
कोरोना वायरस: केरल को मिली प्लाज्मा थैरेपी के जरिए मरीजों के इलाज के ट्रायल की मंजूरी
क्या है खबर?
केरल को कोन्वेलेसेंट प्लाज्मा थैरेपी के जरिए कोरोना वायरस के मरीजों के इलाज के ट्रायल की मंजूरी मिल गई है। केरल सरकार ने डॉक्टरों और वैज्ञानिकों की एक टास्क फोर्स बनाई है जिसने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) के सामने ये प्रस्ताव रखा था और बुधवार को उसे इसकी मंजूरी मिल गई।
केरल प्लाज्मा थैरेपी को लेकर क्लीनिकल ट्रायल करने वाला पहला राज्य होगा।
लेकिन ये कोन्वेलेसेंट प्लाज्मा थैरेपी आखिर है क्या, आइए आपको बताते हैं।
कोन्वेलेसेंट प्लाज्मा थैरेपी
क्या है कोन्वेलेसेंट प्लाज्मा थैरेपी?
कोन्वेलेसेंट प्लाज्मा थैरेपी में कोरोना वायरस को मात दे चुके शख्स के खून से प्लाज्मा निकाला जाता है और उसे संक्रमित व्यक्ति में चढ़ाया जाता है। प्लाज्मा, खून का एक कंपोनेट होता है।
जब कोई व्यक्ति कोरोना वायरस से ठीक होता है तो उसके शरीर में यह महामारी फैलाने वाले SARS-CoV-2 वायरस को मारने वाली एंटीबॉडी बन जाती है।
प्लाज्मा के जरिये वो एंटीबॉडीज निकालकर संक्रमित मरीज में चढ़ाई जाती है। इससे मरीज की प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होती है।
ट्रायल
चीन और दक्षिण कोरिया के ट्रायल में असरदार साबित हुई है प्लाज्मा थैरेपी
चीन में पहली बार प्लाज्मा थैरेपी का ट्रायल किया गया था और कोरोना वायरस से गंभीर रूप से बीमार पांच लोगों पर इसे चढ़ाया गया। पहली डोज से ही इन मरीजों की सेहत में सुधार होना शुरू हुआ और अब वो पांचों ठीक हो चुके हैं।
चिकित्सक मापदंडों के हिसाब से ये ट्रायल बेहद छोटा था लेकिन इसके परिणाम काफी उत्साहित करने वाले हैं।
इसी तरह दक्षिण कोरिया में भी दो बुजुर्ग मरीजों का इससे सफल इलाज किया गया है।
अमेरिका
ऐसा काम करती है प्लाज्म थैरेपी, अमेरिका में भी हो रहे ट्रायल
स्टडी के अनुसार, प्लाज्मा चढ़ाए जाने के कारण मरीज के शरीर में लिम्फोसाइट बढ़ते हैं, लिवर और फेफड़ों की स्थिति में सुधार होता है और सूजन कम होती है।
इस दौरान मरीज की सेहत पर कोई विपरित प्रभाव नहीं पड़ता। हालांकि, रिसर्चर ने अभी और प्रयोगों की जरूरत बताई है।
अमेरिका में भी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (FDA) ने प्लाज्मा थैरेपी के ट्रायल की मंजूरी दे दी है और न्यूयॉर्क समेत कई जगहों पर इसके ट्रायल शुरू हो गए हैं।
इतिहास
संक्रमण को रोकने के लिए सालों से इस्तेमाल हो रहा प्लाज्मा
जानकारों का कहना है कि 1890 के दशक से संक्रमण को रोकने और इलाज करने के लिए प्लाज्मा का इस्तेमाल किया जा रहा है।
क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज वेल्लोर के प्रोफेसर टी जैकब जॉन ने कहा कि इससे इलाज की सफलता इस बात पर निर्भर करती है यह किसे और कब दिया जाता है।
उन्होंने कहा कि यह उन मरीजों को हालत बिगड़ने से पहले दिया जाना चाहिए, जिन्हें पहले से डायबिटीज और हायपरटेंशन जैसी बीमारी हो।
जानकारी
केरल सरकार को इन संस्थाओं से भी लेनी होगी मंजूरी
केरल सरकार को अभी केवल ICMR से मंजूरी मिली है और अभी उसे ट्रायल शुरू करने के लिए उसे ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI), आचार समिति और क्लिनिकल ट्रायल रजिस्ट्री-इंडिया से भी मंजूरी लेनी होगी।