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छठ पूजा कब है? जानिए भगवान सूर्य को समर्पित इस त्योहार का महत्व और इतिहास

छठ पूजा कब है? जानिए भगवान सूर्य को समर्पित इस त्योहार का महत्व और इतिहास

लेखन अंजली
Nov 01, 2024
03:42 pm

क्या है खबर?

आस्था का महापर्व छठ बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस अवसर पर महिलाएं अपने परिवार और बच्चों की खुशहाली, समृद्धि और प्रगति के लिए कठोर व्रत रखती हैं और छठी मैया के साथ-साथ भगवान सूर्य की पूजा करती हैं। आइए जानते हैं कि इस साल यह 4 दिवसीय त्योहार कब है और इसे मनाने के पीछे क्या कारण क्या है।

तिथि

कब है छठ?

हर साल कार्तिक मास की चतुर्थी तिथि से सप्तमी तिथि तक यह 4 दिवसीय त्योहार मनाया जाता है, जो इस बार 5 नवंबर से लेकर 8 नवंबर तक है। इसका पहला दिन नहाय खाय का होता है, दूसरा खरना, तीसरा छठ पूजा और आखिरी दिन उषा अर्घ्य का। प्रत्येक दिन छठी का पालन करने वाले लोग कठोर रीति-रिवाजों का पालन करते हैं। द्रिक पंचांग के अनुसार, छठ पूजा पर सूर्योदय सुबह 06:38 बजे होगा और सूर्यास्त शाम 05:32 बजे होगा।

इतिहास

यह त्योहार क्यों मनाया जाता है?

इस त्योहार से जुड़ी कई किंवदंतियां हैं और कुछ का उल्लेख ऋग्वेद ग्रंथों में भी मिलता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के मुताबिक, द्रौपदी और पांडव अपने राज्य को दोबारा पाने और अपने मुद्दों को हल करने के लिए छठ पूजा का पालन करते थे। एक किंवदंती ये भी है कि सूर्य पुत्र कर्ण छठ पूजा करते थे। उन्होंने महाभारत काल के दौरान आधुनिक बिहार के भागलपुर पर शासन किया था। तभी से छठ का त्योहार मनाया जाता आ रहा है।

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महत्व

छठ पूजा का महत्व 

छठ के दौरान भक्त सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं और भगवान सूर्य समेत छठी मैया से उनका आशीर्वाद प्राप्त करने और अपने परिवार के सदस्यों की समृद्धि और कल्याण के लिए प्रार्थना करते हैं। भगवान सूर्य को अर्घ्य देते समय भक्त ऋग्वेद ग्रंथों के मंत्रों का भी जाप करते हैं। यह भी कहा जाता है कि वैदिक युग के ऋषि सूर्य की किरणों से ऊर्जा प्राप्त करने के लिए खुद को सीधी धूप में रखकर छठ पूजा करते थे।

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तरीका

छठ मनाने का तरीका 

नहाय खाय पर भक्त गंगा नदी आदि के पवित्र जल से नहाकर भगवान सूर्य के लिए प्रसाद तैयार करते हैं। खरने वाले दिन व्रती दिनभर कुछ भी खाते-पीते नहीं हैं और शाम में गुड़ वाली खीर विशेष प्रसाद के रुप में बनाई जाती है। छठ पूजा वाले दिन व्रती नदी या तलाब में खड़े होकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं। उषा अर्घ्य के दिन उगते हुए सूर्य की पूजा करके लोगों को प्रसाद दिया जाता है।

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