(U), कांग्रेस और RJD के महागठबंधन ने जीत दर्ज की थी। RJD ने सबसे अधिक 80, JD(U) ने 71 और कांग्रेस ने 27 सीटों पर जीत दर्ज की थी। हालांकि महागठबंधन की सरकार ज्यादा समय नहीं चली और JD(U) ने जुलाई 2017 में महागठबंधन से अलग होकर भाजपा के साथ सरकार बना ली।