अयोध्या: समझौते को तैयार कुछ पार्टियां, पांच शर्तों पर विवादित जमीन पर राम मंदिर पर सहमति
अयोध्या जमीन विवाद पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई खत्म हो गई और मामले में कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, आखिरी दिन सुनवाई के दौरान मध्यस्थता समिति ने सुप्रीम कोर्ट को एक रिपोर्ट सौंपी। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड समेत कुछ हिंदू और मुस्लिम पार्टियां विवादित जमीन को मंदिर के लिए देने के समझौते पर तैयार हैं और मुस्लिम पक्ष ने इसके बदले में कुछ शर्तें रखी हैं।
किसी और मस्जिद पर नहीं किया जाएगा दावा
प्रस्तावित समझौते के अनुसार, सुन्नी वक्फ बोर्ड विवादित 2.7 एकड़ जमीन को सरकार को देने और उस पर मंदिर निर्माण को तैयार है, लेकिन इसके लिए उसने पांच शर्तें रखी हैं। पहली शर्त ये है कि पूजा स्थल कानून, 1991 को मजबूत करते हुए देश के सभी धार्मिक स्थलों को आजादी के समय की यथास्थिति में रखा जाए और इसके बाद किसी भी मस्जिद पर दावा पेश नहीं किया जाए। केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट में इसका आश्वासन देना होगा।
अयोध्या में पुरानी मस्जिदों की मरम्मत कराए सरकार
दूसरी शर्त ये है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा नियंत्रित देशभर की जिन मस्जिदों में नमाज पढ़ने की इजाजत नहीं है, उनमें नमाज पढ़ने की इजाजत दी जाए। ऐसी मस्जिदों की संख्या नहीं बताई गई है। प्रस्तावित समझौते में तीसरी शर्त ये है कि केंद्र सरकार अयोध्या में सभी पुरानी और खराब हालत में पड़ी मस्जिदों की मरम्मत कराए। अगली शर्त है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को एक किसी दूसरी जगह पर मस्जिद बनाने की इजाजत दी जाए।
सामाजिक सद्भाव के लिए एक संस्थान बनाने का भी प्रस्ताव
पांचवीं और आखिरी शर्त ये रखी गई है कि सामाजिक सद्भाव के लिए एक संस्थान का निर्माण किया जाए और इसका मुख्यालय अयोध्या में स्थिति हो। हालांकि, इस संस्थान के प्रारूप के बारे में अभी तक कोई जानकारी नहीं है।
प्रस्तावित समझौते पर कौन सहमत, कौन असहमत?
जो पार्टियां इस समझौते पर तैयार हुईं हैं, उनमें हिंदू पक्ष से निर्वाणी अखाड़ा (निर्मोही अखाड़ी की पैतृक संस्था), श्री राम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति और हिंदू महासभा शामिल हैं। वहीं मुस्लिम पक्ष की तरफ से सुन्नी वक्फ बोर्ड ने इस समझौते पर सहमति जताई है। मामले में याचिकाकर्ता ज्यादातर पार्टियों ने इस समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। इनमें राम जन्मभूमि न्यास रामलला विराजमान और जमीयत उलेमा-ए-हिंद जैसे अहम याचिकाकर्ता भी शामिल हैं।
गुरुवार सुबह समझौते पर विचार करेगी सुप्रीम कोर्ट बेंच
'इंडियन एक्सप्रेस' के अनुसार, लगभग एक महीने के समय और दिल्ली और चेन्नई में दो-तीन बैठकों के बाद इस प्रस्तावित समझौते पर पहुंचा गया है। गुरूवार सुबह मुख्य न्यायाधीश (CJI) रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संवैधानिक बेंच इस समझौते पर विचार कर सकती है। इस चर्चा के बाद ही इस प्रस्तावित समझौते की जानकारी सार्वजनिक करने के बारे में फैसला लिया जाएगा।
आई थीं सुन्नी वक्फ बोर्ड के अपनी याचिका वापस लेने की खबरें
इससे पहले आखिरी दिन सुनवाई के वक्त ये खबरें भी आईं थीं कि सुन्नी वक्फ बोर्ड मामले में अपनी याचिका वापस ले सकता है। हालांकि, बोर्ड के वकीलों ने ऐसी किसी संभावना से इनकार कर दिया।
क्या है अयोध्या जमीन विवाद?
अयोध्या में 6 दिसंबर, 1992 को विवादित स्थल पर खड़ी बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया था और मुख्य विवाद इससे संबंधित 2.77 एकड़ जमीन को लेकर है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2010 में दिए अपने फैसले में विवादित भूमि को निर्मोही अखाड़ा, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड उत्तर प्रदेश और रामलला विराजमान के बीच तीन हिस्सों में बांट दिया था। हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सभी पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट में 14 याचिकाएं दायर की थीं।
सफल नहीं हुई थीं मध्यस्थता की कोशिशें
राजनैतिक और सांप्रदायिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील अयोध्या विवाद को कोर्ट से बाहर सुलझाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 8 मार्च को तीन सदस्यीय मध्यस्थता समिति बनाई थी। पूर्व न्यायाधीश फकीर मोहम्मद इब्राहिम खलीफुल्ला की अध्यक्षता वाली इस समिति में 'आर्ट ऑफ लिविंग' के संस्थापक श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ वकील श्रीराम पंचू शामिल थे। समिति ने कई महीनों तक विवाद के समाधान पर सभी पक्षों की आम राय बनाने का अंतिम प्रयास किया जो असफल रहा।
6 अगस्त से रोजाना सुनवाई कर रही थी संवैधानिक बेंच
मध्यस्थता की कोशिशें असफल रहने के बाद 6 अगस्त से CJI गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संवैधानिक बेंच में रोजाना की जो 40 दिन के बाद बुधवार को खत्म हुई। बेंच में जस्टिस एसए बोबड़े, डीवाई चंद्रचूड़, अशोक भूषण और एसए नजीर शामिल हैं।