सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता कानून पर रोक लगाने से किया इनकार, पांच हफ्ते बाद होगी सुनवाई
बुधवार को नागरिकता कानून से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने मामले की सुनवाई के लिए संवैधानिक बेंच का गठन करने का संकेत भी दिया। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में अब तक नागरिकता कानून से संबंधित 140 से अधिक याचिकाएं दायर हो चुकी है। इन याचिकाओं पर जवाब देने के लिए कोर्ट ने केंद्र सरकार को चार हफ्ते का समय दिया है।
सुप्रीम कोर्ट का CAA और NPR पर रोक लगाने से इनकार
कपिल सिब्बल और मनु सिंघवी ने की कानून पर रोक लगाने की मांग
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं के एक समूह का पक्ष रखते हुए वकील कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से मामले को संवैधानिक बेंच के पास भेजने की मांग की। उन्होंने आगे कहा कि NPR की प्रक्रिया अप्रैल में शुरू होनी है और कोर्ट को अंतरिम आदेश के जरिए इस पर रोक लगानी चाहिए। वहीं याचिकाकर्ताओं के दूसरे वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, "अगर प्रक्रिया 70 साल तक इंतजार कर सकती है, तो ये दो महीने और इंतजार नहीं कर सकती?"
अटॉर्नी जनरल ने कहा, केंद्र सरकार को सुने बिना नहीं दिया जा सकता फैसला
वहीं केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने इस मांग का विरोध करते हुए कहा कि केंद्र सरकार को सुने बिना कोई भी अंतरिम आदेश नहीं दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि कानून के कार्यान्वयन को पोस्टपोन करने की मांग इस पर स्टे लगाने के समान ही है। इस बीच सिंघवी ने कहा कि उत्तर प्रदेश में ये प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और एक बार नागरिकता देने पर उसे वापस नहीं लिया जा सकता।
कोर्ट ने कहा, केंद्र सरकार को सुने बिना नहीं लगाएंगे रोक
दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद मुख्य न्यायाधीश (CJI) एसए बोबड़े की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय सुप्रीम कोर्ट बेंच ने नागरिकता कानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि वो केंद्र सरकार का पक्ष जाने बिना नागरिकता कानून पर रोक नहीं लगाएगी। याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने के लिए केंद्र सरकार को चार हफ्ते का समय देते हुए कोर्ट ने कहा कि वो पांच हफ्ते बाद मामले पर सुनवाई करेगी।
संवैधानिक बेंच के पास भेजा जा सकता है मामला
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार के जवाब दाखिल करने के बाद वो मामले पर रोजाना सुनवाई करने पर विचार करेगी। सिब्बल की मांग पर विचार करते हुए कोर्ट ने मामले को पांच सदस्यीय संवैधानिक बेंच के पास भेजने के संकेत भी दिए। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों की हाई कोर्ट्स को नागरिकता कानून से संबंधित किसी भी याचिका पर सुनवाई न करने का आदेश भी दिया।
असम और त्रिपुरा से आई याचिकाओं पर होगी अलग सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने असम और त्रिपुरा से नागरिकता कानून के खिलाफ दायर की गई याचिकाओं पर अलग से सुनवाई करने की बात भी कही। कोर्ट ने कहा, "नागरिकता कानून के साथ असम की समस्या अलग है क्योंकि नागरिकता के लिए पहले कट ऑफ डेट 24 मार्च, 1971 थी जिसे नागरिकता कानून के अंतर्गत अब 31 दिसंबर, 2014 कर दिया गया है।" इस मामले में जवाब दाखिल करने के लिए कोर्ट ने सरकार को दो हफ्ते का समय दिया है।
क्यों विवादों में है नागरिकता कानून?
बता दें कि नागरिकता कानून में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के लोगों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है। 31 दिसंबर, 2014 तक इन तीन देशों से भारत आने वाले इन छह धर्मों के लोगों को भारतीय नागरिकता दे दी जाएगी। मुस्लिमों को इससे बाहर रखने के कारण इसका विरोध हो रहा है और इसे भारतीय के धर्मनिरपेक्ष स्वभाव के खिलाफ बताया जा रहा है।
कई नेताओं ने दाखिल की है नागरिकता कानून के खिलाफ याचिका
नागरिकता कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई हैं। याचिकाकर्ताओं में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) नेता मनोज झा और AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी भी शामिल हैं। इसके अलावा केरल सरकार ने भी याचिका दायर की है।