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    नागरिकता संशोधन कानून: आवेदनकर्ता को देना होगा धर्म का प्रमाण

    नागरिकता संशोधन कानून: आवेदनकर्ता को देना होगा धर्म का प्रमाण
    लेखन प्रमोद कुमार
    Jan 28, 2020, 11:49 am 1 मिनट में पढ़ें
    नागरिकता संशोधन कानून: आवेदनकर्ता को देना होगा धर्म का प्रमाण

    नागरिकता कानून को लेकर देशभर में हो रहे विरोध प्रदर्शनों के बीच गृह मंत्रालय इसके नियमों को तैयार कर रहा है। इन नियमों के मुताबिक, नागरिकता संशोधन कानून के तहत नागरिकता मांगने वाले लोगों को यह साबित करने के अलावा कि वो 31 दिसंबर, 2014 से पहले पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से भारत आए हैं, उन्हें अपने 'धर्म का प्रमाण' भी देना होगा। इंडियन एक्सप्रेस ने गृह मंत्रालय के अधिकारियों के हवाले से यह जानकारी दी है।

    धर्म के प्रमाण के लिए किन दस्तावेजों की जरूरत होगी?

    रिपोर्ट में बताया गया है कि धर्म का प्रमाण भारत सरकार द्वारा 31 दिसंबर, 2014 से पहले जारी किसी भी दस्तावेज के जरिये दिया जा सकता है, जिसमें आवेदनकर्ता ने खुद का धर्म हिंदू, सिख, ईसाई, पारसी, जैन और बौद्ध बताया है।

    धर्म की जानकारी वाला हर दस्तावेज होगा मान्य

    उदाहरण के लिए, अगर किसी आवेदनकर्ता ने अपने बच्चों को दाखिला सरकारी स्कूल में कराया है, जहां उसने अपना धर्म बताया है। इसके अलावा अगर किसी ने 31 दिसंबर, 2014 से पहले बनवाए अपने आधार कार्ड में अपना धर्म हिंदू, सिख, पारसी, बौद्ध, जैन और ईसाई बताया है तो यह भी धर्म का प्रमाण माना जाएगा। अधिकारियों ने बताया कि कोई भी ऐसा सरकारी दस्तावेज, जिसमें धर्म की जानकारी दी गई है, वह मान्य होगा।

    क्या है नागरिकता कानून?

    संसद के शीतकालीन सत्र में नागरिकता संशोधन कानून को हरी झंडी दिखाई गई थी। इसके तहत 31 दिसंबर, 2014 तक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए हिंदू, सिख, पारसी, बौद्ध, जैन और ईसाई समुदाय को लोगों को आसानी से भारत की नागरिकता मिल सकेगी। वहीं मुसलमानों को इस कानून से बाहर रखा गया है। सरकार का कहना है कि कानून के तहत पड़ोसी देशों में धार्मिक प्रताड़ना का शिकार होकर भारत आए लोगों को नागरिकता दी जाएगी।

    नियमों पर चल रहा है काम

    नागरिकता संशोधन कानून को लेकर 10 जनवरी को अधिसूचना जारी हो चुकी है, लेकिन इसके नियम अभी तैयार नहीं हुए हैं। गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि इस पर काम जारी है और जल्द ही नियम बना लिए जाएंगे।

    नहीं देना होगा धार्मिक प्रताड़ना का प्रमाण

    रिपोर्ट के मुताबिक, नागरिकता संशोधन कानून के तहत नागरिकता मांगने वाले व्यक्ति को यह साबित नहीं करना पड़ेगा कि वह धार्मिक प्रताड़ना का शिकार हुआ है। यह मान लिया जाएगा कि जो भारत आया है उसके साथ धार्मिक प्रताड़ना हुई है या उसे प्रताड़ना का डर सता रहा था। वहीं गृह मंत्रालय ने असम की वह मांग मान ली है, जिसमें कहा गया था कि नागरिकता के आवेदन के लिए समयसीमा निर्धारित होनी चाहिए।

    असम की क्या मांग थी?

    असम की मांग थी कि नागरिकता के लिए आवेदन के लिए तीन महीने की समय दिया जाना चाहिए। समयसीमा निर्धारित न करना राज्य में नागरिकता कानून पर आशंकाओं को और बढ़ा सकता है। असम भाजपा के एक नेता ने बताया कि सरकार समयसीमा निर्धारित करने के लिए तैयार हो गई है। यह तीन या छह महीने हो सकती है। इस पर अंतिम फैसला होना अभी बाकी है, लेकिन सरकार इस पर तैयार हो गई है।

    चार राज्य ला चुके हैं कानून के खिलाफ प्रस्ताव

    नागरिकता संशोधन कानून को कड़े विरोध का सामना करना पड़ रहा है। सबसे पहले केरल विधानसभा ने इसके खिलाफ प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार से इसे वापस लेने की मांग की थी। केरल ने इसे सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती दी है। केरल के बाद पंजाब, राजस्थान और पश्चिम बंगाल विधानसभा में इसके खिलाफ प्रस्ताव पारित हो चुका है। इसके अलावा विपक्षी पार्टियां सरकार से लगातार इस कानून को वापस लेने की मांग कर रही हैं।

    देशभर में हो रहा कानून का विरोध

    नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ देशभर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। दिल्ली के शाहीन बाग में इसके खिलाफ एक महीने से ज्यादा समय से प्रदर्शन चल रहा है। इसके अलावा मुंबई, जयपुर, कोलकाता, चेन्नई आदि शहरों में कानून के खिलाफ बड़ी-बड़ी रैलियां आयोजित की जा रही हैं। इनमें छात्र, आम लोग, बड़ी हस्तियां और राजनेता आदि हिस्सा ले रहे हैं। वहीं सरकार इस कानून के समर्थन में कई रैलियां आयोजित कर चुकी हैं।

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