#NewsBytesExplainer: उत्तराखंड के UCC मसौदे में क्या-क्या है? केंद्र इसी तर्ज पर बना सकता है कानून
क्या है खबर?
उत्तराखंड सरकार द्वारा लाए जा रहे समान नागरिक संहिता (UCC) की रूपरेखा तैयार हो चुकी है। मसौदा तैयार करने वाली जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई (सेवानिवृत्त) का कहना है कि इसे जल्द राज्य सरकार को सौंपा जाएगा।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बताया था कि समान नागरिक संहिता का ड्राफ्ट तैयार करने हेतु बनाई गई समिति ने अपना कार्य पूरा कर लिया है।
समझते हैं इस मसौदे में क्या-क्या है।
समानता
लैंगिक समानता पर जोर
मसौदे में संपत्ति में महिलाओं को बराबर हक मिलने की बात हो सकती है।
पुरुषों को बिना तलाक लिए 2 पत्नियों को रखने की इजाजत नहीं होगी। बच्चों को गोद लेने और तलाक के लिए सभी धर्मों में समान प्रावधान किए जा सकते हैं।
जस्टिस देसाई ने कहा, "हमारा जोर महिलाओं, बच्चों और विकलांग व्यक्तियों को ध्यान में रखते हुए लैंगिक समानता सुनिश्चित करने पर है। हमने भेदभाव खत्म करके सभी को समान स्तर पर लाने की कोशिश की है।"
संबंध
लिव-इन-रिलेशनशिप और समलैंगिक मुद्दों पर चर्चा
प्रस्तावित मसौदे में समलैंगिक समुदाय के मुद्दों पर भी विचार किया गया है। हालांकि, समलैंगिक विवाह का मुद्दा अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, इसलिए इस मुद्दे पर कोई सिफारिश नहीं की गई है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, लिव-इन रिलेशनशिप में धोखेबाजी को देखते हुए इसकी शुरुआत और खत्म करने की घोषणा जरूरी करने का प्रावधान हो सकता है। ऐसे संबंधों से पैदा होने वाले बच्चे के लिए भी नियम कायदों पर चर्चा हो सकती है।
उम्र
शादी की उम्र में बदलाव, बच्चों की संख्या निर्धारित होगी
बताया जा रहा है कि मसौदे में लड़कियों की शादी की न्यूनतम कानूनी उम्र 18 साल से बढ़ाकर 21 साल करने का प्रस्ताव है।
लिव-इन रिलेशनशिप में माता-पिता को सूचित करने और शादी का पंजीयन करवाना भी अनिवार्य किया जा सकता है।
कथित तौर पर मसौदे में जनसंख्या नियंत्रण हेतु बच्चों की संख्या तय करने की सिफारिश की गई है। हालांकि, इस बात की जानकारी नहीं है कि ये संख्या क्या होगी।
मुस्लिम
मुस्लिमों से जुड़े ये मुद्दे हो सकते हैं शामिल
रिपोर्ट्स के मुताबिक, मुस्लिम महिलाओं के मुद्दों में बहुविवाह, इद्दत (पति की मृत्यु के बाद या तलाक के बाद वह अवधि, जिसके दौरान महिला अन्य पुरुष से शादी नहीं कर सकती) और हलाला जैसी प्रथाओं को खत्म करने का प्रावधान भी शामिल है।
तलाक लेने के लिए पति और पत्नी के आधार अलग-अलग हैं। प्रस्तावित मसौदे में इन्हें महिला और पुरुष दोनों के लिए एक समान बनाया जा सकता है।
मसौदा
कैसे तैयार हुआ मसौदा?
जस्टिस देसाई ने बताया कि इस मसौदे को तैयार करने के लिए पिछले 2 साल में समिति ने 63 बैठकें की।
उन्होंने कहा, "समिति को UCC पर 2.31 लाख लोगों ने लिखित में अपने विचार भेजे। उपसमितियों ने आदिवासी गांवों समेत 40 जगहों का दौरा किया। राजनीतिक दलों, धार्मिक प्रतिनिधियों से राय ली गई, विधि आयोग से बात की और प्रचलित प्रथाओं को समझने का प्रयास किया गया। मुस्लिम देशों समेत कई देशों का कानूनों का अध्ययन किया।"
कानून
क्या केंद्र भी इसी तरह का कानून बना सकता है?
माना जा रहा है कि UCC पर केंद्र के मसौदे में भी मोटे तौर पर इसी तरह के प्रावधान हो सकते हैं। इस मुद्दे पर सांसदों की राय जानने के लिए संसदीय स्थायी समिति की 3 जुलाई को बैठक बुलाई गई है।
इससे पहले 14 जून को 22वें विधि आयोग ने UCC के मुद्दे पर धार्मिक संगठनों और आम लोगों से राय मांगी थी। खबर है कि सरकार संसद के मानसून सत्र में UCC पर विधेयक पेश कर सकती है।
क्या है
क्या है समान नागरिक संहिता?
UCC का मतलब है, देश के सभी वर्गों पर एक समान कानून लागू होना। अभी देश में विवाह, तलाक और उत्तराधिकार जैसे मुद्दों पर सभी धर्मों के अपने अलग-अलग निजी कानून हैं और वह उन्हीं के मुताबिक चलते हैं।
UCC लागू होने पर सभी धर्मों के लोगों को इन मुद्दों पर भी एक जैसे कानून का पालन करना होगा। यह महज एक अवधारणा है और विस्तार में इसका रूप कैसा होगा, इस पर कुछ तय नहीं है।