जम्मू-कश्मीर में 5 अन्य राज्यों के साथ होंगे विधानसभा चुनाव? अटकलें तेज
जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव की सुगबुगाहट फिर तेज हो गई है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि श्रीनगर में सफल G-20 बैठक के बाद 5 अन्य राज्यों के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर में भी चुनाव की तारीखों का ऐलान हो सकता है। उनका कहना है कि बीते कुछ दिनों से घाटी में जिस तरह से सियासी हलचल बढ़ी है, उससे महसूस हो रहा है कि यहां बाकी राज्यों के साथ चुनाव कराए जा सकते हैं।
चुनाव की तैयारियों में जुटे आजाद
डेमोक्रेटिक प्रोगेसिव आजाद पार्टी (DPAP) मुखिया गुलाम नबी आजाद बीते कुछ दिन से जम्मू-कश्मीर के अलग-अलग क्षेत्रों में जाकर रैलियां और जनता से संवाद कर रहे हैं। पार्टी नेताओं का कहना है कि जम्मू-कश्मीर में अब परिसीमन भी हो गया है तो सभी पार्टियों को चुनाव के लिए तैयार रहना पड़ेगा। रविवार को आजाद ने एक बड़ी चुनावी बैठक की थी, जिसमें उनकी पार्टी ने अनुच्छेद 370 हटाने से पहले के कश्मीर के एजेंडे को आगे बढ़ाने की वकालत की।
DPAP ने तैयार की डोर-टू-डोर कैंपेन की योजना
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, आजाद की पार्टी DPAP ने चुनाव के लिए रणनीति बनाने का काम शुरू कर दिया है। DPAP डोर-टू-डोर कैंपेन की योजना तैयार भी कर चुकी है।
महबूबा मुफ्ती और फारूक अब्दुल्ला भी हुए सक्रिय
जम्मू-कश्मीर में सिर्फ आजाद ही नहीं, बल्कि पूर्व मुख्यमंत्री और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) नेता महबूबा मुफ्ती ने भी सियासी माहौल बनाना शुरू कर दिया है। वह रविवार को घाटी के प्रमुख खीर भवानी मंदिर में दर्शन करने पहुंचीं और हिंदू-मुस्लिम एकता को आगे बढ़ाने की बात कही। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) प्रमुख फारूक अब्दुल्ला ने भी घाटी में चुनाव कराने की मांग तेज कर दी है।
भाजपा नेता बोले- बूथ स्तर पर शुरू हो चुका है काम
भाजपा की कोर कमेटी से जुड़े हुए एक वरिष्ठ नेता भी मानते हैं कि पार्टी ने बूथ स्तर पर तेजी से काम शुरू कर दिया है। उनका अनुमान है कि नए परिसीमन के बाद घाटी में अनुकूल माहौल देखते हुए चुनाव कराए जा सकते हैं। बता दें कि पिछले साल 2022 में जम्मू कश्मीर में परिसीमन का काम पूरा हो गया था। जम्मू-कश्मीर में 90 विधानसभा और 5 लोकसभा सीटें तय हुईं हैं।
क्या आजाद के एजेंडे से भाजपा को मिलेगा फायदा?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आजाद जिस तरीके से अपनी रैलियों में पुराने कश्मीर की बात कह रहे हैं, उससे भाजपा को फायदा हो सकता है। राजनीतिज्ञों का मानना है कि वह अनुच्छेद 370 की वकालत करते हुए केंद्र सरकार का जितना विरोध करेंगे, उतना ही वोटों का बंटवारा होगा और भाजपा को फायदा होगा। उनके एजेंडे के पीछे की वजह ये भी है कि अन्य राजनेता भी इसकी वकालत करते आए हैं।
2019 में हुआ था जम्मू-कश्मीर का पुनर्गठन
केंद्र सरकार ने अगस्त, 2019 में जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त करते हुए राज्य को 2 केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया था। सरकार ने जम्मू-कश्मीर को अलग और लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाया था। जम्मू-कश्मीर में जहां विधानसभा का प्रावधान किया गया था, वहीं लद्दाख में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। सरकार ने भविष्य में जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने की भी बात कही है।