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    देश के निजी अस्पतालों में क्यो नहीं हो रहा है कोरोना वैक्सीनों का पूर्ण उपयोग?

    देश के निजी अस्पतालों में क्यो नहीं हो रहा है कोरोना वैक्सीनों का पूर्ण उपयोग?
    लेखन भारत शर्मा
    Jul 29, 2021, 08:47 pm 1 मिनट में पढ़ें
    देश के निजी अस्पतालों में क्यो नहीं हो रहा है कोरोना वैक्सीनों का पूर्ण उपयोग?
    देश के निजी अस्पतालों में बेहद धीमी है कोरोना वैक्सीनेशन की रफ्तार।

    केंद्र सरकार ने अपनी नई वैक्सीनेशन नीति के तहत वैक्सीनों के कुल उत्पादन का 25 प्रतिशत हिस्सा निजी अस्पतालों के लिए आरक्षित किया था। सरकार का मानना था कि समृद्ध लोग सरकारी केंद्रों की भीड़ से बचने के लिए आसानी से निजी केंद्रों पर वैक्सीन लगवा लेंगे, लेकिन सरकार के इन निर्णय के ढाई महीने बाद भी कुल वैक्सीनेशन में निजी अस्पतालों की महज सात प्रतिशत हिस्सेदारी रही है। यहां जानते हैं इसके पीछे के प्रमुख कारण।

    निजी अस्पतालों में हुआ महज सात प्रतिशत वैक्सीनेशन

    बता दें कि 20 जुलाई को कांग्रेस सांसद मल्लिकार्जुन खड़गे ने निजी अस्पतालों में हुए वैक्सीनेशन का डाटा मांगा था। इस पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडिविया ने बताया था कि 1 मई से 15 जुलाई के बीच देश में हुए कुल वैक्सीनेशन में से महज सात प्रतिशत निजी अस्पतालों में हुआ है। इसके बाद कई तरह के सवाल खड़े हुए थे। इसमें सबसे बड़ा सवाल यह था कि क्या निजी अस्पताल संचालक वैक्सीनेशन में रूचि नहीं ले रहे हैं?

    निजी अस्पतालों ने वैक्सीनेशन में निभाई अहम भूमिका- डॉ ज्ञानी

    इंडिया टुडे के अनुसार, एसोसिएशन ऑफ हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स इंडिया (AHPI) के महानिदेशक डॉ गिरिधर ज्ञानी इस तथ्य से पूरी तरह असहमत है कि निजी अस्पताल वैक्सीनेशन में रूचि नहीं ले रहे हैं। उन्होंने कहा, "जब हमने मेट्रो शहर और महानगरों के निजी अस्पतालों में वैक्सीनेशन पर गौर किया तो सामने आया कि काफी संख्या में लोगों ने निजी अस्पतालों में वैक्सीन लगवाई है। ऐसे में निजी अस्पतालों ने भी वैक्सीनेशन में अहम भूमिका निभाई है।"

    न्यूनतम वैक्सीन खरीद की बाध्यता से छोटे शहरों में बढ़ी परेशानी- डॉ ज्ञानी

    डॉ ज्ञानी ने कहा कि नई नीति के सरकार अस्पतालों को सीधे कंपनियों से वैक्सीन खरीद की छूट गई गई है। ऐसे में छोटे शहरों के अस्पतालों के लिए वैक्सीन प्राप्त करना मुश्किल हो रहा है। कारण यह है कि उन्हें वैक्सीन खरीद की प्रक्रिया की जानकारी नहीं है। इसी तरह कंपनियों ने 3,000 खुराक खरीदने की बाध्यता कर रखी है। ऐसे में छोटे अस्पतालों के लिए इन खुराकों के लिए एकसाथ 18 लाख रुपये चुकाना भी मुश्किल है।

    राज्य सरकारों ने नहीं किए निजी अस्पतालों को प्रोत्साहित करने के प्रयास

    डॉ ज्ञानी के अनुसार, AHPI ने निजी अस्पतालों में वैक्सीनेशन की स्थिति को समझने के लिए देश के 70 अस्पतालों का दौरा किया था। इसमें 25 अस्पतालों ने बताया कि वैक्सीन खरीद के प्रति उनकी चिंताओं को दूर करने के लिए राज्य सरकार ने कोई नोडल अधिकारी नियुक्त नहीं किया। इसी तरह 39 अस्पतालों ने बताया कि नोडल अधिकारी तो नियुक्त किए गए थे, लेकिन राज्य सरकार वैक्सनी खरीद को बढ़ावा देने के प्रयास नहीं कर रही है।

    "केंद्र सरकार को न्यूनतम खुराक की खरीद की बाध्यता को हटाना चाहिए"

    डॉ ज्ञानी ने कहा, "छोटे निजी अस्पतालों में वैक्सीनेशन शुरू कराने के लिए केंद्र सरकार को न्यूनतम 3,000 खुराक खरीद की बाध्यता को हटाना चाहिए। इससे अस्पताल जरूरत के हिसाब से वैक्सीन खरीद सकेंगे और वैक्सीनेशन में तेजी से इजाफा होगा।"

    वैक्सीनों की कीमत निर्धारित करना भी है प्रमुख कारण

    हाल ही में सरकार ने कहा था कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 2.6 करोड़ खुराकों का उपयोग नहीं किया गया है। इनमें से अधिकतर निजी अस्पतालों में पड़ी है। इसके सबसे बड़ा कारण सरकार द्वारा वैक्सीनों की कीमत निर्धारित करना है। सरकार ने कोविशील्ड के लिए 780 रुपये, कोवैक्सिन 1,410 रुपये और स्पूतनिक-V के लिए 1,145 रुपये निर्धारित कर रखे हैं। इसके अलावा निजी अस्पताल सुविधा शुल्क के रूप में 150 रुपये से अधिक नहीं वसूल सकते हैं।

    वैक्सीनेशन को बढ़ावा देने के लिए निर्धारित की कीमत- डॉ शाह

    आकाश हेल्थेकयर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) डॉ कौसर ए शाह ने कहा, "वैक्सीन की कीमत निर्धारित करने से निजी अस्पतालों में वैक्सीन लगवाने वाले लोगों की संख्या बढ़ती है। इसके अलावा निजी अस्पतालों को कॉल, कार्यालय और आवासीय परिसरों में जाकर भी वैक्सीन करने को कहा जा जाता है। ऐसे में कीमत निर्धारित होने से कुल लागत निकाल पाना मुश्किल होता है।" उन्होंने कहा वैक्सीनेशन के नए तरीके अपनाने में लागत बढ़ती है।

    क्या सरकार को बदलनी चाहिए वैक्सीनेशन की रणनीति?

    निजी अस्पतालों में वैक्सीन के कम उपयोग का देखते हुए विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को निजी अस्पतालों के लिए 25 प्रतिशत वैक्सीन आरक्षित करने के अपने निर्णय पर फिर से विचार करना चाहिए। आंतरिक चिकित्सा विशेषज्ञ डॉ स्वप्निल पारिख ने कहा, "सरकार को वैक्सीनेशन नीति पर फिर से विचार करना चाहिए और निजी केंद्रों के साथ सरकार को ग्रामीण क्षेत्रों में वैक्सीनेशन केंद्रों को बढ़ाने और घर-घर वैक्सीनेशन पर गौर करना चाहिए।"

    सरकार को वैक्सीनेशन केंद्रों से हटकर भी सोचाना चाहिए- डॉ पारिख

    डॉ पारिख ने कहा, "समय की मांग के अनुसार सरकार को लोगों के वैक्सीनेशन केंद्रों पर आने के इंतजार के रवैये को छोड़कर वैक्सीन को लोगों तक पहुंचाने के बारे में सोचना होगा।" उन्होंने कहा, "यदि वैक्सीन अलमारियों में पड़ी है तो उसका कोई लाभ नहीं है, उनका जल्द से जल्द उपयोग होना चाहिए।" बता दें कि तमिलनाडु और ओडिशा के मुख्यमंत्री निजी अस्पतालों के वैक्सीनेशन का कोटा 25 प्रतिशत से घटाकर 5-10 प्रतिशत करने का सुझाव दे चुके हैं।

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