क्या है इंसानी ट्रायल, जिसमें सफल होने के बाद वैक्सीन को मिलती है मंजूरी?
कोरोना वायरस (COVID-19) की वैक्सीन बनाने के लिए कई कंपनियां काम में जुटी हैं। इनमें से कुछ इंसानी ट्रायल में पहुंच गई है। इंसानी ट्रायल वैक्सीन पर रिसर्च का अंतिम चरण होता है। इसे सफलतापूर्वक पार करने के बाद ही वैक्सीन को बाजार में उतारने की हरी झंडी मिल पाती है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि इंसानी ट्रायल क्या होता है और यह क्यों जरूरी है? आज हम इन्हीं सवालों का जवाब लेकर आए हैं।
इंसानी ट्रायल क्या होते हैं?
जैसा नाम से जाहिर है, इस ट्रायल के दौरान किसी नई दवा या वैक्सीन का इंसानों पर प्रयोग किया जाता है। ट्रायल में भाग लेने वाले सभी लोगों का स्वस्थ होना जरूरी है। इंसानी ट्रायल में दो बातों पर मुख्य तौर से ध्यान दिया जाता है। पहली बात यह कि कोई वैक्सीन इंसानों के प्रयोग के लिए कितनी सुरक्षित है और दूसरी कि वैक्सीन के बाद उनमें किसी बीमारी या वायरस के प्रति इम्युनिटी पैदा होती है या नहीं।
इंसानी ट्रायल की जरूरत क्यों पड़ती है?
हर व्यक्ति का शरीर अलग होता है। इसलिए किसी वैक्सीन का असर देखने के लिए ट्रायल की जरूरत पड़ती है। इंसानी ट्रायल के दौरान न केवल वैक्सीन का असर जांचा जाता है बल्कि यह भी देखा जाता है कि इसके साइड इफेक्ट तो नहीं हैं।
इंसानी ट्रायल से पहले के क्या चरण होते हैं?
इंसानों पर ट्रायल से पहले वैक्सीन को लैबोरेट्री और जानवरों पर टेस्ट किया जाता है। इसे प्री-क्लिनिकल ट्रायल कहा जाता है। इस दौरान देखा जाता है कि कोई वैक्सीन इंसानों पर ट्रायल से सुरक्षित है या नहीं। अगर प्री-क्लिनिकल ट्रायल में उम्मीदों के मुताबिक नतीजे मिलते हैं तो रिसर्चर नियामक संस्थाओं (भारत में ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया) से इंसानी ट्रायल शुरू करने की मंजूरी लेते हैं। मंजूरी मिलने के बाद ही इंसानों पर ट्रायल शुरू होते हैं।
भारत में किसकी देखरेख में होते हैं इंसानी ट्रायल?
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) ने इंसानी ट्रायल के लिए गाइडलाइंस जारी की हुई है, लेकिन असल में इंसानी ट्रायल का काम केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) के तहत होता है। इंसानी ट्रायल की मंजूरी देने वाला ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DGCI) भी स्वास्थ्य मंत्रालय के तहत आने वाली इस केंद्रीय एजेंसी के अधीन काम करता है। वहीं जमीनी स्तर पर इनकी देखरेख एथिक्स कमेटी करती है, जिसमें स्थानीय अस्पताल या कॉलेज के अधिकारी शामिल होते हैं।
क्या इंसानी ट्रायल में कोई भी भाग ले सकता है?
वैक्सीन तैयार करने वाले शोधकर्ता इस बात का फैसला लेते हैं कि कौन व्यक्ति ट्रायल में शामिल हो सकता है। मौजूदा मामले को देखें तो कोरोना वायरस की संभावित वैक्सीन के ट्रायल में ऐसा कोई भी व्यक्ति शामिल नहीं हो सकता, जो इस महामारी से ठीक हुआ है। इसकी वजह यह है कि उसके शरीर में प्राकृतिक रूप से एंटीबॉडी बन गई है। इसलिए उसके शरीर में वैक्सीन के असर का पता नहीं चल पाएगा।
क्या इंसानी ट्रायल में शामिल होने के लिए पैसे मिलते हैं?
ICMR की गाइडलाइंस के मुताबिक, ट्रायल में शामिल होने वाले लोगों को इस दौरान आए खर्च का रिइम्बर्समेंट के जरिये भुगतान किया जा सकता है। साथ ही ट्रायल में भाग लेने वाले लोगों को अतिरिक्त अन्य मेडिकल सेवाओं का फायदा दिया जा सकता है। ये सभी भुगतान एथिक्स कमेटी की देखरेख में होने चाहिए। इसके अलावा अगर ट्रायल के दौरान किसी को कोई नुकसान होता है तो उसकी क्षतिपूर्ति की जाती है।
पहले और दूसरे चरण में होता है ये
इंसानी ट्रायल के पहले चरण में इंसानों पर प्रयोग के लिए वैक्सीन की सुरक्षा को देखा जाता है। इसका दूसरा मकसद उन संकेतों को देखना होता है कि वैक्सीन शरीर में कितनी इम्युनिटी पैदा कर रही है। दूसरे चरण में यह देखा जाता है कि वैक्सीन ने कितनी इम्युनिटी पैदा की है। इसमें शोधकर्ता पर्याप्त इम्युनिटी के लिए जरूरी खुराक की मात्रा निर्धारित करते हैं। इसमे चरण में वैक्सीन के साइड इफेक्ट पर भी नजर रखी जाती है।
इंसानी ट्रायल के कितने चरण होते हैं?
इंसानी ट्रायल मुख्यत: तीन चरणों में पूरा होता है। इन्हें पहला, दूसरा और तीसरा चरण कहा जाता है। हर चरण के साथ-साथ इनमें शामिल लोगों की संख्या भी बढ़ती जाती है। भारत की दोनों संभावित वैक्सीन अभी पहले और दूसरे चरण में हैं।
इस पूरी प्रक्रिया में कितना समय लगता है?
इंसानी ट्रायल की प्रक्रिया को पूरा होने में महीनों से लेकर सालों तक का समय लग सकता है। खासकर वैक्सीन के मामले में कम से कम सालों का समय लगता है। उदाहरण के लिए सालों से HIV की वैक्सीन पर काम चल रहा है, लेकिन अभी तक इसमें सफलता नहीं मिली है। आजतक सबसे तेजी से वैक्सीन कंठमाला के लिए बनी है। इसे इंसानी ट्रायल से हरी झंडी मिलने में चार साल का समय लगा था।
तीरसे चरण में क्या होता है?
तीसरे चरण में दूसरे चरण के नतीजों की ज्यादा बड़े लोगों पर ट्रायल कर पुष्टि की जाती है। इसमें हजारों लोगों पर ट्रायल किया जाता है। यह सबसे महत्वपूर्ण चरण होता है और इसे पार करने के बाद ही वैक्सीन को हरी झंडी मिलती है।
कोरोना वायरस की वैक्सीन में कितना समय लगेगा?
दुनियाभर के वैज्ञानिक जल्द से जल्द कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने में जुटे हुए हैं, लेकिन यह कब तक उपलब्ध होगी? इसका जवाब किसी के पास नहीं है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और मॉडर्ना की संभावित वैक्सीन पर तेजी से काम चल रहा है और माना जा रहा है कि साल के अंत तक इनका इंसानी ट्रायल पूरा हो जाएगा। जानकारों का कहना है कि अगले साल तक ही कोरोना वायरस की वैक्सीन बाजार में आ पाएगी।