कोरोना महामारी के बीच बढ़ी बच्चों की गुमशुदगी, एक साल में 59,000 से अधिक लापता- रिपोर्ट
कोरोना वायरस महामारी के बाद से देश में बच्चों की गुमशुदगी के मामले तेजी से बढ़े हैं। महामारी के शुरुआती वर्ष यानी साल 2020 में ही 59,262 बच्चों की गुमशुदगी दर्ज की गई है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के रिकॉर्ड से इसका खुलासा हुआ है। इसको लेकर बाल अधिकारों पर काम करने वाले गैर सरकारी संगठनों (NGOs) ने चिंता जताई है और ग्राम स्तर पर बाल संरक्षण समितियों को मजबूत करने सहित अन्य कदम उठाने की मांग की है।
आज भी लापता हैं एक लाख से अधिक बच्चे
NCRB के रिकॉर्ड के अनुसार, साल 2020 में देश में कुल 59,262 बच्चे लापता हुए थे, जबकि पिछले सालों में गुम हुए 48,972 बच्चों का पता नहीं लगाया जा सका है। ऐसे में आज भी 1,08,234 बच्चे लापता हैं। इसी तरह साल 2008 से 2020 के बीच प्रतिवर्ष गुम होने वाले बच्चों की संख्या में करीब 13 गुना का इजाफा हुआ है। साल 2008 में देश में बच्चों की गुमशुदगी में महज 7,650 मामले ही दर्ज किए गए थे।
साल 2020 में लापता हुई 45,687 लड़कियां
NCRB के रिकॉर्ड के अनुसार, साल 2020 में मार्च से जून तक के देशव्यापी लॉकडाउन के बाद भी गुम हुए कुल 59,262 बच्चों में सबसे ज्यादा 45,687 लड़कियां, 13,566 लड़के और नौ ट्रांसजेंडर शामिल थे। लापता बच्चियों की संख्या 2018 में लगभग 70 प्रतिशत से बढ़कर 2019 में 71 प्रतिशत और 2020 में 77 प्रतिशत हो गई है। इसी तरह 2018 में नहीं मिलने वाले बच्चों का प्रतिशत 42, 2019 में 39 और 2020 में 45 प्रतिशत रहा है।
BBA ने दो सालों में देशभर में बचाए 12,000 से अधिक बच्चे- टिंगल
कैलाश सत्यार्थी फाउंडेशन की सहयोगी संस्था 'बचपन बचाओ आंदोलन' (BBA) के कार्यकारी निदेशक धनंजय टिंगल ने बताया कि पिछले दो सालों में BBA ने देशभर में 12,000 से अधिक बच्चों को बचाया है। उन्होंने कहा, "हमारे पास यह साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं कि कोरोना महामारी की दस्तक के बाद देश में बच्चों की तस्करी में कई गुना इजाफा हुआ है। ऐसे में यह स्थिति देश और बच्चों के लिए चिंता का विषय है।"
पिछले साल मध्य प्रदेश में प्रतिदिन गुम हुए 29 बच्चे- टिंगल
टिंगल ने कहा, "चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राई) NGO की ओर से हाल ही में सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम के तहत प्राप्त जानकारी में सामने आया है कि साल 2021 में मध्य प्रदेश में प्रतिदिन औसतन 29 और राजस्थान में 14 बच्चे गुम हुए हैं।" उन्होंने कहा, "कुछ बच्चों की तस्करी उनके माता-पिता की सहमति से की जा रही थी, जबकि कुछ अपनी मर्जी से तस्करों के साथ गए। इनमें से अधिकांश बच्चे लापता हैं।"
टिंगल ने परिवहन सेवा से जुड़े कर्मचारियों से की सहयोग की अपील
टिंगल ने कहा, "रेलवे, रोडवेज और अन्य परिवहन सेवाओं के कर्मचारियों से अपील है कि यदि उन्हें कोई अकेला बच्चा या भीख मांगने वाला बच्चा दिखता है तो वह तुरंत इसकी सूचना दें। ऐसे बच्चों को सरकारी सुरक्षा के दायरे में लाया जाना चाहिए।" इसी तरह सेव द चिल्ड्रन संस्था में बाल संरक्षण से जुड़े मामलों के उप-निदेशक प्रभात कुमार ने कहा, "बढ़ती गरीबी बच्चों के लापता होने या तस्करी का शिकार बनने का एक प्रमुख कारण है।"
आर्थिक कमजोरी के कारण बढ़े बच्चों की तस्करी के मामले- मोइत्रा
क्राई की क्षेत्रीय निदेशक (उत्तर) सोहा मोइत्रा ने कहा, "ग्रामीण क्षेत्रों में कई परिवार पहले से ही कर्ज में डूबे थे। महामारी में उन पर आर्थिक बोझ और बढ़ गया है। इस स्थिति ने आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के बच्चों की तस्करी, बाल श्रम और बाल विवाह को बढ़ावा देने का काम किया है।" उन्होंने कहा, "मास्क के इस्तेमाल की अनिवार्यता से अक्सर तस्करों और अपहरणकर्ताओं की पहचान करना मुश्किल हो जाता है।"