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    सिर्फ शादी के लिए धर्म परिवर्तन को स्वीकार नहीं किया जा सकता- इलाहाबाद हाईकोर्ट

    सिर्फ शादी के लिए धर्म परिवर्तन को स्वीकार नहीं किया जा सकता- इलाहाबाद हाईकोर्ट

    लेखन भारत शर्मा
    Oct 31, 2020
    03:03 pm

    क्या है खबर?

    देश में धर्मांतरण कर शादी करने के कई मामले सामने आ चुके हैं। शादी के बाद स्थिति बिगड़ने पर कई दंपत्ति कोर्ट का रुख कर चुके हैं।

    अब ऐसे ही एक मामले में फैसला सुनाते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि सिर्फ शादी के लिए धर्म परिवर्तन को स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

    ऐसे में याचिकाकर्ता की मांग को पूरा नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने अपने एक पूर्ववर्ती आदेश का उल्लेख करते हुए निर्णय सुनाया है।

    प्रकरण

    धर्म परिवर्तन कर शादी करने वाले दंपत्ति ने की थी सुरक्षा की मांग

    NDTV के अनुसार प्रियांशी उर्फ सबरीन और उसके पति ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा था कि उन्होंने करीब तीन महीने पहले स्वेच्छा से विवाह किया है, लेकिन लड़की के पिता इस विवाह से खुश नहीं हैं।

    दंपती ने कोर्ट से वैवाहिक जीवन में किसी के द्वारा हस्तक्षेप न करने और पुलिस सुरक्षा मुहैया कराने का आदेश देने की मांग की थी।

    शादी के लिए सबरीन ने हिंदू धर्म अपनाया था और बाद में अपना नाम प्रियांशी रखा था।

    आदेश

    कोर्ट ने यह कहते हुए खारिज की याचिका

    मामले में हाईकोर्ट की एकल पीठ के जज जस्टिस महेश चंद्र त्रिपाठी दंपत्ति की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि तथ्यों के अनुसार लड़की जन्म से मुस्लिम है और उसने 29 जून, 2020 को धर्म परिवर्तन कर हिंदू धर्म स्वीकार किया और 31 जुलाई को उन्होंने हिंदू रीति-रिवाज से शादी कर ली।

    इससे स्पष्ट है कि धर्म परिवर्तन सिर्फ विवाह करने के उद्देश्य से किया गया है। ऐसे इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

    उल्लेख

    जस्टिस त्रिपाठी ने किया हाईकोर्ट के पुराने फैसले का उल्लेख

    मामले में जस्टिस त्रिपाठी ने साल 2014 में नूरजहां बेगम केस की नजीर देते हुए कहा कि, उसमें हाईकोर्ट ने कहा था कि सिर्फ विवाह करने के उद्देश्य से किया गया धर्म परिवर्तन स्वीकार्य नहीं है।

    नूरजहां मामले में याचिकाओं में एक ही प्रश्न था कि क्या सिर्फ विवाह करने के उद्देश्य से धर्म परिवर्तन मान्य है, जबकि धर्म बदलने वाले को स्वीकार किए गए धर्म के बारे में न तो जानकारी थी और न ही उसमें आस्था और विश्वास।

    जानकारी

    कोर्ट ने विवाह को कुरान के निर्देशों के विपरीत बताया था

    कोर्ट ने नूरजहां मामले में कहा था कि विवाह पवित्र कुरान के शूरा दो आयत 221 के निर्देशों के विपरीत है। सुप्रीमकोर्ट ने भी लिली थॉमस केस में कहा था इस्लाम में आस्था के बिना विवाह के लिए किया गया धर्म परिवर्तन मान्य नहीं है।

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