सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड्स के संभावित दुरुपयोग पर चिंता जताई, सुरक्षित रखा फैसला
क्या है खबर?
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को चार राज्यों में विधानसभा चुनावों से पहले नए चुनावी बॉन्ड (इलेक्टॉरल बॉन्ड) की बिक्री पर रोक लगाने वाली याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
हालांकि, याचिका पर सुनवाई कर रही मुख्य न्यायाधीश (CJI) एस बोबड़े के नेतृत्व वाली तीन सदस्यीय बेंच ने इन बॉन्ड के संभावित दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए केंद्र सरकार से इसकी जांच को कहा है।
आइये, इस बारे में विस्तार से जानते हैं।
जानकारी
क्या होते हैं चुनावी बॉन्ड?
केंद्र सरकार ने वित्त विधेयक 2017 में चुनावी बॉन्ड शुरू करने का ऐलान किया था। इन्हें भारतीय स्टेट बैंक (SBI) जारी करता है और ये ब्याज मुक्त होते हैं।
चुनावी बॉन्ड खरीदने वालों को 15 दिन के अंदर उन्हें अपनी मनपसंद राजनीतिक पार्टी को चंदे के तौर पर देना होता है।
राजनीतिक पार्टी अपने सत्यापित खाते में उन्हें प्राप्त चुनावी बॉन्ड्स को कैश करा सकती है। पारदर्शिता को लेकर शुरुआत से चुनावी बॉन्ड्स पर विवाद होता रहा है।
जानकारी
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा ये सवाल
बुधवार को सुनवाई के दौरान बेंच ने पूछा कि अगर किसी राजनीतिक दल को 100 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड्स मिलते हैं तो इस पर नियंत्रण कैसे रहेगा कि इनका इस्तेमाल राजनीतिक एजेंडे से बाहर के कामों और गैरकानूनी गतिविधियों के लिए नहीं होगा?
सुनवाई
केंद्र की तरफ से क्या दलील दी गई?
मामले में केंद्र का पक्ष रख रहे अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि 2018 में चुनावी बॉन्ड योजना की शुरुआत के बाद से चुनावी चंदे में कालेधन के इस्तेमाल पर रोक लगी है क्योंकि इसके लिए किसी प्रकार की नकदी नहीं ली जा रही। ये बॉन्ड्स केवल डिमांड ड्राफ्ट या चेक के जरिये खरीदे जा सकते हैं।
वहीं चुनाव आयोग ने कहा कि उसने इन बॉन्ड्स का विरोध नहीं किया है, लेकिन इसमें गोपनीयता को लेकर चिंता जताई थी।
याचिकाकर्ता
ADR ने दायर की है याचिका
HT के अनुसार, देश में चुनावी सुधार के लिए काम करने वाले एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर बॉन्ड्स की वैधता पर फैसला आने तक 1 अप्रैल से नए बॉन्ड्स की बिक्री रोकने की मांग की है।
ADR ने मामले में तुरंत सुनवाई की मांग करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट के सामने चुनावी बॉन्ड्स को लेकर लंबित तीन याचिकाओं पर फैसला आने तक नए बॉन्ड्स की बिक्री पर रोक लगनी चाहिए।
विरोध की वजह
क्यों हो रहा चुनावी बॉन्ड का विरोध?
केंद्र सरकार जब चुनावी बॉन्ड लाई थी तो उसने इसका मकसद चुनावी सुधार और राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले चंदे में पारदर्शिता लाना बताया था।
लेकिन विरोधियों के अनुसार चुनावी बॉन्ड इसके विपरीत काम करेगा और किस कंपनी ने किसे चंदा दिया, ये पता नहीं चल पाएगा।
दरअसल, चुनावी बॉन्ड की पूरी प्रक्रिया में बॉन्ड खरीदने वालों की जानकारी केवल बैंक के पास होती है और राजनीतिक पार्टियां अपने चंदे की जानकारी देने की जिम्मेदारी से मुक्त हो जाती हैं।
पारदर्शिता का मुद्दा
नहीं पता चलेगा किस कंपनी ने किस पार्टी को चंदा दिया
चुनावी बॉन्ड के विरोधियों का कहना है कि इसके जरिये कोई भी कंपनी या धनी व्यक्ति किसी भी पार्टी को मनचाहा चंदा दे सकता है और किस कंपनी ने किस पार्टी को चंदा दिया ये कभी सामने नहीं आ पाएगा।
इस चंदे के बदले में कंपनियां या धनी व्यक्ति राजनीतिक पार्टियों को अपने पक्ष में प्रभावित कर सकते हैं।
इसके अलावा विरोधी चुनावी बॉन्ड के जरिए कालेधन को सफेद किए जाने की आशंका भी जताते हैं।