सेंट्रल जेल से लेकर ओपन जेल तक, ये हैं देश में जेलों के आठ प्रकार
जेल को सजा काटने की जगह के तौर पर देखा जाता है, लेकिन इसका असल मकसद अपराधियों को सुधारना होता है। जेल की एक अलग दुनिया होती है और कई लोगों के मन में इस दुनिया के बारे में जानने की इच्छा होती है। क्या आप जानते हैं कि भारत में कितने प्रकार की जेल हैं? सेंट्रल जेल और जिला जेल में क्या अंतर होता है? अगर नहीं जानते तो आज हम आपके इन्हीं सवालों का जवाब लेकर आए हैं।
भारत में हैं आठ प्रकार की जेलें
भारत में कुल आठ प्रकार की जेलें हैं। जेलें राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में आती हैं। सुरक्षा, रहने की व्यवस्था, मेडिकल सुविधाएं आदि के लिए सरकारें समय-समय पर केंद्र सरकार की मदद लेती रहती हैं। जेल के आठ प्रकार निम्नलिखित हैं।
सबसे प्रमुख हैं सेंट्रल जेल
सेंट्रल जेल- सेंट्रल जेल में उन कैदियों को रखा जाता है, जिन्हें दो साल से अधिक की सजा हुई हो या जिन्होंने किसी घिनौने अपराध को अंजाम दिया हो। सेंट्रल जेल में कैदी की नैतिकता और सच्चाई बहाल करने पर काम किया जाता है। यहां बंद कैदी जेल में काम कर पैसे कमा सकते हैं। हर राज्य में सेंट्रल जेल नहीं होती। वहीं कई राज्यों में एक से अधिक ऐसी जेल हो सकती है।
जिला जेल और उप जेल
जिला जेल और सेंट्रल जेल में ज्यादा अंतर नहीं होता है। जिला जेल उन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मुख्य जेल की भूमिका निभाती है, जहां सेंट्रल जेल नहीं होती। 2018 तक के आकंड़ों के मुताबिक, भारत में 404 जिला जेल हैं। उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा जिला जेल हैं। उप जेल उपमंडल स्तर पर बनाए गए होते हैं। हरियाणा, मेघालय, मणिपुर आदि राज्यों में उप जेल नहीं है। फिलहाल भारत में 600 से ज्यादा ऐसे जेल हैं।
महिला कैदियों के लिए अलग से बने हैं महिला जेल
जैसा नाम से ही जाहिर हैं, इन जेलों में केवल महिला कैदियों को रखा जाता है। महिला कैदियों की सुरक्षा के लिए इन जेलों को निर्माण किया गया है। यहां पर काम करने वाले स्टाफ में सारी महिलाएं होती हैं। फिलहाल देशभर में 24 महिला जेल हैं। दिसंबर, 2018 में तक के आकंड़ों के मुताबिक, इन 24 जेलों में कुल 3,243 महिला कैदी बंद हैं। वहीं देशभर में कुल महिला कैदियों की बात करें तो यह संख्या 19,242 है।
कैदियों के लिए बनी होती है ओपन जेल
ओपन जेल के नाम देखकर आप सोच रहे होंगे कि कोई जेल ओपन कैसे हो सकता है? दरअसल, ये जेल ऐसे होते हैं जिनमें दीवारें, सलाखे और ताले नहीं होते। यहां सुरक्षा व्यवस्था भी कम होती है। इन जेलों में उन कैदियों को रखा जाता है, जिनका व्यवहार अच्छा हो और जो नियमों पर खरा उतरते हैं। यहां रखे जाने वाले कैदी खेती आदि कर पैसे कमा सकते हैं। 1962 में देश में पहले ऐसे जेल की शुरुआत हुई थी।
नाबालिग अपराधियों के लिए बने हैं बॉस्टर्ल स्कूल
बॉस्टर्ल स्कूल एक प्रकार के यूथ डिटेंशन सेंटर होते हैं। इन्हें भारत में आमतौर पर बॉस्टर्ल स्कूल के नाम से जाना जाता है। इन स्कूलों में अपराध में शामिल नाबालिगों को रखा जाता है। यहां पर उनके कल्याण और पुनर्वास आदि पर जोर दिया जाता है। यहां उन्हें शिक्षा और वोकेशनल ट्रेनिंग दी जाती है ताकि बाहर जाने के बाद उन्हें रोजगार मिल सके और वो अपराध से दूर रहे। केंद्र शासित प्रदेशों में एक भी बॉस्टर्ल स्कूल नहीं है।
स्पेशल जेल और अन्य जेल
स्पेशल जेलों में घुसपैठ और आतंकवाद से जुड़े मामले के कैदियों को रखा जाता है। इन जेलों में सुरक्षा के विशेष प्रबंध होते हैं। इन जेलों में महिला कैदियों को भी रखा जा सकता है। केरल, असम, महाराष्ट्र, तमिलनाडु आदि राज्यों में ऐसी जेलें बनी हुई है। अन्य जेल- भारत में तीन ऐसी जेल हैं, जो ऊपर लिखी किसी भी कैटेगरी में शामिल नहीं होती। ये कर्नाटक, महाराष्ट्र और केरल में स्थित है। बाकी राज्यों में ऐसी जेल नहीं है।
देश में कुल कितनी जेलें
2016 में देशभर में 1,412 जेलें थीं, जो 2018 में घटकर 1,339 हो गई। इनमें से 628 उप-जेल, 404 जिला जेल, 144 सेंट्रल जेल, 77 ओपन जेल, 41 स्पेशल जेल, 24 महिला जेल, 19 बोस्टर्ल स्कूल हैं।