कोरोना वायरस: देश में अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंची ट्रांसमिशन रेट
देश में कोरोना वायरस (COVID-19) के बढ़ते मामलों के बीच एक राहत देने वाली खबर आई है। कोरोना वायरस महामारी की शुरुआत होने के बाद पहली बार देश में ट्रांसमिशन रेट अब तक के सबसे कम स्तर पर पहुंच गई है। ट्रांसमिशन रेट का मतलब यह होता है कि कितने लोग एक संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से संक्रमित हो रहे हैं। लॉकडाउन लागू होने के बाद से ही इसमें लगातार गिरावट देखी जा रही है।
ट्रांसमिशन रेट से क्या पता चलता है?
ट्रांसमिशन रेट को रिप्रोडक्शन नंबर, R वैल्यू या सिर्फ R से भी जाना जाता है। इसके सहारे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि कोई महामारी जनसंख्या को कैसे अपना निशाना बना रही है।
लॉकडाउन शुरू होने से पहले कितनी थी ट्रांसमिशन रेट?
चेन्नई स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ मैथमेटिकल साइसेंस के अनुसार, 25 मार्च से जब लॉकडाउन का पहला चरण शुरू हुआ, तब ट्रांसमिशन रेट 1.83 थी। इसका मतलब यह हुआ कि कोरोना वायरस से संक्रमित 100 लोग अपने संपर्क में आने वाले औसतन 183 अन्य लोगों को संक्रमित कर रहे थे। लॉकडाउन के कारण यह रेट घटकर 1.49 और बाद में 1.29 हो गई। खास बात यह है कि लोगों की आवाजाही बढ़ने के बावजूद यह लगातार घट रही है।
अब कितनी हो गई है ट्रांसमिशन रेट?
IMSc के ताजा विश्लेषण में यह सामने आया है कि अब देश में वायरस की ट्रांसमिशन रेट घटकर 1.22 हो गई है। यानी अब कोरोना वायरस के 100 मरीज अपने संपर्क में आने वाले सिर्फ 122 अन्य लोगों को संक्रमित कर रहे है, जो अब तक का सबसे कम है। यह बात ध्यान रखने वाली है कि जब ट्रांसमिशन रेट 1 से कम हो जाती है, तभी किसी महामारी के अंत की शुरुआत मानी जाती है।
राज्यों के स्तर पर हालात चिंताजनक
हालांकि, देश में ट्रांसमिशन रेट का कम होना राहत देने वाली खबर है, लेकिन राज्यों के स्तर पर यह अभी भी चिंताजनक बनी हुई है। उदाहरण के लिए उत्तराखंड में यह 2 है, जो देश में सर्वाधिक है। वहीं हरियाणा में यह 1.9 और असम में लगभग 1.7 है। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, इन राज्यों में बढ़ोतरी के बावजूद महाराष्ट्र में ट्रांसमिशन रेट में आई कमी ने राष्ट्रीय औसत को कम कर दिया है।
25 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में राष्ट्रीय औसत से अधिक
देश के कुल मामलों में से सर्वाधिक अकेले महाराष्ट्र के हैं। इस वजह से यहां होने वाले किसी भी बदलाव का राष्ट्रीय स्तर पर सीधा असर पड़ता है। कुल मामलों में लगभग 35 प्रतिशत मामले होने के बावजूद बावजूद यहां ट्रांसमिशन रेट 1.18 है, जो राष्ट्रीय स्तर से भी नीचे हैं। वहीं 25 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश ऐसे हैं, जहां ट्रांसमिशन रेट राष्ट्रीय औसत से अधिक है, लेकिन राजस्थान, महाराष्ट्र और गुजरात में इसमें गिरावट देखी गई है।
राज्यों में ट्रांसमिशन रेट बढ़ने से राष्ट्रीय औसत पर पड़ेगा असर
महाराष्ट्र में ट्रांसमिशन रेट कम होना उम्मीद की किरण दिखाता है, लेकिन इसका एक दूसरा पक्ष भी है। जानकारों का कहना है कि जैसे-जैसे महाराष्ट्र में यह रेट कम होती जाएगी, वैसे ही दूसरे राज्य इससे आगे बढ़ते जाएंगे और इसका असर राष्ट्रीय औसत पर भी दिखेगा। कुछ जानकारों का कहना है कि अभी से यह असर शुरू हो गया है और अगले कुछ दिनों में राष्ट्रीय औसत में बदलाव साफ तौर पर देखा जा सकेगा।
क्या कहते हैं जानकार?
IMSc से जुड़े डॉक्टर सीताभ्रा सिन्हा ने कहा, "मुझे लगता कि अगले कुछ हफ्तों में ट्रांसमिशन रेट बढ़ेगी। महाराष्ट्र में यह राष्ट्रीय औसत से कम हो रही है। इसके बाद राज्यों की औसत का सीधा असर राष्ट्रीय स्तर पर दिखेगा। यह राज्यों की बढ़ती औसत के आधार पर बदलती रहेगी। इसलिए जैसी गिरावट हम अब देख रहे हैं हो सकता है कि अगले महीनों में वैसा न देखने को मिले।"