मंदिर विशेष: कई रहस्यों से भरा है तिरुपति बालाजी मंदिर, जानिए इससे जुड़ी खास बातें
भारत में कई ऐसे मंदिर हैं, जहां हमेशा दर्शन करने वालों का तांता लगा रहता है। इन्हीं मंदिरों में शुमार है आंध्र प्रदेश के तिरूपति बालाजी का मंदिर। भगवान तिरूपति बालाजी की मान्याता इतनी है कि इनके मंदिर में फिल्मी सितारों से लेकर राजनेता आदि सभी लोग दर्शन करने आते हैं। बता दें कि भगवान तिरूपति बालाजी इस मंदिर में अपनी पत्नी के साथ विराजमान हैं। आइए इस मंदिर से जुड़ी कुछ खास बातें जानते हैं।
मंदिर के इतिहास को लेकर हैं मतभेद
तिरुपति से जुड़े इतिहास को लेकर अभी तक इतिहासकारों में मतभेद हैं क्योंकि यह साफ नहीं है कि 5वीं शताब्दी तक यह धार्मिक केंद्र के रूप में स्थापित हुआ था या नहीं। स्थानीय लोगों की मानें तो चोल, होयसल और विजयनगर के राजाओं का इस मंदिर के निर्माण में खास योगदान था। 9वीं शताब्दी में कांचीपुरम के पल्लव शासकों ने यहां पर अपना अधिकार कर लिया था और 15वीं शताब्दी के बाद से मंदिर विशेष रूप से प्रसिद्ध होने लगा।
कई रहस्यों से परिपूर्ण है तिरूपति बालाजी का मंदिर
श्री वेंकटेश्वर का पवित्र और प्राचीन मंदिर पर्वत की वेंकटाद्रि नामक 7वीं चोटी पर स्थित है, जो श्री स्वामी पुष्करणी नामक तालाब के किनारे है। इसी वजह से तिरूपति बालाजी को भगवान वेंकटेश्वर के नाम से जाना जाता है। भारत के सभी मंदिर में से तिरूपति बालाजी के मंदिर को सबसे अमीर माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि तिरूपति बालाजी अपने भक्तों की सभी मुरादें पूरी करते हैं, जिसके बाद भक्त यहां आकर अपने बाल दान करते हैं।
मूर्ति से आती है समुद्री लहरों की आवाज
स्थानीय लोगों के अनुसार, भगवान की मूर्ति पर कान लगाकर सुनने पर समुद्र की लहरों की ध्वनि सुनाई देती है। शायद इसी वजह से मंदिर में स्थापित मूर्ति हमेशा नम रहती है।
मंदिर में छड़ी की अनोखी कहानी
तिरुपति बालाजी मंदिर के मुख्य द्वार के दरवाजे के दायीं तरफ एक छड़ी रखी हुई है। इस छड़ी के बारे में यह कहा जाता है कि बाल्यावस्था में इस छड़ी से ही भगवान तिरूपति बालाजी की पिटाई की गई थी, जिस वजह से उनकी ठुड्डी पर चोट लग गई थी। इसी कारणवश तब से लेकर आज तक उनकी ठुड्डी पर हर शुक्रवार को चंदन का लेप लगाया जाता है ताकि घाव भर सके। अब यह प्रथा बन गई है।
भगवान की मूर्ति है रहस्यमयी
कहते हैं मंदिर में स्थापित तिरूपति बालाजी की दिव्य काली मूर्ति किसी ने बनाई नहीं बल्कि वह जमीन से प्रकट हुई है। वेंकटाचल पर्वत को भी भगवान का रूप माना जाता है, जहां भक्त नंगे पैर ही आते हैं। इतना ही नहीं, मंदिर में भगवान वेंकटेश्वर की मूर्ति पर लगे बाल असली हैं, जो कभी उलझते नहीं हैं। मान्यता है कि ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि यहां भगवान वेंकटेश्वर खुद ही विराजते हैं।
भगवान की मूर्ति को आता है पसीना
यह सच है कि भगवान तिरूपति बालाजी की प्रतिमा एक विशेष प्रकार के चिकने पत्थर से बनी हुई है, मगर यह पूरी तरह से जीवंत लगती है। बता दें कि भगवान के पूरे मंदिर के वातावरण को काफी ठंडा रखा जाता है। उसके बावजूद मान्यता है कि बालाजी को बहुत गर्मी लगती है, जिस वजह से उनके शरीर पर पसीने की बूंदें आसानी से देखी जा सकती हैं और उनकी पीठ भी नम रहती है।
अनोखे तरीके से होता है भगवान का श्रृंगार
तिरूपति बालाजी का श्रृंगार बेहद ही अनोखे तरीके से किया जाता है। दरअसल, भगवान की प्रतिमा को प्रतिदिन नीचे धोती और ऊपर साड़ी से सजाया जाता है। मान्यता है कि बालाजी में ही माता लक्ष्मी का रूप समाहित है इसलिए ऐसा श्रृंगार किया जाता है।
तिरूपति बालाजी की मूर्ति में ही समाहित हैं मां लक्ष्मी
तिरूपति बालाजी, भगवान विष्णु के ही रूप हैं, इसलिए भगवान बालाजी के हृदय पर मां लक्ष्मी विराजमान रहती हैं। मां लक्ष्मी की मौजूदगी का पता तब चलता है जब हर गुरुवार को बालाजी का पूरा श्रृंगार उतारकर उन्हें स्नान करावाकर चंदन का लेप लगाया जाता है। जब चंदन लेप हटाया जाता है तब उनके हृदय पर लगे चंदन में देवी लक्ष्मी की छवि उभर आती है।
भगवान को चढ़ाई गई तुलसी को फेंका जाता है कुएं में
भगवान विष्णु को तुलसी के पत्ते विशेष प्रिय हैं, इसलिए इनकी पूजा में तुलसी के पत्ते का बहुत महत्व है। इतना ही नहीं, सभी मंदिरों में भी भगवान को चढ़ाई गयीं तुलसी की पत्तियां बाद में प्रसाद के रूप में भक्तों को दी जाती हैं। तिरूपति बालाजी में भी भगवान को रोज तुलसी की पत्तियां चढ़ाई जाती हैं, लेकिन उसे भक्तों को प्रसाद के रूप में नहीं दी जाती बल्कि मंदिर परिसर के कुंए में डाल दी जाती है।
मंदिर में रोजाना बनाए जाते हैं तीन लाख लड्डू
स्थानीय लोगों द्वारा मिली जानकारी के मुताबिक, तिरुपति बालाजी मंदिर में रोजाना देसी घी के तीन लाख लड्डू बनाए जाते हैं। हैरानी की बात तो यह है कि इन लड्डूओं के बनाने के लिए यहां के कारीगर 300 साल पुरानी पारंपरिक विधि का प्रयोग करते हैं। बता दें कि इन लड्डूओं को तिरूपति बालाजी मंदिर की गुप्त रसोई में बनाया जाता है। इस गुप्त रसोईघर को लोग पोटू के नाम से जानते हैं।
मंदिर से कुछ किमी दूर स्थित गांव है बेहद विशेष
भगवान तिरूपति बालाजी के मंदिर से 23 किमी दूर एक गांव है, जहां बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश वर्जित है। बता दें कि यहां पर लोग बहुत ही नियम और संयम के साथ रहते हैं। मान्यता है कि बालाजी को चढ़ाने के लिए फल, फूल, दूध, दही और घी आदि सभी सामग्रियां यहीं पर बनती हैं और यहां से आती हैं। इसके अलावा, इस गांव में महिलाएं सिले हुए कपड़े धारण नहीं करती हैं।