नहाय खाय से लेकर उषा अर्घ्य तक, जानिए छठ के 4 दिनों का महत्व
भगवान सूर्य को समर्पित छठ भारत के सबसे प्राचीन हिंदू त्योहारों में से एक है। इस अवसर पर 36 घंटे तक कठोर व्रत रखने वाली महिलाएं उगते और डूबते सूर्य को अर्घ्य देती हैं और छठी मैया को पूजती हैं। इस बार यह त्योहार 5 नवंबर से शुरू है और इसका समापन 8 नवंबर को होगा। आइए आज हम आपको इस त्योहार के 4 दिनों के महत्व के बारे में विस्तार से बताते हैं।
नहाय खाय
छठ का त्योहार नहाय-खाय से शुरू होता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन के व्रत को रखने से पहले तन और मन दोनों साफ होने चाहिए। इसलिए परवैतिन (छठ पूजा का व्रत करने वाली महिलाएं) पवित्र जल से स्नान करके नए कपड़े पहनती हैं और शुद्ध सात्विक भोजन करती हैं। इस अवसर पर चने की दाल और लौकी की सब्जी खाने का विशेष महत्व होता है। यहां जानिए छठ के त्योहार का इतिहास और महत्व।
खरना
नहाय खाय के बाद दूसरा दिन खरना का होता है। इस दिन व्रत रखने वाली महिलाएं दिनभर कुछ भी खाती-पीती नहीं हैं और शाम में व्रतियों के द्वारा गुड़ वाली खीर विशेष प्रसाद के रुप में बनाई जाती है। पूजा-पाठ करने के बाद व्रती इस प्रसाद को ग्रहण करते हैं और प्रसाद ग्रहण करने के बाद घर के सदस्यों को यह प्रसाद बांटते हैं। इसी दिन व्रती अगले दिन की पूजा के लिए भी प्रसाद बनाया जाता है।
छठ
छठ का मुख्य दिन त्योहार के तीसरे दिन होता है। जिस प्रकार हिंदू धर्म में उगते हुए सूर्य की पूजा का विशेष महत्व है, ठीक उसी प्रकार छठ की पूजा के दौरान डूबते हुए सूर्य की पूजा की जाती है। व्रती पूरे दिन निर्जला व्रत रखकर शाम में पूजा की तैयारी करते हैं, फिर नदी या तलाब में खड़े होकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इसके बाद व्रती अगले दिन की पूजा की तैयारी में लग जाते हैं।
उषा अर्घ्य
चौथे दिन त्योहार का समापन होता है और इसके दौरान उगते हुए सूर्य की पूजा की जाती है। सूर्य की उपासना के बाद वहां मौजूद लोगों को प्रसाद दिया जाता है। मान्यता के अनुसार, अगर कोई भी व्यक्ति श्रद्धा भाव से व्रत रखकर सूर्य देव की उपासना करता है तो उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। यह त्योहार मुख्य रूप से बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है।