कृषि कानून: भूपिंदर सिंह मान ने खुद को सुप्रीम कोर्ट की समिति से अलग किया
भारतीय किसान यूनियन (BKU) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व राज्यसभा सांसद भूपिंदर सिंह मान ने खुद को सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति से अलग कर लिया है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कृषि कानूनों पर सुनवाई के दौरान किसान आंदोलन और इससे जुड़ी जमीनी हकीकत को समझने के लिए एक चार सदस्यीय समिति का गठन किया था। इस समिति को सभी पक्षों के साथ बात कर दो महीनों के भीतर सुप्रीम कोर्ट को अपनी रिपोर्ट देनी थी।
मान ने खुद को समिति से अलग रखने की बताई यह वजह
मान ने गुरुवार को इस समिति से खुद को अलग कर लिया। उनकी तरफ से जारी बयान में उन्होंने समिति में जगह देने के लिए सुप्रीम कोर्ट का धन्यवाद किया है। उन्होंने अपने बयान में कहा कि एक किसान और यूनियन नेता होने के कारण किसान संगठनों और आम लोगों की शंकाओं को देखते हुए वो किसी भी पद को त्यागने के लिए तैयार हैं ताकि किसानों पंजाब और देश के किसानों के हितों के साथ कोई समझौता न हो।
पंजाब और किसानों के साथ हमेशा खड़ा रहूंगा- मान
मान ने अपने बयान में आगे कहा कि वो सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति से खुद को अलग कर रहे हैं और वो पंजाब और किसानों के साथ हमेशा खड़े रहेंगे। उनका यह बयान आप नीचे पढ़ सकते हैं।
यहां देखिये मान का बयान
शुरुआत से ही उठ रहे हैं समिति पर सवाल
सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस समिति के गठन के बाद से ही इस पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। दरअसल, मान समेत समिति में शामिल चारों सदस्य तीन नए कृषि कानूनों का खुले तौर पर समर्थन कर चुके हैं। ऐसे में प्रदर्शनकारी किसानों के साथ बाकी लोगों ने भी समिति पर सवाल खड़े किए थे। इनका कहना था कि जब समिति के सभी सदस्य कानूनों का समर्थन कर चुके हैं, तो उन्हें इनके निष्पक्ष रहने पर संदेह है।
समिति में और कौन से सदस्य शामिल हैं?
भूपिंदर सिंह मान के अलावा सुप्रीम कोर्ट ने इस समिति में अंतरराष्ट्रीय नीति संस्थान के प्रमुख डॉ प्रमोद कुमार जोशी, कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी और शेतकारी संगठन के अनिल घनवट को जगह दी थी।
कानूनों के समर्थन में कृषि मंत्री से मिले थे मान
भूपिंदर सिंह मान तीनों नए कृषि कानूनों के समर्थन में पिछले महीने कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मुलाकात कर चुके हैं। हरियाणा, महाराष्ट्र, बिहार और तमिलनाडु के किसानों का एक प्रतिनिधिमंडल लेकर मान तोमर से मिलने गए थे। इस प्रतिनिधिमंडल ने कहा था कि कानूनों को वापस लेने की जरूरत नहीं है। सरकार कुछ संशोधनों के साथ इन्हें लागू कर दें। वहीं प्रदर्शनकारी किसान कानूनों की वापसी की मांग पर अड़े हुए हैं।