#NewsBytesExplainer: क्या है जन विश्वास विधेयक, जिससे बदल जाएंगे 42 कानून?
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को जन विश्वास (प्रावधान संशोधन) विधेयक, 2022 को मंजूरी दे दी है। वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने पिछले साल 22 दिसंबर को इसे लोकसभा में पेश किया था। बाद में इसे संसद की संयुक्त समिति के पास भेजा गया था। मार्च में समिति ने अपनी रिपोर्ट पेश की थी, जिसके बाद अब विधेयक को मंजूरी मिल गई है। आइए समझते हैं विधेयक में क्या-क्या प्रावधान हैं।
जन विश्वास विधेयक क्यों लाया गया और इसमें क्या प्रावधान?
जन विश्वास विधेयक को व्यापार में सुगमता बढ़ाने के लिए लाया गया है। इसके जरिए सरकार 19 मंत्रालयों से जुड़े 42 कानूनों में संशोधन करने की तैयारी में है। इस विधेयक के जरिए इन कानूनों के छोटे उल्लंघनों को अपराध की श्रेणी से हटाया जाएगा और जिन उल्लंघनों के लिए अभी सजा का प्रावधान है, उनके लिए केवल आर्थिक दंड का प्रावधान करके उन्हें अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया जाएगा।
विधेयक का किन कानून पर होगा असर?
विधेयक के जरिए औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम 1940, सार्वजनिक ऋण अधिनियम 1944, फार्मेसी अधिनियम 1948, सिनेमैटोग्राफ अधिनियम 1952, कॉपीराइट अधिनियम 1957, पेटेंट अधिनियम 1970, पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986, भारतीय डाकघर अधिनियम 1898, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000, मोटर वाहन अधिनियम 1988, सार्वजनिक देयता बीमा अधिनियम, 1991, मनी लॉन्ड्रिंग निरोधक अधिनियम 2002, खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम 2006 जैसे 42 कानूनों में बदलाव होगा। ये कानून वित्त, सड़क परिवहन और राजमार्ग, वाणिज्य और पर्यावरण जैसे मंत्रालयों से जुड़े हैं।
विधेयक से क्या बदलेगा?
इसे उदाहरण से समझते हैं। सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम में प्रावधान है कि गैरकानूनी तरीके से व्यक्तिगत जानकारी लीक करने पर 3 साल की सजा और 5 लाख रुपये का जुर्माना भरना होगा। विधेयक में इसे 25 लाख रुपये के जुर्माने में बदल दिया गया है। कृषि उपज (ग्रेडिंग और मार्किंग) अधिनियम में नकली ग्रेड चिह्न बनाने पर 3 साल की सजा और 5,000 रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है। विधेयक में इसे 8 लाख रुपये कर दिया गया है।
विधेयक से क्या फायदे होंगे?
केंद्र सरकार का कहना है कि इससे व्यापार में सुगमता आएगी क्योंकि छोटे अपराधों से जुड़े कई कानूनों में सजा को जुर्माने में बदला गया है। इससे कोर्ट में लंबित मामलों की संख्या में भी कमी आएगी। राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड के अनुसार, 4.3 करोड़ लंबित मामलों में से लगभग 3.2 करोड़ मामले आपराधिक कार्यवाही से संबंधित हैं। इसके अलावा पहले से ही जगह की कमी से जूझ रही जेलों पर भी कैदियों का बोझ कम होगा।
सरकार क्यों लेकर आई विधेयक?
विश्व बैंक द्वारा प्रकाशित ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग में 2013 में भारत 185 देशों में 132वें स्थान पर था। 2020 में भारत इस रैंकिंग में 63वें स्थान पर पहुंच गया था। हालांकि, अब ये रैंकिंग प्रकाशित नहीं होती, लेकिन सरकार इसमें भारत की स्थिति सुधारने में जुटी है। इसके अलावा वाणिज्य पर स्थायी समिति और कंपनी कानून समिति समेत कई संसदीय समितियां भी व्यावसायिक गतिविधियों में परेशानी कम करने के लिए सुधारों की सिफारिश कर चुकी हैं।
विधेयक को लेकर अब तक क्या-क्या हुआ?
संयुक्त संसदीय समिति ने इस पर 19 मंत्रालयों और विभागों के साथ विस्तृत चर्चा की थी। समिति ने रिपोर्ट में केंद्र को कई सुझाव दिए थे। समिति ने कहा था कि केंद्र को व्यापार और जीवनयापन को आसान बनाने के उद्देश्य से छोटे अपराधों को अपराध की श्रेणी से मुक्त करना चाहिए और इससे लंबित मुकदमों को कम करने में भी मदद मिल सकती है। समिति ने कहा था कि जहां तक संभव हो, कारावास की जगह जुर्माना लगाया जाए।