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    सहमति से संबंध बनाने की उम्र सीमा घटाकर 16 साल की जाए- मद्रास हाई कोर्ट

    सहमति से संबंध बनाने की उम्र सीमा घटाकर 16 साल की जाए- मद्रास हाई कोर्ट

    लेखन प्रमोद कुमार
    Apr 27, 2019
    10:55 am

    क्या है खबर?

    मद्रास हाई कोर्ट ने कहा है कि सहमति से संबंध बनाने की उम्र सीमा 18 साल से घटाकर 16 साल की जानी चाहिए।

    कोर्ट ने कहा कि 16-18 साल के युवाओं के बीच सहमति से संबंध बनाने को प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस (POSCO) कानून के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए और 16 साल से कम उम्र वालों को बच्चा माना जाना चाहिए।

    अभी 18 साल से कम उम्र वालों को बच्चा माना जाता है।

    सुनवाई

    सहमति से संबंधों को उदार प्रावधनों के तहत देखें

    मद्रास हाई कोर्ट ने कहा कि 16 साल की उम्र के बाद सहमति से संबंध, शारीरिक संबंध या ऐसी गतिविधियों को पॉक्सो कानून के कठोर प्रावधान के दायरे से बाहर किया जा सकता है।

    यौन उत्पीड़न और टीनएजर्स रिलेशनशिप को अलग-अलग करते हुए हुए कोर्ट ने कहा कि यौन उत्पीड़न के मामलों को कानून में शामिल ज्यादा उदार प्रावधानों के तहत रखा जा सकता है।

    अदालत पॉक्सो कानून के तहत सजा पाए नाबालिग की याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

    जानकारी

    इस मामले की सुनवाई कर रही अदालत

    तमिलनाडु की एक फास्ट ट्रैक महिला कोर्ट ने एक नाबालिक को पॉक्सो कानून के तहत 10 साल का कठोर कारावास और 3,000 रुपये जुर्माना भरने की सजा सुनाई थी। इस फैसले के खिलाफ याचिका पर हाई कोर्ट में सुनवाई चल रही है।

    परिभाषा

    बच्चों की परिभाषा बदलने की जरूरत

    ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलटते हुए जज ने कहा कि ऐसे मामलों में जहां लड़की की उम्र 18 साल से कम है और मानसिक रूप से परिपक्व होकर सहमति देती है तो भी पॉक्सो कानून के प्रावधान लागू होते हैं।

    ऐसे मामलों में यौन उत्पीड़न करने वालों को 7 से 10 साल तक की सजा मिलती है।

    जज ने कहा कि जमीनी हकीकतों को देखते हुए 'बच्चे' की परिभाषा को बदलकर 18 से 16 साल करने की जरूरत है।

    मांग

    पॉक्सो कानून में बदलाव की मांग

    बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाले कई लोग पॉक्सो में बदलाव की मांग कर रहे हैं।

    इनका कहना है कि इस कानून के तहत दोषी ठहराये गए अधिकतर लड़के लड़कियों की सहमति से रिलेशनशिप में होते हैं।

    पॉक्सो कानून के तहत अपराधों और सजाओं के बारे में बताते हुए जज ने कहा कि पुलिस और सामाजिक कल्याण विभाग की रिपोर्ट देखकर पता चलता है कि अधिकतर मामले किशोर उम्र में हुई रिलेशनशिप से जुड़े हुए हैं।

    संशोधन

    पिछले साल हुआ था पॉक्सो कानून में संशोधन

    केंद्रीय कैबिनेट ने दिसंबर, 2018 में पॉक्सो (POCSO) कानून के प्रावधानों में संशोधन को मंजूरी दी थी।

    इनके तहत बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों में दंड को पहले से कठोर बनाने के उपाय किए गए हैं।

    केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बताया कि पॉक्सो कानून को न केवल मजबूत किया गया है बल्कि इसका विस्तार भी किया गया है।

    अब 12 साल से कम उम्र के लड़कों के साथ दुष्कर्म के जुर्म में फांसी का प्रावधान किया गया है।

    सवाल

    सजा में भिन्नता को लेकर उठे सवाल

    साल 2012 में यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण के लिए पॉक्सो एक्ट बनाया गया था।

    बीते वर्ष मानसून सत्र में पास किए गए विधेयक के बाद नाबालिग लड़कियों के खिलाफ अपराध के लिए फांसी की सजा का प्रावधान था, लेकिन लड़कों के मामलों में इसमें कम सजा का प्रावधान था।

    अब संशोधित कानून में 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के साथ दुष्कर्म करने पर मौत की सजा तक का प्रावधान है।

    कानून

    क्या है पॉक्सो कानून?

    बच्चों के खिलाफ यौन अपराध रोकने के लिए साल 2012 में बाल यौन अपराध संरक्षण कानून (POCSO) कानून बनाया गया था।

    बच्चों के खिलाफ होने वाले यौन अपराधों और छेड़छाड़ के मामलों में इस कानून के तहत कार्रवाई की जाती है।

    इस कानून के तहत सभी अपराधों की सुनवाई विशेष न्यायालय द्वारा बच्चे के माता-पिता की मौजूदगी में होती है।

    इसके कानून में अलग-अलग प्रावधानों के तहत अलग-अलग सजाएं तय की गई हैं।

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