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    भारत में विनायक दामोदर सावरकर इतनी विवादास्पद शख्सियत क्यों हैं?

    भारत में विनायक दामोदर सावरकर इतनी विवादास्पद शख्सियत क्यों हैं?

    लेखन Manoj Panchal
    Jan 04, 2020
    07:22 pm

    क्या है खबर?

    विनायक दामोदर सावरकर, एक ऐसा नाम जिसे जब भी लिया जाता है, विवाद होना तय है। राजनीतिक पार्टियां, नेता और आम लोग तक भी सावरकर को लेकर हमेशा दो धड़ों में बंट जाते हैं।

    जहां एक मत सावरकर को वीर स्वतंत्रता सेनानी और चालाक क्रांतिकारी मानता है, वहीं दूसरा मत महात्मा गांधी की हत्या में उनका हाथ मानते हुए उनकी विचारधारा का विरोध करता है और उन्हें कायर बताता है।

    आखिर क्यों है यह विवाद? आइए जानते हैं।

    जानकारी

    अभी क्यों सुर्खियों में है सावरकर का नाम?

    दरअसल, भोपाल में कांग्रेस सेवादल की ओर से एक प्रशिक्षण शिविर में बुकलेट वितरित की गई। इसमें लिखा गया है कि ब्रह्मचर्य ग्रहण करने से पहले नाथूराम गोडसे के वीर सावरकर के साथ शारीरिक संबंध थे। इस पर बवाल शुरू हो गया है।

    शुरुआत

    ऐसा रहा सावरकर का शुरूआती जीवन

    28 मई, 1883 को नासिक के पास भागपुर गांव में दामोदरपंत सावरकर और राधाबाई के घर एक लड़का पैदा हुआ, नाम रखा गया विनायक दामोदर सावरकर। जो आगे चलके वीर सावरकर बने।

    वह अपने बड़े भाई गणेश के काफी करीब थे क्योंकि उनके जन्म के कुछ साल बाद ही उनके माता-पिता की मृत्यु हो गई थी।

    पुणे कालेज से स्नातक के बाद 1906 में वो वकालत के लिए लंदन चले गए। उस दौरान उनका रुझान राजनीति की ओर बढ़ गया।

    समर्थक

    इसलिए सावरकर को माना जाता है स्वतंत्रता सेनानी

    सावरकर का नाम तीन अंग्रेजों की हत्यायों से जोड़ा जाता है।

    1 जुलाई, 1909 को मदनलाल ढींगरा ने सर विलियम कर्जन वाइली की लंदन में गोली मारकर हत्या कर दी थी। वाइली लंदन स्थित इंडिया ऑफिस में सचिव स्तर के अधिकारी थे।

    अंग्रेजों को इस हत्या में सावरकर पर भी शक था, लेकिन उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला। ढींगरा को इस हत्या के लिए फांसी की सजा सुनाई गई थी।

    कालापानी की सजा

    दूसरी हत्या जिससे सावरकर का नाम जुड़ा

    जब सावरकर लंदन में थे तो नासिक में कलेक्टर एएमटी जैक्सन की हत्या कर दी गई।

    सावरकर पर आरोप लगा की जिस पिस्टल से कलेक्टर की हत्या की गई थी, वो उन्होंने ही लंदन से भेजी थी।

    इसके लिए उन्हें लंदन से गिरफ्तार करके भारत लाया गया।

    जैक्सन की हत्या और अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोह के आरोप में सावरकर को दो बार (कुल 50 साल) की कालापानी की सजा सुनाई गई।

    जानकारी

    तीसरी हत्या की कोशिश में जुड़ा सावरकर का नाम

    सावरकर के कालापानी की सजा से वापिस आने के बाद 22 जुलाई, 1931 को बंबई (अब मुंबई) के प्रभारी गवर्नर अर्नेस्ट हॉट्सन पर वीबी गोगाटे ने दो गोलियां दागीं लेकिन वे बच गए। सावरकर का संबंध हत्या की इस कोशिश से भी जोड़ा जाता है।

    विरोधी

    इसलिए सावरकर के विरोधी उन्हें मानते है कायर

    सावरकर 4 जुलाई, 1911 को अंडमान पहुंचे थे और वहां मई 1921 तक रहे। इस बीच उन्होंने अंग्रेजों को छह बार दया याचिका लिखी।

    अपनी याचिकाओं में वे खुद को किसी अन्य जेल में रखे जाने के बदले अंग्रेजों की सहायता करने की बात लिखते थे।

    सावरकर जेल में कैदियों की भूख हड़ताल में शामिल नहीं होते थे।

    वहां हर 15 दिन में कैदियों का वजन होता था और कई बार सावरकर का वजन बढ़ा हुआ मिलता था।

    जानकारी

    माफीनामे को चालाकी बताते हैं सावरकर के समर्थक

    जेल से बाहर आने के बाद सावरकर ने माफीनामों को अपनी रणनीति का एक हिस्सा बताया था। आजकल उनके समर्थक भी यही कहते हैं। सावरकर के अनुसार वो जेल में रहते हुए कुछ नहीं कर सकते थे, इसलिए वो कैसे भी बाहर आना चाहते थे।

    बाद का समय

    क्या कालापानी से बाहर आने पर सावरकर ने किया अंग्रेजों का विरोध?

    मई, 1921 में सावरकर को अंडमान से पुणे की यरवदा जेल में भेज दिया गया और तीन साल बाद वहां से भी रिहा कर दिया गया।

    उनकी रिहाई के समय कुछ शर्तें रखी गई जिनमें, किसी राजनीतिक क्रियकलाप में शामिल न होना और रत्नागिरि के जिला कलेक्टर की अनुमति लिए बिना जिले से बाहर नहीं जाने जैसी शर्तें शामिल थीं।

    अपनी रिहाई के बाद से सावरकर ज्यादा सुर्खियों में नहीं रहे और न ही अंग्रेजों का खुलकर विरोध किया।

    जानकारी

    जब सावरकर ने हिंदुत्व को एक राजनीतिक विचारधारा के तौर पर पेश किया

    अंडमान से वापस आने के बाद सावरकर ने 'हिंदुत्व - हू इज़ हिंदू?' नामक पुस्तक लिखी। इसमें पहली बार हिंदुत्व का एक राजनीतिक विचारधारा के तौर पर इस्तेमाल हुआ। इसी विचारधारा के कारण ही भाजपा-RSS में सावरकर का नाम इज्जत से लिया जाता है।

    गांधी हत्या

    महात्मा गांधी की हत्या में आया नाम

    वीर सावरकर पर देश में सबसे बड़ा विवाद महात्मा गांधी की हत्या में शामिल होने को लेकर रहा है।

    गांधी हत्याकांड में गिरफ्तार किए गए आठ लोगों में सावरकर भी थे। हालांकि, सबूतों के अभाव में उन्हें बरी कर दिया गया, लेकिन उनसे शक की सुई कभी हट नहीं सकी।

    इसका बड़ा कारण ये भी है कि गोडसे (गांधी का हत्यारा) और सावरकर का संबंध वैसा ही बताया जाता है जैसा एक नेता और उसके अनुयायी का होता है।

    अंतिम समय

    जब सावरकर ने खाना-पीना बंद कर दिया

    गांधी की हत्या के 17 साल बाद 1965 में केस को फिर खोला गया था।

    एक आयोग का गठन किया गया जिसका काम यह पता लगाना था कि क्या गांधी की हत्या की साजिश काफी पहले रची गई थी और क्या सरकार को इस बारे में पहले से कोई जानकारी मिली थी।

    केस फिर से खुलने के कुछ समय बाद ही सावरकर ने स्वेच्छा से खाना-पीना बंद कर दिया और 26 फरवरी, 1966 को उनकी मृत्यु हो गई।

    विचारधारा

    गांधी या सावरकर?

    RSS और भाजपा हमेशा से ही सावरकर की हिंदुत्ववादी विचारधारा का समर्थन करती आई हैं। वहीं कांग्रेस सावरकर का गांधी की हत्या में हाथ और मुस्लिम विरोधी बताते हुए उनका विरोध करती है।

    इसलिए संसद में गांधी और सावरकर, दोनों की तस्वीरें लगी हैं। संयोग देखिये, दोनों की तस्वीरें एक दूसरे के सामने लगी हैं। गांधी को प्रणाम करने वाले को सावरकर को पीठ दिखानी ही होगी और सावरकर के आगे सिर झुकाने वाले को गांधी से पीठ मोड़नी पड़ेगी।

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