शारदीय नवरात्रि: जानिए इसका महत्व, तिथि और कैसे मनाएं
शारदीय नवरात्रि का शुभ त्योहार बस आने ही वाला है और मां दुर्गा के भक्त 9 दिनों तक चलने वाले इस उत्सव को धूमधाम से मनाने के लिए तैयारी कर रहे हैं। आगामी नवरात्रि आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तिथि तक मनाई जाएगी। इस दौरान भक्त मां दुर्गा और उनके 9 अवतारों की पूजा करते हैं। आइए आज हम आपको शारदीय नवरात्रि की सही तिथि, इसका महत्व और इससे जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बताते हैं।
अलग-अलग दिन पर होते हैं 9 देवियों की पूजा-अर्चना
नवरात्रि 9 दिनों तक चलती है, जिसके दौरान 9 अलग-अलग देवियों को पूजा जाता है, जो कि इस प्रकार हैं: 15 अक्टूबर (प्रथम नवरात्रा)- शैलपुत्री देवी 16 अक्टूबर (द्वितीय नवरात्रा)- ब्रह्मचारिणी देवी 17 अक्टूबर (तृतीय नवरात्रा)- चंद्रघंटा देवी 18 अक्टूबर (चतुर्थी नवरात्रा)- कुष्माण्डा देवी 19 अक्टूबर (पंचम नवरात्रा)- स्कंदमाता 20 अक्टूबर (छष्ठी नवरात्रा)- कात्यायनी देवी 21 अक्टूबर (सप्तम नवरात्रा)- कालरात्रि देवी 22 अक्टूबर (अष्टमी)- महागौरी देवी 23 अक्टूबर (नवमी)- सिद्धिदात्री माता
बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है शारदीय नवरात्रि
भगवान ब्रह्मा ने राक्षस महिषासुर को एक शर्त के साथ अमरता का वरदान दिया था, लेकिन शर्त थी कि उसे एक महिला ही हरा सकेगी। राक्षस को विश्वास नहीं था कि कोई भी महिला उसे हराने के लिए पर्याप्त शक्तिशाली होगी और उसने पृथ्वी पर लोगों को आतंकित करना शुरू कर दिया। इसके बाद भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान शिव ने अपनी ऊर्जा को मिलाकर देवी दुर्गा बनाया, जिन्होंने 10 दिनों के युद्ध के बाद उसका विनाश किया।
नवरात्रि का महत्व
9 दिनों के उत्सव के बाद दुर्गा विसर्जन और विजयादशमी या दशहरा के साथ नवरात्रि उत्सव समाप्त होता है। इस दिन मां दुर्गा के भक्त उनकी मूर्तियों को जलाशयों में विसर्जित करते हैं और अगले वर्ष उनके आने की कामना करते हैं। यह भगवान राम की रावण पर और मां दुर्गा की महिषासुर पर विजय का भी प्रतीक है। साथ ही नवरात्रि की साधना व्यक्ति को मानसिक रूप से मजबूती प्रदान करने और आध्यात्मिक इच्छाओं की पूर्ति कर सकती है।
कैसे मनाएं नवरात्रि?
आप चाहें तो नवरात्रि के दौरान 8 या 9 दिनों तक उपवास रखकर मां दुर्गा की पूजा-अर्चना कर सकते हैं या फिर अपने घर पर कीर्तन का आयोजन रख सकते हैं। अगर आप पहली बार नवरात्रि के उपवास रख रहे हैं तो यह जरूरी है कि आप इसकी कलश स्थापना से शुरुआत करें और दशमी तक अखंड दीपक जलाएं और दुर्गा सप्तशती और दुर्गा चालीसा का पाठ करें। इसके अलावा उपवास के दौरान अनाज की बजाय सात्विक आहार खाएं।