कोरोना: विशेषज्ञों ने उठाया प्लाज्मा थैरेपी पर सवाल, सरकार से की गाइडलाइंस की समीक्षा की अपील
कोरोना वायरस महामारी के उपचार में प्लाज्मा थैरेपी के इस्तेमाल को लेकर देश के 18 शीर्ष डॉक्टरों और सार्वजनिक स्वास्थ्य पेशेवरों के एक समूह ने सवाल खड़े किए हैं। इस समूह ने प्लाज्मा थैरेपी को व्यर्थ बताते हुए भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार डॉ के विजय राघवन, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) को पत्र लिखा है। इतना ही उन्होंने सरकार से इसकी फिर से समीक्षा की मांग की है।
क्या होती है प्लाज्मा थैरेपी?
कोन्वेलेसेंट प्लाज्मा थैरेपी में कोरोना वायरस को मात दे चुके शख्स के खून से प्लाज्मा निकाला जाता है और उसे संक्रमित व्यक्ति में चढ़ाया जाता है। प्लाज्मा, खून का एक कंपोनेट होता है। जब कोई व्यक्ति कोरोना से ठीक होता है तो उसके शरीर में महामारी फैलाने वाले SARS-CoV-2 वायरस को मारने वाली एंटीबॉडी बनती है। कहा गया था कि प्लाज्मा के जरिये वो एंटीबॉडीज संक्रमित मरीज में पहुंचती हैं और उसकी प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत कर वायरस को मारती हैं।
तीन प्रमुख अध्ययनों में मिला प्लाज्मा थैरेपी के कारगर नहीं होने का उल्लेख- विशेषज्ञ
चिकित्सा विशेषज्ञों ने अपने पत्र में प्लाज्मा थैरेपी के उपयोग के खिलाफ तीन विख्यात अध्ययनों का हवाला दिया है। इसमें ICMR-PLACID परीक्षण, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा संचालित रिकवरी परीक्षण और प्लास्मैर ट्रायल शामिल है। विशेषज्ञों ने कहा कि इन सभी अध्ययनों ने कोरोना संक्रमित रोगियों में प्लाज्मा थैरेपी के उपयोग का कोई लाभ नहीं पाया गया है। विशेषज्ञों के समूह ने सरकार को इस संबंध में अपनी गाइडलाइंस की समीक्षा करने के लिए सुझाव भी दिया है।
संक्रमण के शुरुआती चरण में ही प्रभावी है प्लाज्मा थैरेपी
द प्रिंट की एक रिपोर्ट के अनुसार केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के AIIMS-ICMR नेशनल COVID टास्क फोर्स के दिशानिर्देशों में लक्षणों की शुरुआत के सात दिनों के भीतर यानी संक्रमण की शुरुआत या मध्य स्तर पर ही प्लाज्मा थैरेपी के "ऑफ-लेबल" उपयोग की अनुमति दी गई है। समूह ने "ऑफ-लेबल" शब्द का उपयोग पर आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि यह शब्द दर्शाता है कि अधिकारी स्वयं इस विधि की प्रभावकारिता के बारे में अनिश्चित हैं।
"ऑफ-लेबल शब्द साबित करता है कि नियामक आश्वस्त नहीं हैं"
समूह में शामिल डॉ विवेकानंद झा ने कहा, "ऑफ-लेबल शब्द साबित करता है कि नियामक खुद पूरी तरह आश्वस्त नहीं हैं। अधिकारियों को पता है यह काम नहीं करता है। ऑफ-लेबल का मतलब है कि अनुमोदित नहीं है, फिर भी इसका इस्तेमाल हो रहा है।"
पत्र लिखने वालों में शामिल हैं ये विशेषज्ञ?
पत्र लिखने वालों में वेल्लोर क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज के डॉ गगनदीप कांग सहित शीर्ष सार्वजनिक स्वास्थ्य पेशेवरों ने हस्ताक्षर किए हैं। अन्य हस्ताक्षरकर्ताओं में अशोक यूनिवर्सिटी में बायोमेडिकल स्कूल ऑफ बायोसाइंसेज के निदेशक डॉ शाहिद जमील, सेंटर फॉर मेंटल हेल्थ, लॉ एंड पॉलिसी, इंडियन लॉ सोसायटी के निदेशक सौमित्र पठारे, योगेश जैन, प्रीति मीना, प्रताप थार्यन, प्रशांत श्रीनिवास, ओमन जॉन, कामना कक्कड़, ज्योति त्यागी और गौतम मेनन आदि शामिल है।
प्लाज्मा थेरेपी स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे पर बढ़ाती है भार
प्लाज्मा थैरेपी की प्रभावकारिता पर संदेह के अलावा यह स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे पर अधिक भार बढ़ाती है। ऐसा इसलिए है कि पहले प्लाज्मा के लिए डोनर की आवश्यकता होती है। इसके बाद उसे संक्रमित मरीज को चढ़ाने से पहले उसकी कई बार जांच की जाती है। कुछ डॉक्टर यहां तक कहते हैं कि उन्हें मरीजों के परिवारों के गुस्से से बचने के लिए विधि का उपयोग करना पड़ता है। जबकि, इसका कोई व्यापक असर नहीं है।
भारत में यह है कोरोना संक्रमण की स्थिति
भारत में पिछले 24 घंटे में कोरोना वायरस से संक्रमण के 3,29,942 नए मामले सामने आए और 3,876 मरीजों की मौत हुई। बीते दो दिनों से नए मामलों में गिरावट देखी गई है। इसी के साथ देश में कुल संक्रमितों की संख्या 2,29,92,517 हो गई है। इनमें से 2,49,992 लोगों को इस खतरनाक वायरस के कारण अपनी जान गंवानी पड़ी है। सक्रिय मामलों की संख्या कई दिनों बाद घटकर 37,15,221 हो गई है।