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    पुराने मास्क को सीमेंट में मिलाएं तो 47 प्रतिशत अधिक मजबूत बन सकता है कंक्रीट- अध्ययन

    पुराने मास्क को सीमेंट में मिलाएं तो 47 प्रतिशत अधिक मजबूत बन सकता है कंक्रीट- अध्ययन
    लेखन प्रमोद कुमार
    May 01, 2022, 07:59 pm 1 मिनट में पढ़ें
    पुराने मास्क को सीमेंट में मिलाएं तो 47 प्रतिशत अधिक मजबूत बन सकता है कंक्रीट- अध्ययन
    पुराने मास्क को सीमेंट में मिलाएं तो 47 प्रतिशत अधिक मजबूत बन सकता है कंक्रीट- अध्ययन

    महामारी के दौरान इस्तेमाल किए गए सिंगल-यूज मास्क अब पर्यावरण के लिए बड़ी चुनौती बन गए हैं। हालांकि, कुछ शोधकर्ताओं ने पाया है कि अगर इन मास्क को सीमेंट के मिक्सचर के साथ मिलाया जाता है तो इससे मजबूत और टिकाऊ कंक्रीट बन सकता है। बता दें कि अगर सिंगल-यूज को उचित तरीके से नष्ट न किया जाए तो ये कई दशकों तक पर्यावरण में रहकर उसे नुकसान पहुंचा सकते हैं। आइये इस बारे में विस्तार से जानते हैं।

    47 प्रतिशत अधिक मजबूत हो सकता है कंक्रीट- अध्ययन

    मैटेरियल्स लेटर्स नामक जर्नल में प्रकाशित पेपर के अनुसार, अगर मास्क के मैटेरियल को सीमेंट के साथ मिलाकर इस्तेमाल किया जाता है तो इससे बनने वाला कंक्रीक साधारण कंक्रीट की तुलना में 47 प्रतिशत अधिक मजबूत होगा।

    एक साथ सुलझ सकती हैं कई समस्याएं

    सीमेंट का उत्पादन पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाला होता है और इससे कार्बन उत्सर्जन होता है। दुनियाभर में कार्बन उत्सर्जन का 8 प्रतिशत हिस्सा केवल सीमेंट उत्पादन से आता है। ऐसे में अगर कंक्रीट में माइक्रोफाइबर का इस्तेमाल किया जाता है तो इससे सीमेंट की जरूरत भी कम होगी और कंक्रीट भी मजबूत होगा। इससे पैसे तो बचेंगे ही, कार्बन उत्सर्जन में भी कमी आएगी। ऐसे में मास्क में लगने वाला फाइबर कंक्रीट उद्योग के लिए फायदेमंद हो सकता है।

    'मूल्यवान वस्तु साबित हो सकते हैं मास्क'

    पेपर में लिखा गया है कि अगर मास्क को ठीक तरीके से उपचारित किया जाता है तो ये मूल्यवान वस्तु हो सकते हैं। यह अध्ययन वॉशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी के सिविल एंड एन्वायरनमेंट विभाग की तरफ से किया गया है।

    यह पूरी प्रक्रिया कैसे काम करेगी?

    शोधकर्ताओं ने पहले मास्क से धातु के तार और कॉटन की डोरियों को हटा दिया। इसके बाद मास्क फाइबर को बिल्कुल छोटे-छोटे टुकड़ों में काटा गया। सीमेंट में मिलाने से पहले उन टुकड़ों को ग्राफीन ऑक्साइड के घोल में मिलाया गया। यह पूरी प्रक्रिया होने के बाद इन टुकड़ों को साधारण सीमेंट के साथ मिला दिया गया। अध्ययन में कहा गया है कि फाइबर के बिना कंक्रीट में धीरे-धीरे दरारें आना शुरू हो जाती हैं।

    अभी जारी है अध्ययन

    शोधकर्ता अपने इस विचार को अब दूसरी जगहों पर इस्तेमाल करने के लिए काम कर रहे हैं। वो देख रहे हैं कि इस तरीके से कंक्रीट को कितना टिकाऊ बनाया जा सकता है ताकि इसको नुकसान से बचाया जा सके। इसके अलावा वो इस तकनीक के जरिये दूसरे पॉलीमर मैटेरियल को भी रिसाइकिल करने पर विचार कर रहे हैं। उनका मानना है कि अगर ऐसा होता है तो इस प्रकार के कूड़े का संग्रहण बढ़ सकेगा।

    न्यूजबाइट्स प्लस (जानकारी)

    महामारी के बाद प्लास्टिक कचरे में बेहिसाब इजाफा हुआ है। पिछले साल नवंबर में 'प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज' पत्रिका में प्रकाशित एक शोध में बताया गया था कि दुनियाभर में महामारी के कारण 80 लाख टन प्लास्टिक कचरा पैदा हुआ है। इसमें से करीब 25,000 टन कचरा महासागरों में चला गया है। इसमें जानकारी दी गई कि महासागरों में जाने वाले कचरे का अधिकतर हिस्सा एशियाई देशों के अस्पतालों से आ रहा है।

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