
समलैंगिक विवाह: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से 15 फरवरी तक जवाब दाखिल करने को कहा
क्या है खबर?
सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न हाई कोर्ट्स में लंबित समलैंगिक विवाह से संबंधित सभी याचिकाओं को अपने पास ट्रांसफर कर लिया है और केंद्र सरकार से मामले पर 15 फरवरी तक जवाब दाखिल करने को कहा है।
उसने सरकार और याचिकाकर्ताओं से मुद्दे से संबंधित कानूनों और मिसालों का लिखित नोट आपस में और कोर्ट के साथ साझा करने को भी कहा है।
मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि याचिकाओं पर मार्च में सुनवाई होगी।
सुनवाई
समलैंगिक विवाह से संबंधित 4 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है सुप्रीम कोर्ट
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह से संबंधित चार याचिकाओं पर सुनवाई हो रही है।
इनमें से दो याचिकाओं में समलैंगिक जोड़ों ने उनकी शादी को विशेष विवाह अधिनियम के तहत मंजूरी देने की मांग की है।
अन्य दो याचिकाओं में दिल्ली हाई कोर्ट में लंबित मुद्दे से संबंधित याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर करने की मांग की गई थी।
कोर्ट ने चारों याचिकाओं पर केंद्र सरकार से राय मांगी थी, जिसने फैसला कोर्ट पर ही छोड़ दिया।
मौजूदा स्थिति
भारत में समलैंगिक विवाह पर क्या है कानूनी स्थिति?
सुप्रीम कोर्ट ने 6 सितंबर, 2018 को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए समलैंगिकता को अवैध करार देने वाली IPC की धारा 377 को रद्द कर दिया था।
इस फैसले के बाद देश में समलैंगिक संबंध तो वैध हो गए, लेकिन समलैंगिक विवाह को अभी तक मान्यता नहीं मिली है।
दरअसल, कोर्ट ने अपने फैसले में समलैंगिक विवाह का कोई जिक्र नहीं किया था, जिसके कारण अभी देश में समलैंगिक विवाह तो हो रहे हैं, लेकिन उनका रजिस्ट्रेशन नहीं हो रहा है।
मांग
समलैंगिक जोड़ों की क्या मांगें हैं?
धारा 377 रद्द होने के बाद से ही समलैंगिक जोड़े मांग कर रहे हैं कि विशेष विवाह अधिनियम, 1954 में संशोधन करके समलैंगिक विवाह को इसमें शामिल किया जाना चाहिए, ताकि वो अपनी शादी का इसके तहत कानूनी रजिस्ट्रेशन करा सकें।
समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने के लिए उन्होंने इस अधिनियम और विवाह से संबंधित अन्य कानूनों को जेंडर न्यूट्रल बनाने की मांग की है, ताकि वो भी सामान्य जोड़ों को मिलने वाले अधिकारों का लाभ उठा सकें।
रुख
केंद्र सरकार और जनता का समलैंगिक विवाह पर क्या रुख है?
भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार समलैंगिक विवाह के विरोध में है और कोर्ट में इसका विरोध कर चुकी है। उसका कहना है कि यह भारतीय मूल्यों के खिलाफ है और कोर्ट इतने बड़े सामाजिक मुद्दे पर अकेले फैसला नहीं ले सकता।
जनता की बात करें तो 2021 में इप्सोस कंपनी के सर्वे में सामने आया था कि भारत के 44 प्रतिशत लोग समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के पक्ष में हैं, वहीं 18 प्रतिशत इसके खिलाफ हैं।