#NewsBytesExplainer: क्या है पतंजलि भ्रामक विज्ञापन विवाद और इसकी शुरुआत कैसे हुई?
क्या है खबर?
सुप्रीम कोर्ट में बाबा रामदेव की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। पतंजलि के भ्रामक विज्ञापन और इससे संबंधित मानहानि मामले में आज (10 अप्रैल) को कोर्ट ने कंपनी और रामदेव का दूसरा माफीनामा भी खारिज कर दिया है।
कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि पतंजलि ने बार-बार हमारे आदेश की अनदेखी की, जिसका नतीजा भुगतना होगा।
आइए जानते हैं कि पूरा मामला क्या है।
शुरुआत
कैसे हुई मामले की शुरुआत?
दरअसल, ये पूरा विवाद शुरू हुआ था जुलाई, 2022 में। तब पतंजलि की ओर से अखबार में एक विज्ञापन जारी किया गया था, जिसका शीर्षक था, 'एलोपैथी द्वारा फैलाई गई गलतफहमियां।'
इस विज्ञापन में पतंजलि ने आंख-कान की बीमारियों, थायरॉइड, लिवर, त्वचा संबंधी बीमारियों और अस्थमा में एलोपैथी इलाज को नाकाम बताया था।
विज्ञापन में दावा किया गया था कि इन बीमारियों को पतंजलि की दवाईयां और योग पूरी तरह से ठीक कर सकता है।
दावे
कोरोना की दवाई को लेकर भी पतंजलि ने किए थे दावे
कोरोना वायरस महामारी के दौरान रामदेव ने दावा किया था कि उनकी दवाई कोरोनिल और स्वसारी से कोरोना का इलाज किया जा सकता है। उन्होंने कोरोनिल को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से मंजूरी मिलने की भी बात कही थी।
इस दवा को लॉन्च करते समय मंच पर रामदेव के साथ पूर्व स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन और नितिन गडकरी मौजूद थे। इस दवाई को लेकर खूब विवाद हुआ था और आयुष मंत्रालय ने पतंजलि से सवाल भी पूछे थे।
IMA
पतंजलि के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गया था IMA
पतंजलि के विज्ञापनों और एलोपैथी को लेकर रामदेव के दावों के खिलाफ इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने अगस्त, 2022 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।
IMA का कहना था कि पतंजलि के दावे औषधि एवं जादुई उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954 और उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 का उल्लंघन करते हैं।
IMA ने इस याचिका में रामदेव के उन बयानों का भी जिक्र किया था, जिसमें वे एलोपैथी को लेकर विवादित दावे कर रहे थे।
रोक
नवंबर, 2023 में कोर्ट ने भ्रामक विज्ञापन पर लगाई थी रोक
पिछले साल नवंबर में कोर्ट ने पतंजलि को भ्रामक विज्ञापन पर अस्थायी रोक लगाई थी।
इस पर कंपनी ने आश्वासन दिया था कि वो ऐसे विज्ञापन जारी नहीं करेगी, लेकिन कुछ दिन बाद ही कंपनी ने दोबारा भ्रामक विज्ञापन प्रसारित किए।
कोर्ट ने पतंजलि को मीडिया से दूरी बनाने का आदेश दिया था, लेकिन एक दिन बाद ही रामदेव ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया। इसके बाद कोर्ट ने पतंजलि को अवमानना का नोटिस जारी किया था।
उत्तराखंड
मामले में उत्तराखंड सरकार की क्या भूमिका है?
दरअसल, पतंजलि के उत्पादों और दवाईयों को बनाने वाली दिव्य फार्मेसी उत्तराखंड में स्थित है। पतंजलि की दवाईयों को उत्तराखंड राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण लाइसेंस जारी करता है।
IMA ने इस मामले में औषधि एवं जादुई उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954 के तहत कार्रवाई की मांग की थी, लेकिन उत्तराखंड सरकार ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स कानून की धारा 170 के तहत पतंजलि को नोटिस भेजती रही क्योंकि धारा 170 पर बॉम्बे हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी।
बयान
एलोपैथी को लेकर विवादित बयान देते रहे हैं रामदेव
21 मई, 2021 को रामदेव ने कहा था कि एलोपैथी 'बकवास विज्ञान' है और रेमेडिसिवीर और फेविफ्लू जैसी दवाईयां कोरोना मरीजों के उपचार में पूरी तरह विफल रही हैं।
उन्होंने कहा था कि लाखों मरीजों की मौत ऑक्सीजन की जगह एलोपैथिक दवाईयों से हुई है। इस बयान पर रामदेव ने माफी मांगी थी, लेकिन एक दिन बाद ही उन्होंने IMA को एक पत्र लिखकर एलोपैथी से जुड़े 25 सवालों के जवाब मांगे थे।
विवाद
कई बार विवादों में रही है पतंजलि
2015 में पतंजलि ने बिना लाइसेंस लिए आटा नूडल्स लॉन्च कर दिए थे, जिसके बाद कंपनी को लीगल नोटिस जारी किया गया था।
2018 में पतंजलि ने गिलोय घनवटी पर एक महीने आगे की निर्माण तिथि लिख दी थी, जिस पर कंपनी को फटकार लगी थी।
2022 में पंतजलि के गाय के घी में मिलावट सामने आई थी। उत्तराखंड खाद्य सुरक्षा विभाग की तरफ से किए गए परीक्षण में घी खाद्य सुरक्षा मानकों पर खरा नहीं उतरा था।