#NewsBytesExplainer: भारत-ईरान के बीच चाबहार बंदरगाह समझौता क्यों है अहम, भारत को कितना फायदा?
भारत और ईरान के बीच चाबहार स्थित शाहिद बेहेस्ती बंदरगाह के संचालन के लिए बेहद अहम समझौता हुआ है। इसके तहत फिलहाल 10 सालों के लिए बंदरगाह का संचालन भारत के हाथों में आ गया है। ये समझौता इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड और पोर्ट्स एंड मैरीटाइम ऑर्गेनाइजेशन ऑफ ईरान के बीच भारतीय केंद्रीय राज्य मंत्री सर्बानंद सोनोवाल और उनके ईरानी समकक्ष की उपस्थिति में हुआ। आइए जानते हैं ये समझौता कितना अहम है।
सबसे पहले जानिए क्या है समझौता
भारत और ईरान ने ये समझौता चाबहार स्थित शाहिद बेहेस्ती बंदरगाह के संचालन के लिए किया है। फिलहाल इसकी अवधि 10 साल की है और इसके बाद ये स्वत: ही बढ़ जाएगी। समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, समझौते के तहत इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड करीब 1,000 करोड़ रुपये का निवेश करेगी। इसके अतिरिक्त 2,000 करोड़ की वित्तीय मदद की जाएगी, जिससे समझौते की कुल लागत 3,000 करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगी।
क्या है चाबहार?
चाबहार ईरान का एक तटीय शहर है, जो दक्षिण-पूर्व में मौजूद दूसरे सबसे बड़े प्रांत सिस्तान और बलूचिस्तान में ओमान की खाड़ी से सटा हुआ है। यहां एक गहरे पानी का बंदरगाह है, जो ईरान का इकलौता और भारत के सबसे नजदीक खुले समुद्र में स्थित है। यह एकमात्र ईरानी बंदरगाह है, जिसकी समुद्र तक सीधी पहुंच है। इसी वजह से ये मालवाहक जहाजों के लिए आसान और सुरक्षित पहुंच प्रदान करता है।
2003 से चल रही है बातचीत
चाबहार बंदरगाह को लेकर भारत और ईरान के बीच 2003 से बातचीत चल रही है। 2003 में ईरान के तत्कालीन राष्ट्रपति मुहम्मद खतामी ने भारत यात्रा की थी। इस दौरान तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ उन्होंने चाबहार समेत कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे। तब दोनों नेताओं ने 'नई दिल्ली घोषणा' में माना था कि देशों के बढ़ते रणनीतिक अभिसरण को एक मजबूत आर्थिक संबंध के साथ रेखांकित करने की आवश्यकता है।
अमेरिका की वजह से समझौते में देरी
2003 के बाद भारत के संबंध अमेरिका के साथ बढ़े। परमाणु कार्यक्रम और दूसरी वजहों के चलते अमेरिका की ईरान से तनातनी बढ़ी। इस वजह से अमेरिका ने भारत पर ईरान के साथ संबंधों को लेकर दबाव डाला और चाबहार परियोजना अधर में लटक गई। हालांकि, 2013 में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसके लिए 800 करोड़ रुपये निवेश करने की बात कही थी। फिलहाल भी अमेरिका ने प्रतिबंधों की चेतावनी दी है।
2015 के बाद बढ़ी चर्चा
2015 में तत्कालीन अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी ने भारत का दौरा किया और चाबहार बंदरगाह के महत्व पर जोर दिया। 2015 में भारत ने विदेश में बंदरगाह चलाने के लिए एक नई सरकारी कंपनी का गठन किया। चाबहार बंदरगाह को लेकर 2016 में दोनों देशों के बीच समझौता हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2016 में ईरान यात्रा के दौरान ईरानी राष्ट्रपति हसन रूहानी और अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी के साथ इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।
भारत के लिए व्यापार होगा आसान
भारत चाहता है कि यह चाबहार बंदरगाह अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) का एक प्रमुख केंद्र बने। INSTC ईरान के माध्यम से भारत और रूस को आपस में जोड़ता है। यह भारत, ईरान, अफगानिस्तान, आर्मेनिया, अजरबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप के बीच 7,200 किलोमीटर की परिवहन परियोजना है। बंदरगाह से भारत को मध्य एशिया तक सीधी पहुंच मिलेगी और माल भेजने में लगने वाले समय में एक-तिहाई की कटौती होगी।
रणनीतिक रूप से भी अहम
चाबहार पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह के बराबर ही ओमान की खाड़ी में स्थित है। ग्वादर बंदरगाह को चीन ने बनाया है। चाबहार को भारत का चीन को जवाब के तौर पर देखा जा रहा है। इस बंदरगाह का उपयोग कर अब भारत पाकिस्तान के बजाय अपना माल सीधे अफगानिस्तान भेज सकता है। अब तक भारत को व्यापार के लिए पाकिस्तान से होकर गुजरना पड़ता था। भारत को अफगानिस्तान के 4 प्रमुख शहरों- हेरात, कंधार, काबुल और मजार-ए-शरीफ तक पहुंच मिलेगी।