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    यौन हमले के लिए 'स्किन-टू-स्किन' संपर्क जरूरी नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने बदला हाई कोर्ट का फैसला
    POCSO कानून के तहत यौन हमले के लिए 'त्वचा से त्वचा' संपर्क जरूरी नहीं- सुप्रीम कोर्ट

    यौन हमले के लिए 'स्किन-टू-स्किन' संपर्क जरूरी नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने बदला हाई कोर्ट का फैसला

    लेखन प्रमोद कुमार
    Nov 18, 2021
    12:31 pm

    क्या है खबर?

    सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के उस फैसले को निरस्त कर दिया है, जिसमें कहा गया था कि यौन उत्पीड़न से बच्चों के संरक्षण का अधिनियम (POCSO) कानून के लिए त्वचा से त्वचा (स्किन-टू-स्किन) संपर्क होना जरूरी है।

    कोर्ट ने कहा कि 'त्वचा से त्वचा' और 'छूने' का मतलब सीमित करने से कानून की संकीर्ण और बेतुकी व्याख्या होगी और यह बच्चों को यौन हमलों से बचाने के लिए लाए गए कानून की मंशा को नष्ट कर देगा।

    पृष्ठभूमि

    बॉम्बे हाई कोर्ट ने क्या फैसला दिया था?

    इसी साल जनवरी में बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ ने नाबालिग लड़की से यौन शोषण के एक मामले में चौंकाने वाला फैसला दिया था।

    इसमें कोर्ट ने कहा था कि त्वचा से त्वचा के संपर्क के बिना युवती के वक्षस्थल को छूना यौन हमले की श्रेणी में नहीं लिया जा सकता।

    जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला की बेंच ने कहा था कि आरोपी को यौन हमले का दोषी ठहराए जाने के लिए त्वचा से त्वचा के संपर्क का होना आवश्यक है।

    जानकारी

    सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट का फैसला रद्द किया

    गुरुवार को जस्टिस यूयू ललित, एस रविंद्र भट और बेला एम त्रिवेदी की तीन सदस्यीय बेंच ने अपने फैसले में कहा कि POCSO के तहत यौन हमले का घटक यौन मंशा है और ऐसी घटनाओं में त्वचा से त्वचा का संपर्क होना प्रासंगिक नहीं है।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यौन मंशा के साथ कपड़ों सहित छूना POCSO की परिभाषा में शामिल है। अदालतों को स्पष्ट शब्दों में अस्पष्टता खोजने के लिए अति उत्साही नहीं होना चाहिए।

    फैसला

    सेक्शन 7 को लेकर कोर्ट ने की टिप्पणी

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यौन इरादे के साथ बच्चों के जननांगों को छूने के किसी भी कृत्य को POCSO कानून के सेक्शन 7 के दायरे से बाहर नहीं किया जा सकता।

    बता दें कि कानून के सेक्शन 7 में कहा गया है कि जो भी व्यक्ति यौन मंशा के साथ बच्चों के यौन अंगोंं को छूता है या ऐसा कोई अन्य कार्य करता है तो वह सेक्शन 7 के तहत दंड का भागीदार होगा।

    जानकारी

    फैसले पर पहले ही लग चुकी थी रोक

    बॉम्बे हाई कोर्ट के इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट पहले ही रोक लगा चुका था।

    दरअसल, अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट में इस फैसला का संज्ञान लेते हुए कहा था कि यह खतरनाक मिसाल पेश कर सकता है।

    बाद में महाराष्ट्र सरकार और राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। 30 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने मामले में सुनवाई कर फैसला सुरक्षित रख लिया था।

    जानकारी

    हाई कोर्ट ने IPC की धारा 354 के तहत माना था अपराध

    हाई कोर्ट ने कहा था कि आरोपी ने नाबालिग को घर ले जाकर निर्वस्त्र किए बिना उसके वक्षस्थल को छूने की कोशिश की थी। ऐसे में अपराध को यौन हमले की श्रेणी में नहीं माना जा सकता है।

    कोर्ट के अनुसार, आरोपी का यह कृत्य भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 354 (स्त्री की लज्जा भंग करने के आशय से हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) के तहत आता है और उसी के अनुसार कार्रवाई होनी चाहिए।

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