#NewsBytesExplainer: जम्मू-कश्मीर चुनाव के लिए क्या है भाजपा की रणनीति?
10 साल बाद जम्मू-कश्मीर की जनता को अपनी चुनी हुई सरकार मिलने जा रही है। अनुच्छेद 370 हटने और केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद यहां पहले चुनाव होने जा रहे हैं। जम्मू-कश्मीर की 90 सीटों के लिए 3 चरणों में मतदान होगा और 8 अक्टूबर को नतीजे घोषित किए जाएंगे। चुनावों के लिए सभी राजनीतिक पार्टियों ने कमर कस ली है। आइए जानते हैं चुनावों को लेकर भाजपा की क्या रणनीति है।
सभी सीटों पर चुनाव नहीं लड़ेगी भाजपा
खबर है कि भाजपा यहां की सभी 90 सीटों पर अपने उम्मीदवार नहीं उतारेगी। पार्टी 60 से 70 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है, जबकि बाकी सीटों पर मजबूत निर्दलीय उम्मीदवारों का समर्थन करेगी। इस तरह की ज्यादातर सीटें घाटी में होंगी, क्योंकि यहां भाजपा की स्थिति उतनी मजबूत नहीं है। माना जा रहा है कि इसी वजह से भाजपा ने किसी दूसरी पार्टी के साथ गठबंधन भी नहीं किया है।
परिसीमन से चुनावी नतीजों पर पड़ेगा असर?
पहले मुस्लिम बहुल कश्मीर में 46 और हिंदू बहुल जम्मू में 37 सीटें थीं। इस वजह से कश्मीर में अच्छा प्रदर्शन करने वाली पार्टी का पलड़ा भारी रहता था। हालांकि, परिसीमन के बाद अब जम्मू में 43 और कश्मीर में 47 सीटें हो गई हैं। इसका फायदा भी भाजपा को मिल सकता है, क्योंकि अब जम्मू की 44 प्रतिशत आबादी 48 प्रतिशत सीटों पर मतदान करेगी। वहीं, कश्मीर की 56 प्रतिशत आबादी 52 प्रतिशत सीटों पर मतदान करेगी।
क्या परिसीमन से भाजपा को होगा फायदा?
नए परिसीमन में जम्मू में जो 6 सीटें बढ़ाई गई हैं, उनमें से अधिकतर जिले हिंदू बहुल हैं जैसे- कठुआ, सांबा और उधमपुर। कठुआ में हिंदू आबादी 87 प्रतिशत, सांबा में 86 प्रतिशत और उधमपुर में 88 प्रतिशत है। ऐसे में माना जा रहा है कि परिसीमन के बाद जम्मू में 6 सीटें बढ़ने से भाजपा और मजबूत होगी। दूसरी ओर, इससे पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) और नेशनल कॉन्फ्रेंस को नुकसान हो सकता है।
दूसरी पार्टियों पर निर्भर भाजपा?
भाजपा को उम्मीद है कि दूसरी छोटी पार्टियां अगर PDP और नेशनल कॉन्फ्रेंस के वोटों में सेंध लगाने में सफल रहती हैं तो उसके सामने कई विकल्प खुले होंगे। सबसे बड़ी उम्मीद अवामी इत्तेहाद पार्टी है, जिसके नेता इंजीनियर रशीद ने जेल में रहते हुए लोकसभा चुनाव जीता था। ये पार्टी 35-40 सीटों पर चुनाव लड़ने की योजना बना रही है। अगर ये पार्टी अच्छा प्रदर्शन करती है तो पारंपरिक पार्टियों को नुकसान और भाजपा को फायदा हो सकता है।
चुनाव के बाद की संभावनाओं पर भाजपा की नजरें
निर्दलीय उम्मीदवारों को समर्थन देने की रणनीति भाजपा ने लोकसभा चुनाव में भी अपनाई थी। तब भाजपा ने उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती की सीटों पर स्थानीय पार्टियों का समर्थन किया था। ये दोनों नेता चुनाव हार गए थे। विधानसभा चुनाव में भी भाजपा इन पार्टियों का समर्थन करेगी, ताकि चुनाव के बाद की स्थितियों में ये उसके काम आ सके। अगर खंडित जनादेश आया तो इन पार्टियों की काफी अहमियत होगी।
मुस्लिम उम्मीदवारों पर दांव
कश्मीर पंचायत चुनाव में भाजपा ने मुस्लिम बहुल इलाकों में मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे, जिसका उसको फायदा भी हुआ था। इसी रणनीति को विधानसभा चुनाव में लागू करने की तैयारी है। कश्मीर की 8 में से 7 सीटों पर भाजपा ने मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं। पिछले चुनावों में कश्मीर में भाजपा का खाता भी नहीं खुला था। ऐसे में भाजपा के मुस्लिम उम्मीदवार भले खुद नहीं जीत पाए, लेकिन विपक्षी पार्टियों का नुकसान कर सकते हैं।
राम माधव को सौंपी जिम्मेदारी
भाजपा ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख पदाधिकारी राम माधव को जम्मू-कश्मीर का चुनाव प्रभारी नियुक्त किया है। RSS से भाजपा में आए माधव को जम्मू-कश्मीर की राजनीति का जानकार माना जाता है। 2014 में भाजपा और PDP की गठबंधन सरकार बनाने में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण मानी जाती है। तब भाजपा को उपमुख्यमंत्री पद मिला था। ऐसे में एक बार फिर जम्मू-कश्मीर फतह का जिम्मा माधव को सौंपा गया है।