सुनीता विलियम्स को अंतरिक्ष में हुआ स्पेसफ्लाइट एसोसिएटेड न्यूरो-ऑकुलर सिंड्रोम, जानिए क्या है यह
नासा की अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स अपने साथी बुच विल्मोर के साथ बोइंग स्टारलाइनर मिशन के तहत अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (ISS) पर गई थी, लेकिन अंतरिक्ष यान में तकनीकी खराबी के कारण वह अभी वहीं फंस गई हैं। अब सामने आया है कि माइक्रोग्रैविटी जैसे कारणों की वजह से विलियम्स की आंखें प्रभावित हो गई हैं और उनको स्पेसफ्लाइट एसोसिएटेड न्यूरो-ऑकुलर सिंड्रोम हो गया है। आइए जानते हैं कि स्पेसफ्लाइट एसोसिएटेड न्यूरो-ऑकुलर सिंड्रोम क्या है।
माइक्रोग्रैविटी का कैसे आंखों को प्रभावित करती है?
अंतरिक्ष की माइक्रोग्रैविटी में अंतरिक्ष यात्री और वस्तुएं अंतरिक्ष में तैरती हैं, जिससे अंतरिक्ष में जाने वालों का खून और अन्य शारीरिक तरल पदार्थ ऊपर की ओर स्थानांतरित हो जाते हैं। इस स्थिति को 'सेफलाड फ्लूइड शिफ्ट' कहते हैं। यह फ्लूड आंखों और मस्तिष्क सहित शरीर के विभिन्न हिस्सों को प्रभावित कर सकता है, जिससे स्पेसफ्लाइट एसोसिएटेड न्यूरो-ऑकुलर सिंड्रोम का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए माइक्रोग्रैविटी के संपर्क में लंबे समय तक रहने से विलियम्स का स्वास्थ्य बिगड़ रहा है।
स्पेसफ्लाइट एसोसिएटेड न्यूरो-ऑकुलर सिंड्रोम से प्रभावित आंखों में दिखने वाले लक्षण
स्पेसफ्लाइट एसोसिएटेड न्यूरो-ऑकुलर सिंड्रोम वाली आंखों की ऑप्टिक तंत्रिका में सूजन और जलन हो सकती है। इसके अतिरिक्त आईबॉल का आकार बदल सकता है। साथ ही रेटिना के नीचे वाली ऊतक की परत में दरारें आ सकती हैं। इस सिंड्रोम के कारण रेटिना पर छोटे-छोटे सफेद धब्बे भी हो सकते हैं। इससे प्रभावित अंतरिक्ष यात्री की दृष्टि कमजोर हो सकती है और उसके लिए नजदीक की वस्तुओं पर ध्यान केंद्रित करना मुश्किल हो सकता है।
स्पेसफ्लाइट एसोसिएटेड न्यूरो-ऑकुलर सिंड्रोम के कारण
यह सिंड्रोम होने के पीछे सटीक कारण तो सामने नहीं आए हैं, लेकिन माइक्रोग्रैविटी को ही इसके लिए जिम्मेदार माना जाता है। दरअसल, माइक्रोग्रैविटी के कारण शरीर के तरल पदार्थों का ऊपर की ओर बहने से स्कैल्प पर बहुत दबाव पड़ता है, जिससे ऑप्टिक तंत्रिका के कार्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इसके अतिरिक्त माइक्रोग्रैविटी आंखों में खून के प्रवाह को प्रभावित कर सकती है, जिससे इस्किमिया (ब्लड सर्कुलेशन में कमी) और रेटिना को नुकसान हो सकता है।
क्या अंतरिक्ष में आंखों का टेस्ट मुमकिन है?
माइक्रोग्रैविटी की स्थिति और विशेष उपकरणों की सीमित उपलब्धता के कारण अंतरिक्ष में आंखों का टेस्टिंग चुनौतिपूर्ण हैं, लेकिन इसके लिए अंतरिक्ष यात्री अपनी आंखों की तस्वीरें खींचने और उनमें परिवर्तनों की निगरानी करने के लिए रेटिना कैमरे और ऑप्टिकल कोहेरेंस टोमोग्राफी (OCT) स्कैनर जैसे उपकरणों का इस्तेमाल करते हैं। इसके अतिरिक्त अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी पर नेत्र विशेषज्ञों से परामर्श ले सकते हैं, जो उनके द्वारा ली गई तस्वीरों का विश्लेषण करके उनका मार्गदर्शन प्रदान कर सकते हैं।