2024 चुनाव में 333 सीटें जीतना भाजपा का लक्ष्य, दक्षिण भारत में बेहतर प्रदर्शन पर ध्यान
क्या है खबर?
लोकसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत दर्ज करने वाली भारतीय जनता पार्टी यहीं पर नहीं रुकने वाली है और 2024 लोकसभा चुनाव में उसका लक्ष्य 333 सीटें जीतने का है।
इस बार भाजपा ने 303 सीटों पर जीत दर्ज की है और दक्षिण भारत को छोड़कर हर जगह उसका प्रदर्शन शानदार रहा।
अगले चुनाव में भाजपा का लक्ष्य दक्षिण भारतीय राज्यों में भी अच्छा प्रदर्शन करने और 'हिंदी भाषी पार्टी' की छवि को तोड़कर अखिल भारतीय पार्टी बनने पर होगा।
लक्ष्य
तटीय राज्यों में बेहतर प्रदर्शन भाजपा का लक्ष्य
ये बातें भाजपा के राष्ट्रीय सचिव और आंध्र प्रदेश और त्रिपुरा के प्रभारी सुनील देवधर ने 'हिंदुस्तान टाइम्स' के साथ इंटरव्यू में कही हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से भाजपा में आए देवधर ने कहा, "अगर हमें 333 सीटें जीतनी हैं तो हमें पश्चिम बंगाल से लेकर तमिलनाडु तक के तटीय राज्यों में जड़े जमानी होंगी।"
हालांकि, उन्होंने माना कि 333 सीटों के लक्ष्य को हासिल करने के लिए भाजपा को हिंदी भाषियों की पार्टी की छवि को तोड़ना होगा।
जानकारी
बंगाली सीख चुके देवधर ने किया तेलुगू सीखना शुरू
इस छवि को तोड़ने के लिए खुद देवधर ने तेलुगू सीखना शुरू कर दिया है, वहीं बंगाली वह पहले ही सीख चुके हैं। उन्होंने कहा, "अगर आप लोगों के दिलों में बसना चाहते हैं तो आपको उनकी भाषा सीखनी होगी।"
छवि
हिंदी भाषी पार्टी की छवि को तोड़ेगी भाजपा
वरिष्ठ पदाधिकारियों के अनुसार, दक्षिण भारत में अपना कद बढ़ाने के लिए अगले चुनाव में भाजपा खुद को 'हिंदी भाषी संगठन' की बजाय अखिल भारतीय पार्टी के तौर पर पेश करेगी।
पार्टी ने दक्षिण भारत के 5 में 4 राज्यों में संगठन को मजबूत करने की तैयारियां शुरु कर दी हैं।
पदाधिकारियों का कहना है कि पार्टा का लक्ष्य इन राज्यों में पश्चिम बंगाल की तरह प्रदर्शन करने का है, जहां उसका आंकड़ा 2 से 18 सीटों पर पहुंच गया।
डाटा
दक्षिण भारत के तीन राज्यों में एक भी सीट नहीं
बता दें कि भाजपा ने दक्षिण भारत के कर्नाटक में 28 में से 25 और तेलंगाना में 17 में से 4 सीटों पर कब्जा किया। लेकिन वह तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश में एक भी सीट जीतने में नाकामयाब रही।
योजना
RSS की मदद से बूथ लेवल से खड़ी होगी पार्टी
इस पर देवधर ने कहा कि कर्नाटक में भाजपा को इसलिए सफलता मिली क्योंकि यह मुख्य धारा के राज्यों की तरह है और तमिलनाडु और तेलंगाना से इतर यहां क्षेत्रीय पार्टी जनता दल (सेक्युलर) का पूरे राज्य में प्रभाव नहीं है।
वहीं पदाधिकारियों ने कहा कि अब गठबंधन बनाने नहीं बल्कि पार्टी को मजबूत करने पर ध्यान होगा और उसे RSS के सहयोग से बूथ लेवल से दोबारा खड़ा किया जाएगा।
कठिनाईयां
आसान नहीं है दक्षिण भारत के किले को भेदने का लक्ष्य
हालांकि, ये भाजपा के लिए इतना आसान नहीं होने जा रहा है क्योंकि वहां ज्यादातर राज्यों में उसकी लड़ाई सीधे क्षेत्रीय पार्टियों से हैं।
दक्षिण भारत की राजनीति को भी उत्तर भारत से कई मायनों में अलग माना जाता है।
यही कारण है कि आंध्र प्रदेश में भाजपा को इस बार नोटा से भी कम 0.9 प्रतिशत वोट मिले। लेकिन इन राज्यों में RSS का संगठन भाजपा के लिए काफी फायदेमंद साबित हो सकता है।