निर्भया कांड: फांसी से बचने के लिए किस दोषी के पास कितने कानूनी विकल्प?
निर्भया कांड के चारों दोषियों को फांसी देने के लिए 22 जनवरी का दिन तय किया गया था, लेकिन इस दिन फांसी नहीं हो पाएगी। चार में से एक दोषी मुकेश सिंह ने राष्ट्रपति के पास दया याचिका भेजी है। इस पर फैसला आने से पहले उसे फांसी नहीं दी जा सकती। वहीं बाकी तीन दोषियों के पास अभी भी दया याचिका और इनमें से दो के पास क्यूरेटिव पिटिशन और दया याचिका, दोनों का विकल्प बचा हुआ है।
क्या होती है क्यूरेटिव पिटिशन?
अदालत के किसी फैसले को चुनौती देने के लिए रिव्यू पिटिशन दायर की जाती है। इस पर आए फैसले से अगर कोई पक्ष संतुष्ट नहीं है तो वह क्यूरेटिव पिटिशन दायर कर सकता है। इसमें याचिकाकर्ता को बताना होता है कि फैसले को किस आधार पर चुनौती दी जा रही है। इसमें उन बिंदुओं को चिन्हित किया जाता है जिस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। इस पर फैसला आने के बाद सारे कानूनी रास्ते बंद हो जाते हैं।
दो दोषियों की क्यूरेटिव पिटिशन हो चुकी है खारिज
14 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने मुकेश और विनय की क्यूरेटिव पिटिशन खारिज की थी, जिसके बाद मुकेश ने राष्ट्रपति को दया याचिका भेजी है। दिल्ली सरकार ने उसकी याचिका को खारिज करने की अनुशंसा करते हुए गृह मंत्रालय को भेज दिया है। अब गृह मंत्रालय के जरिए यह राष्ट्रपति के पास जाएगी। दूसरे दोषी विनय के पास अभी भी राष्ट्रपति के पास दया याचिका भेजने का विकल्प बचा हुआ है। वह भी राष्ट्रपति को दया याचिका भेज सकता है।
राष्ट्रपति को दया याचिका भेजने पर ये कहता है नियम
अगर कोर्ट क्यूरेटिव पिटिशन खारिज कर देता है तो दोषी को सात दिन का समय दिया जाता है। इन सात दिनों में वह राष्ट्रपति के पास दया याचिका भेज सकता है। हर दोषी अलग-अलग समय पर क्यूरेटिव पिटिशन और दया याचिका भेज सकता है।
अक्षय और पवन के पास बचे हैं दो-दो कानूनी विकल्प
चार में से दो दोषियों, अक्षय और पवन के पास अभी भी दो-दो कानूनी विकल्प बचे हुए हैं। ये दोनों डेथ वारंट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पिटिशन दायर कर सकते हैं। उस पर सुनवाई होने या न होने की स्थिति में भी इनके पास राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर करने का विकल्प बचा रहेगा। यह तय है कि 22 जनवरी को इनको फांसी नहीं होगी। उससे पहले ये सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं।
क्या कहते हैं नियम?
नियम यह है कि अगर किसी मामले में एक से ज्यादा दोषियों को फांसी की सजा दी गई है और इनमें से किसी एक की भी दया याचिका लंबित है, तो उस पर फैसला आने तक किसी भी दोषी को फांसी नहीं होगी। वहीं अगर राष्ट्रपति किसी दोषी की दया याचिका खारिज कर देते हैं तो उसके बाद उसे फांसी देने से पहले 14 दिन का समय दिया जाता है ताकि वह परिजनों से मुलाकात कर सके।
संविधान में दिया गया है राष्ट्रपति को अधिकार
राष्ट्रपति को संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत दया याचिका पर सुनवाई करने का अधिकार है। सरकार किसी याचिका पर अपनी सिफारिश उन्हें भेजती है और फिर राष्ट्रपति अपना फैसला देते हैं। अभी तक के राष्ट्रपतियों का ऐसी याचिकाओं पर रिकॉर्ड यहां देख सकते हैं।
चार दोषियों को सितंबर 2013 में हुई थी फांसी की सजा
16 दिसंबर, 2012 की रात को चलती बस में निर्भया के साथ छह लोगों ने रेप किया था। एक आरोपी राम सिंह ने मार्च 2013 में तिहाड़ जेल में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। वहीं नाबालिग दोषी को तीन साल के लिए बाल सुधार गृह भेजा गया था। बाकी चार आरोपियों, मुकेश सिंह, विनय शर्मा, पवन गुप्ता और अक्षय सिंह, को दिल्ली की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने 13 सितंबर, 2013 को फांसी का सजा सुनाई थी।