स्पीकर नहीं, स्वतंत्र संस्था करे सांसदों और विधायकों को अयोग्य ठहराने का फैसला- सुप्रीम कोर्ट
क्या है खबर?
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि सांसदों और विधायकों को अयोग्य ठहराने की याचिका पर विचार करने के लिए एक स्वतंत्र और स्थायी संस्था बनाई जानी चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने के लिए संसद स्पीकर को दिए गए विशेषाधिकारों पर विचार करें।
जस्टिस रोहिंटन एफ नरीमन की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि ऐसा करने के लिए यह उचित समय है।
आइये, इस खबर पर विस्तार से नजर डालते हैं।
सुनवाई
बार-बार उठता है स्पीकर की स्वतंत्रता का मामला- SC
बेंच ने पूछा कि जब स्पीकर किसी पार्टी का सदस्य होता है तो किसी को अयोग्य ठहराने की याचिका पर उसके फैसले पर भरोसा कैसे किया जा सकता है?
ऐसेे मामलों के लिए स्वतंत्र व्यवस्था या संस्था के गठन की बात उठाते हुए बेंच ने कहा कि स्पीकर की स्वत्रंतता का मुद्दा बार-बार उठता रहता है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर कोई सांसद या विधायक अयोग्य ठहरा दिया जाता है तो उससे तुरंत जिम्मेदारी छीन ली जानी चाहिए।
जानकारी
SC का सुझाव- रिटायर जजों की बनी समिति
कोर्ट ने सुझाव दिया है कि रिटायर्ड जजों की समिति को सदस्यता रद्द करने या बरकरार रखने का अधिकार दिया जाए। यह कमेटी सालभर काम करें, जहां सदस्यता से जुड़े मामले तय किए जाएं।
सुनवाई
किस मामले की सुनवाई कर रही थी बेंच?
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में मणिपुर के वन और पर्यावरण मंत्री टी श्यामकुमार को अयोग्य ठहराने से जुड़े मामले की सुनवाई चल रही थी।
श्यामकुमार ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीता था, लेकिन बाद में वो राज्य में सरकार चला रही भाजपा में शामिल हो गए थे।
दो कांग्रेस विधायकों फजुर्रहीम और के मेघचंद्र ने इसके खिलाफ स्पीकर के पास शिकायत की, लेकिन उन्होंने इस पर कोई निर्णय नहीं लिया। इसे लेकर ये विधायक हाई कोर्ट पहुंच गए थे।
जानकारी
हाई कोर्ट ने स्पीकर की कार्रवाई पर उठाए थे सवाल
हाई कोर्ट ने स्पीकर की कार्रवाई पर सवाल उठाए थे, लेकिन कोर्ट ने मामला दल-बदल कानून के तहत होने की बात कहते हुए विधायक को अयोग्य घोषित करने पर कोई फैसला नहीं दिया। इसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट में आया।
फैसला
स्पीकर को मिला चार सप्ताह का समय
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि स्पीकर अयोग्य घोषित करने वाली याचिका को अनिश्चितकाल के लिए नहीं लटका सकता।
स्पीकर को तर्कसंगत समय में इस पर फैसला लेना चाहिए। बेंच ने कहा कि स्पीकर को आमतौर पर तीन महीनों के ऐसी याचिकाओं पर फैसला लेना चाहिए। मणिपुर मामले में बेंच ने स्पीकर को 4 सप्ताह का समय दिया है।
अगर इस दौरान निर्णय नहीं लिया जाता है तो कांग्रेस विधायक दोबारा सुप्रीम कोर्ट आ सकते हैं।