#NewsBytesExplainer: LG और दिल्ली सरकार के बीच अधिकारों को लेकर पूरा विवाद क्या है?
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दिल्ली सरकार के पक्ष में अहम फैसला सुनाया। मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग का अधिकार दिल्ली सरकार को दे दिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि दिल्ली की चुनी हुई सरकार के पास यह अधिकार होना चाहिए। आइए जानते हैं कि केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच क्या विवाद था और इसकी शुरुआत कब हुई।
दिल्ली को लेकर क्यों है विवाद ?
दिल्ली देश की राजधानी और केंद्र शासित प्रदेश है। यहां देश की संसद के अलावा राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री आवास हैं, इसलिए यहां राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (GNTDC) अधिनियम, 1991 लागू है। इस कानून के मुताबिक यहां केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार मिलकर शासन करती हैं। इसमें दोनों सरकारों को कुछ अधिकार दिए गए हैं, जिन्हें लेकर पूरा विवाद है। दिल्ली में 2015 में आम आदमी पार्टी (AAP) की सरकार आने के बाद से विवाद बढ़ गया है।
मामला कोर्ट कब पहुंचा?
दिल्ली में AAP की सरकार बनने के 3 महीने बाद मई, 2015 में केंद्र ने दिल्ली में सेवारत प्रशासनिक अधिकारियों को लेकर एक अधिसूचना जारी की थी। इसमें प्रशासनिक अधिकारियों की पोस्टिंग और ट्रांसफर संबंधित निर्णयों में उपराज्यपाल को हस्तक्षेप का अधिकार दिया गया था। AAP इस आदेश के खिलाफ 2015 में दिल्ली हाई कोर्ट पहुंची थी। हाई कोर्ट ने अगस्त, 2016 में केंद्र के पक्ष में फैसला सुनाया था, जिसके खिलाफ AAP ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी।
सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ?
2018 में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा था कि जमीन, पुलिस और सार्वजनिक व्यवस्था को छोड़कर दिल्ली सरकार को बाकी सभी मसलों पर कानून बनाने का अधिकार है। उसने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 239AA के मुताबिक केंद्र द्वारा नियुक्त उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार के साथ मिलकर काम करना होगा। कोर्ट ने सेवाओं से जुड़े अधिकार समेत अन्य व्यक्तिगत मामलों की समीक्षा दो जजों की रेगुलर बेंच को सौंप दी थी।
2 जजों की बेंच ने सेवाओं पर क्या फैसला सुनाया?
दो जजों की बेंच ने 2019 में सेवाओं और अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग पर विभाजित फैसला सुनाया था। जस्टिस एके सीकरी का मानना था कि ज्वाइंट सेक्रेटरी या इससे ऊपर के अधिकारियों के तबादले का अधिकार केंद्र को है, जबकि इससे नीचे के अधिकारी दिल्ली सरकार के अधीन आएंगे। दूसरी तरफ जस्टिस अशोक भूषण ने कहा था कि सेवाओं पर दिल्ली सरकार का कोई अधिकार नहीं है। सहमति न बनने पर मामले को बड़ी बेंच को ट्रांसफर कर दिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने आज क्या फैसला सुनाया?
CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने दिल्ली सरकार को सेवाओं पर नियंत्रण देते हुए कहा, "हम 2019 के उस फैसले से सहमत नहीं हैं, जिसमें कहा गया था कि दिल्ली सरकार का ज्वाइंट सेक्रेटरी स्तर से ऊपर के अफसरों पर कोई अधिकार नहीं है।" बेंच ने कहा कि दिल्ली दूसरे केंद्र शासित प्रदेशों से अलग है क्योंकि यहां चुनी हुई सरकार है, इसलिए इस सरकार के पास प्रशासनिक सेवाओं से जुड़े सभी अधिकार होने चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने और क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार का इतना नियंत्रण नहीं हो सकता है कि राज्य का कामकाज प्रभावित हो और लोकतंत्र और संघीय ढांचे का सम्मान जरूरी है। इसके अलावा उसने कहा कि उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार की सलाह पर काम करना होगा।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर क्या बोले केजरीवाल?
सुप्रीम कोर्ट के फैसले को दिल्ली की AAP सरकार ने लोकतंत्र और जनता की जीत बताया है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि कोर्ट के आदेश से स्पष्ट है कि केंद्र के पास दिल्ली विधानसभा और निर्वाचित सरकार की विधायी शक्तियों में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा कि AAP सरकार देश के सामने एक कुशल प्रशासन का मॉडल रखेगी, काम करने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों को मौका दिया जाएगा और गलत काम करने वालों को भुगतना पड़ेगा।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का क्या असर होगा?
दिल्ली सरकार के पास पुलिस, जमीन और सार्वजनिक व्यवस्था को छोड़कर अब वो सारे अधिकार हैं, जो अन्य राज्यों की सरकारों के पास हैं। इस फैसले के बाद दिल्ली सरकार अधिकारियों की पोस्टिंग और ट्रांसफर पर खुद फैसला कर सकेगी। इसके अलावा सरकार को अन्य मामलों में भी अब उपराज्यपाल की अनुमति लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी और वह खुद से कानून बना सकेगी। इसके अलावा कोर्ट के आदेश के अनुसार उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार की सलाह माननी होगी।
केंद्र सरकार के पास क्या विकल्प हैं?
केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर कर सकती है। साथ ही मामले को बड़ी बेंच को भेजने की अपील भी कर सकती है। अगर फिर भी कोर्ट दिल्ली सरकार के पक्ष में फैसला सुनाती है तो उसके पास एक और याचिका दायर करने का अधिकार होगा। इसके अलावा केंद्र के पास संसद में कानून लाकर फैसले के प्रभाव को बदलने का विकल्प है। हालांकि, इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।
न्यूजबाइट्स प्लस
साल 2021 में केंद्र ने GNTDC अधिनियम, 1991 में संशोधन करके दिल्ली में सरकार के संचालन और उसके कामकाज के तरीके में कुछ अहम बदलाव किए गए थे। संशोधन के जरिए उपराज्यपाल को 'दिल्ली सरकार' का दर्जा दे दिया गया था और दिल्ली की चुनी हुई सरकार के लिए किसी भी फैसले के लिए उपराज्यपाल की राय लेना अनिवार्य हो गया था। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इस संशोधन पर क्या असर पड़ता है।