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    होम / खबरें / राजनीति की खबरें / क्या है महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच जमीन विवाद और अभी यह सुर्खियों में क्यों है?
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    क्या है महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच जमीन विवाद और अभी यह सुर्खियों में क्यों है?

    क्या है महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच जमीन विवाद और अभी यह सुर्खियों में क्यों है?

    लेखन मुकुल तोमर
    Jan 28, 2021
    02:45 pm

    क्या है खबर?

    महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के कर्नाटक के कुछ इलाकों पर दावा करने के बाद कर्नाटक सरकार ने मुंबई पर अपना दावा ठोकते हुए इसे केंद्र शासित प्रदेश बनाने की मांग की है।

    दोनों राज्यों की सरकारों के बीच इस बयानबाजी ने उनके बीच चले आ रहे दशकों पुराने जमीन विवाद को सुर्खियों में ला दिया है।

    यह जमीन विवाद क्या है और अभी यह सुर्खियों में क्यों है, आइए आपको बताते हैं।

    पृष्ठभूमि

    1956 में नए राज्यों के निर्माण से होती है विवाद की शुरूआत

    महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच जमीन विवाद बेलगाम और इसके आसपास के 800 से अधिक गांवों को लेकर है और इसकी शुरूआत 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम के लागू होने के साथ होती है।

    इस अधिनियम के तहत भाषा के आधार पर नए राज्य बनाए गए थे और 1956 तक बॉम्बे राज्य का हिस्सा रहे बेलगाम और 10 तालुकाओं को मैसूर (कर्नाटक) राज्य को दे दिया गया था। इन इलाकों को कन्नड़ बहुल मानते हुए ये फैसला लिया गया था।

    विवाद

    विवाद के समाधान के लिए 1966 में बनाया गया महाजन आयोग

    हालांकि महाराष्ट्र तभी से इस बंटवारे का विरोध करता आ रहा है और बेलगाम, कारवार और निपाणी को उसे सौंपने की मांग कर रहा है। महाराष्ट्र का दावा है कि इन इलाकों में मराठी बोलने वाले लोग बहुलता में हैं और इसलिए इन्हें उन्हें सौंपा जाना चाहिए।

    दोनों राज्यों के बीच इस विवाद को सुलझाने के लिए अक्टूबर, 1966 में महाजन आयोग का गठन भी किया गया जिसका नेतृत्व पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) मेहर चंद महाजन ने किया।

    आयोग रिपोर्ट

    आयोग ने दिया 247 गांवों को महाराष्ट्र को सौंपने का सुझाव

    महाजन आयोग ने अगस्त, 1967 में अपनी रिपोर्ट सौंपते हुए सुझाव दिया कि कर्नाटक के 264 गांवों को महाराष्ट्र को सौंप दिया जाए और बेलगाम समेत 247 गांव कर्नाटक के पास ही रहने दिए जाए।

    कर्नाटक ने तो इस रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया और तब से इसे लागू करने की मांग कर रहा है, लेकिन महाराष्ट्र ने इसे मानने से इनकार कर दिया और इसे पक्षपातपूर्ण और अतार्किक बताते हुए इसकी समीक्षा की मांग की।

    कानूनी लड़ाई

    2004 में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा महाराष्ट्र

    महाराष्ट्र तभी से बेलगाम समेत कर्नाटक के 814 गांवों को खुल को सौंपने की मांग करता आ रहा है और उसने इस संबंध में 2004 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका भी दायर की। इस याचिका में संविधान के अनुच्छेद 131(b) का हवाला देते हुए कोर्ट से सीमा विवाद का समाधान करने को कहा गया है।

    मामला अभी भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है और इस पर सुनवाई चल रही है।

    राजनीतिक कदम

    कर्नाटक ने बेलगाम को बनाया उपराजधानी, बदला नाम

    महाराष्ट्र के सुप्रीम कोर्ट जाने के बाद बनी परिस्थितियों को देखते हुए कर्नाटक ने 2006 में बेलगाम को अपनी उपराजधानी घोषित कर दिया और यहां बेंगलुरू के विधानसभा भवन 'सुवर्णसौध' की तर्ज पर एक विधानसभा भवन बनाया गया है जिसमें हर साल एक सत्र का आयोजन किया जाता है।

    इसके अलावा 2014 में कर्नाटक सरकार ने बेगगाम का नाम बदलकर बेलगावी कर दिया और मौजूदा विवाद की जड़ उसका यही फैसला है।

    बयान

    उद्धव ठाकरे ने कहा- कर्नाटक को नाम नहीं बदलना चाहिए था

    दरअसल, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे 2019 में महाविकास अघाड़ी गठबंधन की सरकार आने के बाद से ही इस मामले में सक्रिय बने हुए हैं और इसी हफ्ते अपने एक बयान में उन्होंने कहा था कि कर्नाटक को बेलगाम का नाम नहीं बदलना चाहिए था क्योंकि मामला अभी भी कोर्ट में लंबित है।

    उन्होंने बेलगाम समेत अन्य इलाकों को महाराष्ट्र में शामिल करने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराते हुए बेलगाम को केंद्र शासित प्रदेश घोषित करने की मांग की थी।

    पलटवार

    ठाकरे के जवाब में कर्नाटक ने किया मुंबई पर दावा

    ठाकरे के इस बयान पर पलटवार करते हुए कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री लक्ष्मण सवादी ने मुंबई पर अपना दावा ठोक दिया। उन्होंने कहा कि मुंबई पर कर्नाटक के लोगों का भी अधिकार है और इसलिए इसे कर्नाटक को सौंपा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जब तक इस मामले का फैसला नहीं होता मुंबई को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया जाए।

    राज्य के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने भी कहा है कि उनका राज्य महाजन आयोग की रिपोर्ट को अंतिम मानता है।

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