महापर्व छठ पूजा का है विशेष महत्व, जानें इस पर्व से जुड़ी हर बात
इस साल छठ पूजा 31 अक्टूबर से 3 नवंबर तक है। इस महापर्व का आगाज़ सूर्य उपासना से किया जाता है। पूर्वी भारत में मनाए जाने वाले इस पर्व का मुख्य केंद्र बिहार रहा है, लेकिन समय के साथ-साथ यह पर्व केवल पूरे देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी मनाया जाने लगा है। इसलिए आज हम आपको इस पर्व से जुड़ी खास बातें बताने जा रहे हैं। तो आइए जानें।
नहाय-खाय से व्रत की शुरुआत
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से शुरू होने वाले इस महापर्व को छठ, सूर्य षष्ठी पूजा आदि कई नामों से जाना जाता है। इस पर्व की शुरुआत नहाय-खाय से होती है। मान्यता है कि इस व्रत को रखने से पहले तन और मन दोनों साफ होने चाहिए। इस दिन व्रती स्नान कर नए कपड़े पहनते हैं और शुद्ध सात्विक भोजन करते हैं। इस दिन चने की दाल और लौकी की सब्जी खाने का विशेष महत्व होता है।
व्रत के दूसरे दिन खरना
नहाय-खाय के बाद दूसरे दिन खरना होता है। इस बार खरना 1 नवंबर को है। खरना वाले दिन व्रती दिनभर कुछ भी खाते-पीते नहीं हैं। शाम में व्रतियों के द्वारा गुड़ वाली खीर विशेष प्रसाद के रुप में बनाई जाती है। पूजा-पाठ करने के बाद व्रती इस प्रसाद को ग्रहण करते हैं व प्रसाद ग्रहण करने के बाद घर के सभी सदस्यों को यह प्रसाद बांटते हैं। इसी दिन व्रती अगले दिन की पूजा के लिए भी प्रसाद बनाते हैं।
तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य
इस बार सूर्य अर्घ्य 2 नवंबर को दिया जाएगा। जिस प्रकार हिंदू धर्म में उगते हुए सूर्य की पूजा का विशेष महत्व है। ठीक उसी प्रकार छठ पूजा के दौरान डूबते हुए सूर्य की पूजा की जाती है। व्रती पूरे दिन निर्जला व्रत रखकर शाम में पूजा की तैयारी करते हैं। नदी या तलाब में व्रती खड़े होकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इस प्रक्रिया के बाद व्रती अगले दिन की पूजा की तैयारी में लग जाते हैं।
चौथे दिन पूजा का समापन
इस बार 3 नवंबर को व्रत का समापन किया जाएगा। छठ पूजा के चौथे दिन यानी सप्तमी तिथि को इस पर्व का समापन किया जाता है। व्रत के समापन के दौरान उगते हुए सूर्य की पूजा की जाती है। सूर्य की उपासना के बाद वहां मौजूद लोगों को प्रसाद दिया जाता है। इसके अलावा मान्यता के अनुसार अगर कोई भी व्यक्ति श्रद्धा भाव से व्रत रखकर सूर्य देव की उपासना करता है, तो उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।