मनरेगा में अभी भी बढ़ रही है काम की मांग, 96 प्रतिशत पंचायतों ने किया आवेदन
कोरोना वायरस महामारी के प्रसार को रोकने के लिए लागू किए गए लॉकडाउन के दौरान ग्रामीण क्षेत्र में लोगों को रोजगार मुहैया कराने का प्रमुख जरिया बनी मनरेगा योजना में अभी भी काम की मांग बढ़ती जा रही है। लॉकडाउन में ढील दिए जाने के बाद प्रवासी मजदूरों के फिर से शहरो की ओर लौटने पर लोग लगातार मनरेगा में काम की मांग कर रहे हैं। अब तक 96 प्रतिशत ग्राम पंयायतें काम के लिए आवेदन कर चुकी है।
लॉकडाउन के बढ़ी थी मनरेगा में काम की मांग
बता दें कि कोरोना वायरस महामारी को देखते हुए जब 25 मार्च को देशव्यापी लोकडाउन की घोषणा की तो करोड़ों की संख्या में प्रवासी मजदूर अपने घरों को लौट आए थे। उस दौरान उन्होंने रोजगार हासिल करने के लिए मनरेगा का रुख किया था। यही कारण है कि अप्रैल से लेकर 29 नवंबर तक 2,68,702 ग्राम पंचायतों के 6.52 करोड़ से अधिक घरों के 9.42 करोड़ लोगों को इस योजना के तहत रोजगार मिल चुका है।
शून्य काम पाने वाली पंचायतों की संख्या में आई रिकॉर्ड गिरावट
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार मनरेगा पोर्टल पर 29 नवंबर तक उपलब्ध डेटा बताता है कि देश में शून्य काम हासिल करने वाले पंचायतों की संख्या में रिकॉर्ड गिरावट आई है। अप्रैल से नंवबर के बीच 2,68,702 ग्राम पंचायतों में महज 3.42 प्रतिशत यानी 9,181 ग्राम पंचायतों में ही शून्य योजना के तहत शून्य काम हुआ है। इसके उलट 96.58 प्रतिशत यानी 2,59,521 ग्राम पंचायतों में लोगों को मांग के अनुसार काम मिला है।
आठ साल में सबसे अधिक पंचायतों ने मांगा काम
मनरेगा पोर्टल के डेटा के अनुसार देश में चालू वित्तीय वर्ष में पिछले आठ सालों की तुलना में सबसे अधिक ग्राम पंचायतों ने काम मांगा है। इससे जाहिर है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था अभी भी लॉकडाउन के कारण आई मंदी से उबरने के लिए संघर्ष कर रही है। गत इसी अवधि में 3.91 प्रतिशत यानी 10,371 ग्राम पंचायतों शून्य कार्य दिवस रहा था। ऐसे में सरकार भी अब पंचायतों को मांग के अनुसार काम उपलब्ध कराने का प्रयास कर रही है।
साल 2013-14 में थी शून्य काम वाली पंचायतों की सबसे अधिक संख्या
मनरेगा पोर्टल के डेटा के अनुसार देश में शून्य काम वाली पंचायतों की सबसे अधिक संख्या वित्तीय वर्ष 2013-14 में रही थी। उस दौरान 18.97 प्रतिशत यानी 51,872 पंचायतों में शून्य काम था। इसी तरह वित्तीय वर्ष 2014-15 में 18.11 प्रतिशत यानी 47,886, साल 2015-16 में 11.38 प्रतिशत यानी 30,041 पंचायत, 2016-17 में 8.40 प्रतिशत यानी 22,309 पंचायत, 2017-18 में 5.94 प्रतिशत यानी 15,749 पंचायत और 2018-19 में 5.33 प्रतिशत 14,128 पंचायतों में शून्य काम था।
सरकार ने मजदूरी के रूप में किया 53,522 करोड़ रुपये का भुगतान
डेटा के अनुसार इस साल सरकार ने मजदूरी पर योजना की शुरुआत से लेकर अब तक सबसे अधिक 53,522 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। चालू वित्त् वर्ष में सभी मजदूरों ने कुल 265.81 करोड़ दिन के बराबर काम किया है। जबकि, पिछले साल इसी अवधि में यह संख्या 265.44 करोड़ दिन थी। ऐसे में कहा जा सकता है कि महामारी के कारण बेरोजगार हुए लोगों को मनरेगा ने अपने गृह क्षेत्र में ही रोजगार मुहैया कराया है।
इस तहर बढ़ी मनरेगा में काम की मांग
डेटा के अनुसार अगस्त में 63 प्रतिशत ग्राम पंचायतों ने काम के लिए आवेदन किया था, जो अक्टूबर में बढ़कर 65 प्रतिशत पर पहुंच गई है। ऐसे में अक्टूबर में कुल 1.98 करोड़ परिवारों ने योजना के तहत रोजगार हासिल किया है। इसके उलट पिछले साल इसी महीने में रोजगार पाने वालों की संख्या 1.09 करोड़ परिवार थी। ऐसे में इस साल इसी महीने में काम हासिल करने वाले परिवारों की संख्या में 82 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
तमिलनाडु में सबसे अधिक लोगों को मिला रोजगार
डेटा के अनुसार अक्टूबर में मनरेगा के तहत तमिलनाडु में सबसे अधिक 42.78 लाख परिवारों ने रोजगार हासिल किया है। इसी तरह पश्चिम बंगाल में 22.52 लाख, उत्तर प्रदेश में 20 लाख और मध्य प्रदेश में 15.19 लाख परिवारों ने रोजगार हासिल किया है।