महाराष्ट्र: देवेंद्र फडणवीस ने एकनाथ शिंदे को 20 मिनट में मनाया, सामने आई अंदर की कहानी
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के 12 दिन बाद आज शपथ ग्रहण समारोह होने जा रहा है। भाजपा के देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं और शिवसेना के एकनाथ शिंदे उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। बीते 12 दिनों में कई बार ऐसी खबरें आईं कि शिंदे उपमुख्यमंत्री नहीं बनना चाहते और कथित तौर पर नाराज भी बताए गए। फडणवीस ने शिंदे को पद लेने के लिए राजी किया। आइए अंदर की कहानी जानते हैं।
20 मिनट में फडणवीस ने शिंदे को मनाया
कल यानी 4 दिसंबर को सरकार बनाने का दावा पेश करने के बाद फडणवीस शिंदे के आवास पर पहुंचे और उनसे मंत्रिमंडल में शामिल होने का आग्रह किया। बताया जाता है कि इस वक्त तक शिंदे गृह मंत्रालय की मांग पर अड़े हुए थे। न्यूज 18 के मुताबिक, 20 मिनट की मुलाकात के दौरान शिंदे ने अपनी मांगें सामने रखीं। इस दौरान फडणवीस ने उन्हें आश्वासन दिया कि विभागों के बंटवारे में मांगों का ध्यान रखा जाएगा।
उपमुख्यमंत्री क्यों नहीं बनना चाहते थे शिंदे?
न्यूज 18 ने सूत्रों के हवाले से कहा कि शिंदे चाहते थे कि उनकी जगह पार्टी का कोई वरिष्ठ नेता उपमुख्यमंत्री बने। हालांकि, पार्टी कार्यकर्ताओं की लगातार मांग के बाद वे उपमुख्यमंत्री पद के लिए राजी हो गए। शिवसेना विधायक भरत गोगावले ने कहा, "हमने उनसे सरकार का हिस्सा बनने का आग्रह किया, क्योंकि इससे पार्टी और प्रशासन दोनों को मदद मिलेगी।" उदय सामंत ने कहा, "लगभग 60-61 विधायकों ने इस पद के लिए शिंदे का समर्थन किया।"
पहले से तय था फडणवीस बनेंगे मुख्यमंत्री
दैनिक भास्कर के मुताबिक, अगस्त में ही भाजपा ने ये तय कर लिया था कि महायुति की सरकार में मुख्यमंत्री उसका ही बनेगा। शिंदे और अजित पवार को भी पहले से इसकी जानकारी थी। जून, 2022 में शिंदे मुख्यमंत्री बने, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कहने पर फडणवीस ने उपमुख्यमंत्री पद स्वीकार किया था। 23 नवंबर को चुनावी नतीजे आते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फडणवीस को फोन किया था और अगला मुख्यमंत्री बनने की बधाई तक दे दी थी।
क्या थी शिंदे की हिचकिचाहट की वजह?
शिंदे का मानना था कि उपमुख्यमंत्री पद स्वीकार करने से सरकार में शिवसेना की उपस्थिति मजबूत होगी और पार्टी के हितों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी। लेकिन मुख्यमंत्री के बाद उपमुख्यमंत्री बनना एक तरह से करियर में गिरावट जैसा था। हालांकि, अगर वे पद से इनकार कर देते तो महायुति गठबंधन के भीतर शिवसेना का प्रभाव कम हो सकता था। उपमुख्यमंत्री बनने से महायुति के भीतर शिवसेना की अहमियत भी बनी रहेगी।