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    जोशीमठ ही नहीं, उत्तराखंड के इन इलाकों पर भी है जमीन धंसने का खतरा

    जोशीमठ ही नहीं, उत्तराखंड के इन इलाकों पर भी है जमीन धंसने का खतरा
    लेखन मुकुल तोमर
    Jan 12, 2023, 07:27 pm 1 मिनट में पढ़ें
    जोशीमठ ही नहीं, उत्तराखंड के इन इलाकों पर भी है जमीन धंसने का खतरा
    उत्तराखंड के कई इलाकों में मानवीय गतिविधियों के कारण जमीन धंस रही है

    उत्तराखंड के जोशीमठ के जमीन में धंसने का मामला सुर्खियों में बना हुआ है और इसने एक बार फिर से मानवीय गतिविधियों के पहाड़ों पर भयावह असर को उजागर कर दिया है। हालांकि, जोशीमठ एकमात्र ऐसा इलाका नहीं है जो इंसानी लालच के दुष्प्रभाव झेल रहा रहा है और उत्तराखंड के अन्य कई इलाकों पर भी इसी तरह का खतरा मंडरा रहा है। आइए उत्तराखंड के ऐसे बड़े इलाकों के बारे में जानते हैं, जहां जमीन धंसने का खतरा है।

    नैनीताल

    पर्यटकों के बीच मशहूर नैनीताल में कुछ बड़े भूस्खलन हो चुके हैं और यहां जोशीमठ जैसी स्थिति पैदा होने की आशंका है। यहां का शेर का डंडा इलाका सबसे ज्यादा खतरे में हैं, जिस पर लगभग 15,000 लोग रहते हैं। इसके अलावा नैनीताल की सबसे ऊंची नैनी चोटी और बलियाना दोनों नीचे खिसक रहे हैं। 2000 के बाद निर्माण कार्य में आई तेजी, बढ़ती आबादी के दबाव और भारी बारिश इलाके में ये स्थिति पैदा होने के प्रमुख कारण हैं।

    उत्तरकाशी

    उत्तरकाशी जिले के लगभग 26 गांव भी धीरे-धीरे जमीन में धंस रहे हैं। मस्ताड़ी और भटवाड़ी गांव पर सबसे अधिक खतरा है। मस्ताड़ी के मकानों में 1991 के भूकंप के बाद से दरारें पड़ी हुई हैं और यहां भूस्खलन का खतरा है। यहां दशकों से जमीन के नीचे से पानी भी निकल रहा है। दूसरी तरफ नदी और हाईवे के नजदीक होने के कारण भटवाड़ी गांव की स्थिति जोशीमठ जैसी है और यहां मकानों में दरारें बढ़ती जा रही हैं।

    कर्णप्रयाग

    जोशीमठ की तरह चमोली जिले में स्थित कर्णप्रयाग भी भगवान भरोसे है और यहां तेजी से जमीन धंस रही है। यहां के बहुगुणा नगर में कम से कम 50 मकानों में दरारें पड़ गई हैं। कर्णप्रयाग के आसपास के इलाकों की भी कुछ ऐसी ही स्थिति है। निवासियों और विशेषज्ञों के अनुसार, 2021 में चार धाम प्रोजेक्ट के लिए इलाके की पहाड़ियों को काटने के बाद मकानों में ये दरारें आई हैं और इसी के कारण जमीन धंस रही है।

    पिथौरागढ़

    नैनीताल की तरह उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में स्थित पिथौरागढ़ जिले के कई गांव भी जमीन में धंस रहे हैं। मुनस्यारी और धारचूला तहसील में ये समस्या सबसे ज्यादा है और यहां के कई गांवों में मकानों में दरारें पड़ गई हैं। ये पूरा इलाका भूकंप के जोन 5 में आता है। हिमालयन ग्राम विकास समिति के जिला प्रमुख राजेंद्र सिंह बिष्ट ने कहा कि तनकपुर-धारचूला हाईवे पर "बेहूदगी" से पहाड़ियों को नुकसान पहुंचाया गया है।

    पौड़ी गढ़वाल

    पौड़ी गढ़वाल जिले के पौड़ी कस्बे में भी इंसानी गतिविधियों के कारण मकानों में दरारें पड़ गई हैं। हेदल मोहल्ला, आशीष विहार और नर्सरी रोड पर ये समस्या सबसे ज्यादा देखने को मिल रही है। इलाके में मकानों में दरार पड़ने का प्रमुख कारण ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन का निर्माण है। इससे संबंधित एक सुरंग के निर्माण के लिए दिन-रात धमाके किए जाते हैं, जिससे पैदा होने वाले कंपन से मकानों में दरारें पड़ गई हैं।

    टिहरी गढ़वाल

    ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन के निर्माण का असर टिहरी गढ़वाल जिले के कई इलाकों पर भी पड़ा है। यह लाइन जिले की नरेंद्रनगर विधानसभा के अटली गांव से होकर गुजर रही है। गांव के एक छोर पर भूस्खलन के कारण मकानों में दरारें आ गई हैं, वहीं दूसरे छोर पर सुरंग निर्माण के लिए होने वाले धमाकों से दरारें आ रही हैं। जिले के अन्य कई गांवों में भी रेलवे लाइन परियोजना के कारण यही समस्या देखने को मिल रही है।

    रुद्रप्रयाग

    रुद्रप्रयाग के मरोड़ा गांव को भी ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। सुरंग निर्माण के कारण गांव के कुछ मकान पूरी तरह गिर गए, वहीं अन्य कई मकानों में दरारें आ गई हैं। इसके कारण कई परिवार गांव छोड़कर जा चुके हैं और पहले 35-40 के मुकाबले अब यहां 15-20 परिवार ही रहते हैं। इन परिवारों को भी मुआवजा नहीं मिला है और वो दरारों वाले मकानों में रहने को मजबूर हैं।

    बागेश्वर

    बागेश्वर जिले की कपकोट तहसील में भी जमीन धंसने की समस्या देखने को मिल रही है। तहसील का खारबागढ़ गांव सबसे ज्यादा मुसीबत में है। यहां जल-विद्युत परियोजना की एक सुरंग और पहाड़ों में गड्ढों के कारण कई जगह से पानी का रिसाव हो रहा है और इससे ग्रामीणों में दहशत है। इसके अलावा कपकोट में भी जमीन धंस रही है। इस गांव में लगभग 60 परिवार रहते हैं और वो डरे हुए हैं।

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