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    भारत की GDP में 23.9 प्रतिशत की गिरावट, जानें क्या हैं इसके मायने

    भारत की GDP में 23.9 प्रतिशत की गिरावट, जानें क्या हैं इसके मायने

    लेखन मुकुल तोमर
    Sep 01, 2020
    11:31 am

    क्या है खबर?

    वित्तीय वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 23.9 प्रतिशत की गिरावट आई। जब से देश में GDP के आंकड़े इकट्ठा होना शुरू हुए हैं, ये अब तक की सबसे कम विकास दर है और 1991-92 में आर्थिक उदारीकरण के बाद देश की विकास दर पहली बार नेगेटिव में गई है।

    बता दें कि अप्रैल-जून के बीच कोरोना महामारी के कारण लॉकडाउन लगा हुआ था और देशभर में आर्थिक गतिविधियां बंद पड़ी थी।

    जानकारी

    कैसे निकाली जाती है GDP?

    देश में एक निश्चित समय के अंदर किये गए उत्पादन के कुल मूल्य को GDP कहा जाता है। आसान भाषा में समझें तो सुई से लेकर हवाई जहाज तक, देश में बने सभी सामानों और सेवाओं के मूल्य को जोड़ दिया जाए तो GDP मिलेगी।

    मतलब

    जानें क्या है इस गिरावट का मतलब

    GDP के आंकड़े दो तरीके से आते हैं। पहला किसी वित्तीय वर्ष की चार तिमाही के रूप में और दूसरा पूरे वित्तीय वर्ष के।

    वित्तीय वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में GDP में 23.9 प्रतिशत की कमी आई, वहीं वित्तीय वर्ष 2019-20 के अप्रैल-जून में GDP में 5.2 प्रतिशत का विस्तार हुआ था।

    मतलब पिछले साल अप्रैल-जून के मुकाबले इस साल अप्रैल-जून में 23.9 प्रतिशत कम मूल्य के सामान बने। वहीं जनवरी-मार्च की तिमाही में GDP 3.1 प्रतिशत बढ़ी थी।

    अनुमान

    विशेषज्ञों के अनुमानों से भी अधिक रही गिरावट

    तमाम विशेषज्ञ पहले से ही अप्रैल-जून की तिमाही में भारत की विकास दर नेगेटिव में जाने की आशंका जता रहे थे क्योंकि इन तीनों महीनों में देशभर में लॉकडाउन लगा हुआ था और आर्थिक गतिविधियां पूरी तरह से बंद थीं।

    हालांकि विशेषज्ञों ने 20 प्रतिशत तक की गिरावट का अनुमान लगाया था।

    बता दें कि वित्तीय वर्ष 2019-20 में अर्थव्यवस्था 6.1 प्रतिशत बढ़ी थी। आशंका है कि 2020-21 वित्तीय वर्ष में कुल विकास दर अनुमानों से कम रह सकती है।

    जानकारी

    आर्थिक मंदी के दौर में प्रवेश कर रहा भारत

    भारत में GDP में आई इस गिरावट को आर्थिक मंदी की शुरूआत माना जा रहा है। लगातार दो तिमाही तक विकास दर नेगेटिव रहने की स्थिति को मंदी कहा जाता है और भारत में जुलाई-सितंबर तिमाही में भी गिरावट दर्ज की जा सकती है।

    क्षेत्रों की स्थिति

    कैसी रही अलग-अलग क्षेत्रों की स्थिति?

    अलग-अलग क्षेत्रों की बात करें तो कृषि क्षेत्र एकमात्र ऐसा क्षेत्र रहा जिसमें लॉकडाउन के दौरान भी 3.4 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। अन्य सभी क्षेत्रों में गिरावट दर्ज की गई।

    कंस्ट्रशन में -50.3 प्रतिशत, मैन्युफैक्चरिंग में -39.3 प्रतिशत, खनन में -23.3 प्रतिशत और व्यापार, होटल आदि सेवाओं में -47 प्रतिशत, उद्योग में -38.1 प्रतिशत, सेवाओं में -20.6 प्रतिशत, बिजली में -7 प्रतिशत और वित्तीय सेवाओं में -5.3 प्रतिशत विकास दर रही।

    नौकरियां

    नौकरियों पर क्या असर पड़ा?

    विकास दर में सबसे अधिक गिरावट देश में सबसे अधिक नौकरी पैदा करने वाली कंस्ट्रशन, व्यापार और होटल आदि सेवाएं, मैन्युफैक्चरिंग, माइनिंग और उद्योग के क्षेत्र में देखने को मिली है।

    इन क्षेत्रों में इतनी अधिक गिरावट का मतलब है कि लाखों लोगों को अपनी नौकरियां खोनी पड़ी हैं। विशेषज्ञों ने आगे भी ऐसी ही स्थिति जारी रहने की आशंका जताई है, यानि लोगों की नौकरियां जाने का सिलसिला कुछ और समय तक चलता रहेगा।

    कारण

    निजी खपत में कमी रही गिरावट का सबसे बड़ा कारण

    अगर गिरावट के कारणों का विश्लेषण करें तो निजी खपत में कमी इसका सबसे बड़ा कारण रहा।

    दरअसल, भारत की GDP को खींचने वाले चार इंजनों में से दो- लोगों की निजी मांग और निजी कारोबारों की मांग- सबसे अहम हैं और कुल GDP में इनका लगभग 88.4 प्रतिशत योगदान है।

    अप्रैल-जून की तिमाही के दौरान निजी मांग में 27 प्रतिशत और निजी कारोबारों की मांग में 47 प्रतिशत की कमी आई, जिसके कारण GDP में गिरावट देखने को मिली।

    सरकार की भूमिका

    गिरावट कम करने के लिए सरकार क्या कर सकती थी और ऐसा क्यों नहीं किया?

    अब बात करते हैं कि सरकार क्या कर सकती थी।

    विशेषज्ञों के अनुसार चूंकि रोजगार और कमाई में कमी के कारण लोगों की मांगें घटना GDP में गिरावट की एक मुख्य वजह रही, सरकार सीधे लोगों के हाथ में पैसा देकर कुछ समय के लिए मांग को बढ़ा सकती थी और इससे गिरावट पर कुछ हद तक काबू पाया जा सकता था।

    हालांकि, पहले से ही आर्थिक तंगी में चल रही सरकार ने ऐसा नहीं किया।

    रास्ता

    आगे क्या रास्ता है?

    जानकारों के अनुसार मौजूदा परिस्थितियों से बाहर निकलने के लिए सरकार को अपना खर्च बढ़ाना होगा। सरकार को या तो विभिन्न परियोजनाएं शुरू कर अपनी मांग बढ़ानी होगी ताकि निजी क्षेत्र की मांग में आई कमी की भरपाई की जा सके या फिर लोगों के हाथ में पैसा देना होगा ताकि मांग बढ़े। लोगों की तरफ से मांग और खपत बढ़ने पर कारोबार भी पटरी पर आएंगे।

    अगर सरकार ऐसा नहीं करती तो अर्थव्यवस्था को उबरने में अधिक समय लगेगा।

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