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    महात्मा गांधी की हत्या से पहले क्या करता था नाथूराम गोडसे?

    महात्मा गांधी की हत्या से पहले क्या करता था नाथूराम गोडसे?
    लेखन मुकुल तोमर
    Jan 30, 2020, 07:31 pm 1 मिनट में पढ़ें
    महात्मा गांधी की हत्या से पहले क्या करता था नाथूराम गोडसे?

    आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 72वीं पुण्यतिथि है। आज ही के दिन 1948 में नाथूराम गोडसे ने दिल्ली के बिरला भवन में तीन गोली मारकर गांधी की हत्या कर दी थी। गोडसे द्वारा गांधी की इस हत्या को दो विचारधाराओं के बीच टकराव की तरह भी पेश किया जाता है। लेकिन आज हम आपको इन विचारधाराओं के बारे में नहीं बल्कि गोडसे के बारे में बताएंगे। आइए जानते हैं कि गांधी की हत्या से पहले गोडसे क्या करता था।

    पुणे के ब्राह्मण परिवार में हुआ था गोडसे का जन्म

    महाराष्ट्र के पुणे के एक ब्राह्मण परिवार में 1910 में नाथूराम गोडसे का जन्म हुआ था। उसके परिवार को धर्म शास्त्रों का अच्छा-खासा ज्ञान था। लेकिन इसके साथ ही आधुनिक दुनिया के प्रति भी वो खुले विचार रखते थे। उसके पिता विनायक वामनराव गोडसे डाकघर में कर्मचारी थे। 1930 के आसपास उनकी तैनाती रत्नागिरी में हुई थी। गोडसे अपने पिता से मिलने रत्नागिरी आता-जाता रहता था और इसी दौरान विनायक दामोदर सावरकर से उसकी पहली मुलाकात हुई।

    सावरकर की बातों ने गोडसे पर छोड़ा बहुत प्रभाव

    सावरकर के विचारों और गतिविधियों ने गोडसे पर बेहद प्रभाव छोड़ा और वो उनके साथ काम करने लगा। 1930 और 1940 के दशक में गोडसे ने हिंदू धर्म की शक्तिशाली छवि बनाने पर जोर दिया। उसने एक राइफल क्लब बनाया और इसके साथ ही एक अखबार भी चलाया। इस दौरान वो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) में भी शामिल हुआ, लेकिन बाद में इसे छोड़ दिया। RSS के साथ उसके संबंध को लेकर काफी विवाद होता रहता है।

    सावरकर को दिया था कांग्रेस के खिलाफ राजनीतिक मैदान में उतरने का सुझाव

    गोडसे, सावरकर को पूज्यनीय मानता था और उनसे मिलने जाया करता था। फरवरी 1938 में उसने सावरकर को एक लंबा पत्र लिखते हुए कहा कि हिंदू महासभा को राजनीतिक क्षेत्र में कांग्रेस को चुनौती देनी चाहिए। उसने महासभा को मजूबत बनाने के लिए उसने गैर-ब्राह्मणों और पिछड़े वर्गों को संगठन के नेतृत्व में शामिल करने और अखबारों और भाषणों के जरिए अधिक प्रचार करने का सुझाव दिया।

    कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर नेहरू की मेहनत की प्रशंसा की

    अपने इसी पत्र में गोडसे ने हिंदू महासभा को कांग्रेस से कुछ चीजें सीखने की सलाह भी दी। जवाहरलाल नेहरू की प्रशंसा करते हुए गोडसे ने लिखा कि कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर उन्होंने बहुत मेहनत की और गांव-गांव जाकर भाषण दिए। सावरकर की तारीफ करते हुए गोडसे ने कहा कि वो व्यक्तिगत तौर पर लगातार मेहनत करते हैं, लेकिन इस कार्य को आवश्यक प्रचार नहीं मिल रहा है और इसलिए इसका महत्व लोगों को पता नहीं चल रहा।

    1941 से 1944 के बीच सावरकर को लिखे कई पत्र

    इसके बाद 1941 से 1944 के बीच भी गोडसे ने सावरकर को कई पत्र लिखे और हिंदू सनातनी विचारधारा को बढ़ावा देने के उनके प्रयासों की प्रशंसा की। उसने कहा कि दक्षिणपंथी हिंदू सावरकर को अपना नायक और हिंदुओं का सबसे निपुण नेता मानते हैं।

    1946 में 'अग्रणी' नाम से निकाली मैगजीन

    1946 में गोडसे ने 'अग्रणी' के नाम से एक मैगजीन निकाली और नारायण आप्टे इसमें उसका मुख्य सहयोगी बना। सावरकर मैगजीन के काम से खुश हुए और गोडसे को इसे चलाने के लिए 15,000 रुपये दिए जो उस जमाने में बहुत रकम हुआ करती थी। इस मैगजीन के लेखों में "मुस्लिम गुंडों" के "अत्याचार" के कारण हिंदुओं के खून का तालाब बहने की बात की जाती और मुस्लिम लीग के नेताओं को नादिर शाह और चंगेज खान बताया जाता था।

    मैगजीन पर महात्मा गांधी और नेहरू पर लगातार होते थे हमले

    मैगजीन में "हिंदुओं के हितों की रक्षा" नहीं करने के लिए महात्मा गांधी और नेहरू पर भी लगातार हमले किए जाते थे। गोडसे ने इन लेखों में अहिंसा और मुस्लिमों के प्रति प्रेम की बात करने के लिए गांधी की तीखी आलोचना की। उनसे पंजाब और बंगाल में हिंदुओं के खिलाफ हो रही हिंसा के लिए भी गांधी को जिम्मेदार ठहराया। 1942 में उसने पंचगनी में महात्मा गांधी की एक सभा में नारेबाजी भी की थी।

    इस कारण गांधी के प्रति नफरत बनी जहर

    भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के समय पंजाब में सिखों और हिंदुओं पर अत्याचार की खबरों ने गांधी के प्रति गोडसे की नफरत को चरम पर पहुंचा दिया। उसके अनुसार जब भारत को पाकिस्तान से टक्कर लेनी चाहिए और हिंदुओं को मुस्लिमों को अधीन करना चाहिए, तब "'राष्ट्रपिता" शांति और सुलह का उपदेश दे रहा है। गांधी के इन प्रयासों ने गोडसे के मन में इतना जहर पैदा कर दिया कि उसने गांधी की हत्या करने की ठान ली।

    जनवरी में बनाया गांधी की हत्या का मन

    गोडसे और उसके मुख्य साथी आप्टे ने जनवरी 1948 में गांधी की हत्या करने का मन बनाया। 17 जनवरी को वो दिल्ली पहुंचे और कनॉट प्लेस के मरीना होटल में नकली नामों से ठहरे। 20 जनवरी को वो कानपुर और इसके बाद मुंबई गए। कहा जाता है कि मुंबई में गोडसे और आप्टे सावरकर से मिले थे और सावरकर ने उन्हें सफल होने का आशीर्वाद दिया था। हालांकि, इस तथ्य को लेकर काफी विवाद भी होता है।

    ....और कर दी गांधी की हत्या

    30 जनवरी को आखिरकार गांधी की हत्या करने की इस खतरनाक साजिश को अंजाम दिया गया और शाम 5 बजे बिरला भवन में गोडसे ने तीन गोली मारकर गांधी की हत्या कर दी। उसे मौके से ही गिरफ्तार कर लिया गया। कोर्ट में सुनवाई के दौरान गोडसे ने कहा कि उसने कभी भी ये बात नहीं छिपाई कि वो ऐसी विचारधारा से संबंध रखता है जो गांधीजी के विरोध में है।

    कोर्ट में बोला गोडसे- गांधी की अहिंसा की सीख हिंदुओं को बना देगी नपुंसक

    कोर्ट में अपने बयान में गोडसे ने कहा था, "गांधी की अहिंसा की सीख हिंदू समुदाय को नपुंसक बना देगी और अन्य समुदायों, खासकर मुस्लिमों के आक्रमण का विरोध करने में (हिंदू) समुदाय असमर्थ रहेगा।" गोडसे ने हत्या की साजिश में सावरकर का कोई भी हाथ होने से साफ इनकार कर दिया और इसे अपनी बुद्धिमानी और विवेक का अपमान बताया। उसने दिल्ली में शरणार्थी कैंपों में घूमने के दौरान एक शरणार्थी से बंदूक खरीदने का दावा किया।

    15 नवंबर, 1949 को दी गई गोडसे और आप्टे को फांसी

    गांधी की हत्या के मामले में गोडसे और आप्टे के अलावा छह और लोगों को आरोपी बनाया गया था। इनमें सावरकर और गोडसे का भाई गोपाल गोडसे भी शामिल था। वहीं इस समूह का नौवां सदस्य रामचंद्र बडगे सरकारी गवाह बन गया था और उसकी गवाही के बाद ही सावरकर का नाम मामले में आया था। कोर्ट ने गोडसे और आप्टे को फांसी की सजा सुनाई और दोनों को 15 नवंबर, 1949 को फांसी दे दी गई।

    क्या कोई सिरफिरा था गोडसे?

    नाथूराम गोडसे के भाई गोपाल गोडसे की किताब 'मैंने गांधी का वध क्यों किया?' में गोडसे के हवाले से लिखा गया है, "गांधी वध पिस्तौल हाथ में लेने और गोली मार देने जैसी सामान्य घटना नहीं थी, बल्कि एक ऐतिहासिक और अपूर्व घटना थी। ऐसी घटनाएं युगों में कभी-कभी होती हैं। नहीं, युग-युग में भी नहीं! ऐसी घटनाएं नहीं हुआ करती हैं।" ये बात स्पष्ट करती है कि गोडसे कोई "सिरफिरा" नहीं बल्कि एक वैचारिक रूप से प्रतिबद्ध व्यक्ति था।

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