#NewsBytesExplainer: पंजाब में खालिस्तानी आंदोलन का इतिहास क्या है?
खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह की तलाश में पंजाब पुलिस जुटी हुई है। अमृतपाल को शनिवार को गिरफ्तार करने की कोशिश की गई थी, लेकिन वह पुलिस को चकमा देकर निकल गए। पुलिस ने अमृतपाल को भगोड़ा घोषित कर दिया है और 'वारिस पंजाब दे' संगठन से जुड़े 78 लोगों को गिरफ्तार कर चुकी है। अमृतपाल पंजाबियों के लिए अलग देश खालिस्तान के बड़े समर्थक हैं। आइये समझने की कोशिश करते हैं कि खालिस्तानी आंदोलन की पूरी कहानी क्या है।
क्या है खालिस्तानी आंदोलन?
खालिस्तान आंदोलन सिखों के लिए एक अलग संप्रभु राज्य की लड़ाई है। कुछ सिखों की मांग है कि भारत-पाकिस्तान के कुछ हिस्सों को मिलाकर उसे अलग देश घोषित किया जाए, जिसका नाम खालिस्तान हो। खालिस्तान आंदोलन की शुरुआत 1929 से मानी जाती है। कांग्रेस के लाहौर सेशन में मोतीलाल नेहरू ने पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव रखा। इस दौरान मास्टर तारा सिंह की अगुआई में शिरोमणि अकाली दल ने पहली बार सिखों के लिए अलग देश की मांग की थी।
आजादी के बाद शुरू हुआ 'पंजाबी सूबा आंदोलन'
आजादी के बाद भारत के बंटवारे से पंजाब भी दो हिस्सों में बंट गया, जिसका एक हिस्सा पाकिस्तान तो एक हिस्सा भारत के पास रहा। इसके बाद सिखों ने अलग राज्य की मांग को और तेज कर दिया और इसे नाम दिया गया 'पंजाबी सूबा आंदोलन'। शिरोमणि अकाली दल भारत में ही भाषा के आधार पर अलग सिख प्रदेश की मांग कर रहा था। इसे लेकर पूरे पंजाब में 19 साल तक आंदोलन होता रहा।
1966 में हुआ पंजाब का बंटवारा
अलग राज्य की मांग को बढ़ता देख 1966 में इंदिरा गांधी ने पंजाब को तीन हिस्सों में बांट दिया। सिख बहुल पंजाब, हिंदी भाषी लोगों के लिए हरियाणा और हिंदू बहुल हिमाचल प्रदेश बनाया गया। इसके बावजूद पंजाब में खालिस्तान की मांग जारी रही।
आनंदपुर साहिब प्रस्ताव क्या था?
पंजाब जब अलग राज्य बना तो अकाली दल ने और ज्यादा अधिकारों की मांग की। 1973 में अकाली दल ने आनंदपुर साहिब प्रस्ताव पास किया, इसमें पंजाब को ज्यादा अधिकार देने के सुझाव थे। इस प्रस्ताव में सुझाया गया कि केंद्र सरकार सिर्फ रक्षा, विदेश नीति, मुद्रा और संचार जैसे विषयों को देखें। बाकी सभी विषय राज्य सरकार के हाथ में हों। इंदिरा गांधी ने इस प्रस्ताव को 'देशद्रोही' करार दिया था।
जब दुनिया के सामने आई खालिस्तान की मांग
1969 के पंजाब विधानसभा चुनावों में टांडा सीट से जगजीत सिंह चौहान खड़े हुए थे। चुनाव हारने के बाद वे ब्रिटेन चले गए और वहां से खालिस्तान आंदोलन की शुरुआत की। 13 अक्टूबर, 1971 को जगजीत सिंह ने न्यूयॉर्क टाइम्स अखबार में विज्ञापन छपवाकर खालिस्तान नाम के नए देश की घोषणा की। चौहान ने खालिस्तानी पासपोर्ट और मुद्रा जारी कर कथित तौर पर कई देशों में खालिस्तान देश के दूतावास खोल दिए।
जरनैल सिंह भिंडरावाले का उदय
जरनैल सिंह भिंडरावाले आनंदपुर साहिब प्रस्ताव का कट्टर समर्थक था। 1982 में भिंडरावाले ने शिरोमणि अकाली दल से हाथ मिला लिया और असहयोग आंदोलन शुरू किया। 1978 में अकाली कार्यकर्ताओं और निरंकारियों के बीच झड़प में 13 निरंकारियों को मौत हो गई। 80 के दशक की शुरुआत में पंजाब केसरी के संपादक और पंजाब पुलिस के DIG की हत्या कर दी गई। राज्य में बढ़ती हिंसक घटनाओं के पीछे भिंडरावाले की भूमिका सामने आने लगी।
ऑपरेशन ब्लू स्टार
इस बीच भिंडरावाले ने स्वर्ण मंदिर को अपना ठिकाना बना लिया। सरकार ने भिंडरावाले को रोकने के लिए ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू किया। 5 जून, 1984 को शुरू हुए ऑपरेशन में भारतीय सेना ने स्वर्ण मंदिर में घुसकर भिंडरावाले और उसके समर्थकों को मार गिराया। इस दौरान भारी तादाद में गोला बारूद इस्तेमाल किया गया। 83 जवान शहीद हुए और 249 घायल हुए। अलग-अलग रिपोर्ट के मुताबिक, करीब 3,000 लोग मारे गए।
भिंडरावाले के पीछे था पाकिस्तान का हाथ
खालिस्तानी आंदोलन के दौरान हुई हिंसक घटनाओं में भिंडरावाले को पाकिस्तान की ओर से भी मदद मिलती रही। भिंडरावाले का भतीजा लखबीर सिंह कथित तौर पर लाहौर में बैठकर खालिस्तानी आंदोलन के समर्थन में लोगों को एकजुट करता है। अब अमृतपाल के पीछे भी पाकिस्तानी खुफिया एंजेसी ISI का हाथ होने की बात सामने आ रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सरकारी अधिकारियों ने अमृतपाल के पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI से कनेक्शन की जानकारी दी है।
ऑपरेशन ब्लू स्टार का बदला
ऑपरेशन ब्लू स्टार का बदला लेने के लिए चार महीने बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के दो सिख सुरक्षाकर्मियों ने उनकी हत्या कर दी। इसके बाद देश में सिख विरोधी दंगे भड़क उठे। 23 जून, 1985 को कनाडा के मोन्ट्रियल से उड़े एयर इंडिया के विमान को बम से उड़ा दिया गया। इसमें विमान में सवार सभी 329 यात्रियों की मौत हो गई। बब्बर खालसा संगठन ने इसकी जिम्मेदारी लेते हुए इसे भिंडरावाले की मौत का बदला बताया।
फिलहाल क्या है खालिस्तान आंदोलन की स्थिति?
खालिस्तान समर्थक लोगों पर सख्त एक्शन की वजह से ये आंदोलन सुस्त पड़ने लगा। हालांकि, कनाडा और पाकिस्तान जैसे देशों से आंदोलन को हवा देने की कोशिश की जाती रहती है। बब्बर खालसा और खालिस्तान कमांडो फोर्स जैसे संगठनों के मुखिया लाहौर से संगठन का कामकाज करते हैं। पंजाब में दोबारा खालिस्तान की मांग 'वारिस पंजाब दे' संगठन के जरिए उठाई जा रही है। इसकी स्थापना पंजाबी एक्टर दीप सिद्धू ने की थी। फिलहाल अमृतपाल इस संगठन के प्रमुख हैं।